लिटरेचर लव
एक अनूठे कवि की याद में —-
राकेश वत्स — जन्म 13. 10. 1941, निधन — o5. 07. 2007
राकेश जी के शब्दों में सूक्ष्मता और सौन्दर्य बोध के साथ – साथ साधारण के प्रति एक जिज्ञासा व उत्सुकता भी झलकती है। इनका घेरा इतना उदार है कि हर कोई उनके शब्दों के जादूगरी में बांध जाता है।
अन्धेरा ——
शिखर दोपहरी में,
अगर तुम
अँधेरे का जिक्र करोगे
लोग तुम्हें अन्धा समझेंगे
मजाक उड़ायेंगे तुम्हारा
लेकिन तब तुम्हें
शिद्द्त से याद करेंगे
जब गिरोगे ठोकर खाकर
किसी पत्थर से।
वक्त ——-
मत पूछो इस वक्त से
किसका हाथ थामकर
चल रहा है वह
किसने पकड़ी हुई है
उसके हाथ की लाठी
भिखमंगा नहीं है वक्त
इंसान का सताया हुआ है
उम्र से पहले हो गया है बूढ़ा
उसके लिए अब अन्धेरा ही अन्धेरा है।
प्रस्तुति: सुनील दत्ता