लिटरेचर लव

हुई मुद्दत कि गालिब मर गया…

शिव दास//

हुई मुद्दत कि गालिब मर गया
पर याद आती है वो हर इक बात कि
यूं होता तो क्या होता?
शब्दों के रूप में कुछ ऐसे ही जज्बात  देर रात राबर्ट्सगंज नगर
स्थित विवेकानंद प्रेक्षागृह में जाने-माने शायर वसीम बरेलवी के मुख से निकले।
वह मित्र मंच सोनभद्र द्वारा मशहूर शायर मिर्जा गालिब की 215वीं जयंती के मौके
पर मुसलसल 10वीं बार आयोजित महफिल “वसीम बरेलवी की शाम-गालिब के नाम” में
मिर्जा गालिब को श्रद्धांजलि पेश कर रहे थे। उन्होंने लगातार डेढ़ घंटे तक
महफिल में अपनी गजलों, गीतों और शायरी से लोगों के दिलों में मिर्जा गालिब की
याद ताजा की।
जरा लड़ने की उसने ठान ली तो
बड़ा खतरा जरा सो हो गया है..
.हो गया जैसा यहां..वैसा कहां हो
जाएगा..
.कतरे बोलेंगे कि समुंदर बेजुबां
हो जाएगा
और
मुझे उस पार जाने की ऐसी जल्दी थी कि
जो कश्ती मिली, उसपर भरोसा कर लिया मैंने
तथा
नजर बचाने का फन तुम्ही को आता है
मगर तुम्हारी तरह कोई देखता भी नहीं
सरीखी रचनाएं सुनाकर उन्होंने स्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर लिया।
महफिल का शुभारंभ मेहमान-ए-खुसूसी सदर विधायक अविनाश कुशवाहा और वसीम बरेलवी
द्वारा दिवंगत शायर मिर्जा गालिब की प्रतिमा पर माल्यार्पण और शमा रोशन की
रस्म अदायगी के साथ हुआ। तत्पश्चात मित्र मंच के निदेशक विकास वर्मा ने “मजहब
को अपने घर में ही महदूद कीजिए…जब-जब सड़क पर निकला तोहीन हुई है” और  ”
हरेक राह में सब कुछ नया नहीं होता….पुराने यार मिलेंगे जो चल सको तो चलो”
सरीखे शेर-ओ-शायरी से महफिल के संचालन का आगाज किया। सबसे पहले उन्होंने
शान-ए-सोनभद्र जनाब अब्दुल हई को आवाज दी, जिन्होंने अपनी गजल और शेर “दुनिया
में सही एक जो हमदर्द बनाए…समझो वो फूल, रेत और पत्थर पे लिखाए” तथा “उधर सो
गुजरा तो झुक कर मिला…हिमालय भी सलीका प्यार का उसको सिखा दिया किसने” व “अब
तो घर शोलों के मानिद बनाना होगा, नाव तुफान के सीने पर चलाना होगा”…सुनाकर
लोगों की वाहवाही लूटी। सदर विधायक अविनाश कुशवाहा ने महफिल को संबोधित करते
हुए कहा कि महान उर्दू कवि और शेर-ओ-शायरी के बादशाह आज भले ही हमारे बीच नहीं
हैं, लेकिन उनके लिखे शेर आज भी उनके चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं।
मिर्जा गालिब ने आम आदमी से जुड़ी हाल-ए-दिल बयां करने की ऐसी बेजोड़ इबारत
लिखी जो कभी फना नहीं हो सकती। उन्होंने…रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं
कायल…जब आंस ही नहीं टपका तो फिर लहू क्या है…सरीखे गालिब के कई शेर भी
पढ़े। वाराणसी से आए शायर जनाब जावेद अख्तर ने जाविंदा खुद को कर भी जाना
है….मौत से पहले मर भी जाना है…कतरा-कतरा अभी उभरना है… तिनका-तिनका
बिखर भी जाना है..जैसी कई रचनाओं से लोगों का दिल जीतने में कामयाबी हासिल
की। देर रात तक चले इस कार्यक्रम की सदारत  आरएसएम के पूर्व प्रधानाचार्य एस.
एस. राय ने की। कार्यक्रम में चंद्रकांत शर्मा, पीयूष वर्मा, संदीप, सीमा,
उमेश जालान, अमित वर्मा, विमल जैन, मुन्नु पहलवान, धर्मराज जैन, अशोक
श्रीवास्तव, विंदू जायसवाल, प्रमोद श्रीवास्तव, राम प्रसाद यादव, प्रभु चौहान,
सैफुल्लाह, मुख्तार आलम, सलाउद्दीन, मो. मोहिद, योगिराज, बबलू शुक्ला, संजय
केशरी, ओपी सिन्हा, दीपक केशरवानी समेत सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम से पहले मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने पत्रकारों से कहा कि आज अखबारों
में, टीवी चैनलों पर नकरात्मकता को प्रमुखता दी जाती है। राजनीति, फिल्म और
खेल सर्वोपरी मान लिया गया है। अपराध प्रमुख हो गया है। साहित्य कहीं सो गया
है।

with regards-
Shiv Das (Journalist), C-87, Parivahan Apartment, Sector-5, Vasundhara,
Ghaziabad, Uttar Pradesh-
Or
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editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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