लिटरेचर लव

एक अनूठे कवि की याद में —-

राकेश वत्स — जन्म 13. 10. 1941, निधन — o5. 07. 2007

राकेश जी के शब्दों में सूक्ष्मता और सौन्दर्य बोध के साथ – साथ साधारण के प्रति एक जिज्ञासा व उत्सुकता भी झलकती है। इनका घेरा इतना उदार है कि हर कोई उनके शब्दों के जादूगरी में बांध जाता है।

अन्धेरा ——

शिखर दोपहरी में,
अगर तुम
अँधेरे का जिक्र करोगे
लोग तुम्हें अन्धा समझेंगे
मजाक उड़ायेंगे तुम्हारा
लेकिन तब तुम्हें
शिद्द्त से याद करेंगे
जब गिरोगे ठोकर खाकर
किसी पत्थर से।

वक्त ——-

मत पूछो इस वक्त से
किसका हाथ थामकर
चल रहा है वह
किसने पकड़ी हुई है
उसके हाथ की लाठी
भिखमंगा नहीं है वक्त
इंसान का सताया हुआ है
उम्र से पहले हो गया है बूढ़ा
उसके लिए अब अन्धेरा ही अन्धेरा है।

प्रस्तुति: सुनील दत्ता

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button