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एनडीए में बेचैनी, रणनीती में बदलाव

आलोक नंदन

बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों के मतदान के बाद एनडीए खेमे में बेचैनी है। अगले तीन चरणों के मतदान के लिए  भाजपा ने तो अपनी पुरी रणनीति ही बदल दी है। अब भाजपा के होर्डिंग और पोस्टरों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ बिहारी नेताओं के चेहरे भी दिखने लगे हैं। टेलीविजन और अखबारों में आने वाले विज्ञापनों में भी बिहार के स्थानीय नेताओं को उकेरा जा रहा है। दबी जुबान से भाजपा नेता इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि बिहार चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी पर ज्यादा बल देने से बिहार के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दें हावी हो गये हैं। चुनाव के पहले और दूसरे चरण के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित महागठबंधन के तमाम नेता लगातार विकास के मोदी मॉडल पर लगातार निशाने लगाते रहे और साथ ही बाहरी बनाम बिहारी का भी नारा बुलंद करते रहे। इसके साथ ही काला धन और बेरोजगारी जैसे मसलों पर मोदी के वादाखिलाफी पर निशाना साधते रहे, जिसकी वजह से मतदान के दो चरणों में मोदी विकास मॉडल परवान चढ़ता हुआ नजर नहीं आया।

बीजेपी के निशाने पर मुख्यरूप से राजद प्रमुख लालू यादव रहे। उन्हें जंगल राज का निर्देशक बता कर बिहार की जनता को डराने की पुरजोर कोशिश की गई। लालू पर हमला जितना तेज हुआ लालू भी उसी रफ्तार से अपने लोगों को पोलराजइज करने में सफल होते दिखे। आरक्षण की पुर्नसमीक्षा पर प्रथम दो चरणों के मतदान के ठीक पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से लालू को एक नई ताकत मिल गई। मोहन भागवत के बयान का भरपूर इस्तेमाल करते हुये लालू यादव इस एक मजबूत राजनीतिक मुद्दा के तौर पर स्थापित करने में काफी हद तक सफल रहे। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जंगल राज 2 की वापसी के भय पर आरक्षण का मसला हावी हो गया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान पहले दो चरण के मतदान में लालू के लिए बोनस साबित हुआ।

यूपी के दादरी में गोमांस खाने के शक में अखलाक की पीटपीट कर की गई हत्या का असर बिहार की चुनावी फिजा पर देखा गया। इस मसले  पर लालू की जुबान भी फिसल गई और उन्होंने यहां तक कह दिया कि हिन्दू भी बीफ खाते हैं। इसे लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लालू पर हमलावर हुये तो लालू ने गुजरात के दंगों की याद दिलाते हुये अमित शाह को नरभक्षी करार दिया। बिहार के चुनावी मैन्यू में बीप के मुद्दे को यहां के लोग पसंद नहीं कर रहे थे, जबकि बीजेपी के कई बड़बोले नेता लगातार इस पर बयानबाजी करते रहे। इस दौरान राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के कई नेता बीफ को लेकर अपने अतिवादी बयानों के साथ जाने अनजाने बीजेपी को परेशानी में घसीटते रहे। इन नेताओं का मुंह बंद करने के लिए अमित शाह को उनकी क्लास भी लगानी पड़ गई, लेकिन तब तक दो चरण का चुनाव निकल चुका था। इस दौरान बिहार के एक मजबूत सेक्यूलर तबका लालू यादव को कट्टर संस्कृतिवाद के खिलाफ बिहार में एक आवश्यक राजनीतिक बुराई के रूप में मनोवैज्ञानिक तौर पर स्वीकार कर चुका था। मोदी को लेकर प्रचंड प्रचार का नकारात्मक असर इस तबके पर पड़ा। भाजपा के खिलाफ नीतीश और लालू की तथाकथित नापाक दोस्ती को स्वीकार करने में इसे परेशानी नहीं हुई। अखलाक और कलबुर्गी की हत्या के खिलाफ देशभर के साहित्यकारों द्वारा लौटाये गये साहित्य पुरस्कारों ने इस तबके को नीतीश और लालू के पक्ष में धकेल दिया।

पहले दो चरण के चुनाव में महिला मतदाताओं की बढ़ी हुई भागीदारी भी बीजेपी और एनडीएन के पक्ष में नहीं दिख रही है। बिहार के स्थानीय चुनावों में महिलाओं की 50 फीसदी की भागदारी ने यहां की महिलाओं को राजनीतिक तौर पर जागरूक कर दिया है। इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जाता है। अपनी सोशल इंजनीयरिंग के तहत नीतीश कुमार ने पिछले दस साल में बड़े सलीके के साथ यहां की महिलाओं को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में गोलबंद करने में सफल रहे हैं। भविष्य में सरकारी नौकरियों में 35 फिसदी आरक्षण का वादा करके नीतीश कुमार ने अपने इस पत्ते को सही तरीके से खेला है। प्रथम दो चरणों के मतदान में पिछड़े और दलित तबके महिलाओं का भारी संख्या में मतदान के लिए बूथ पर आना इस बात की तस्दीक कर रही है कि बिहार में हवा का रूख महागठबंधन के पक्ष में है। जातीय गोलबंदी के मोर्चे पर भी महागठबंधन एनडीए पर भारी पड़ती नजर आई।

भाजपा कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में अमित शाह यह दावा करते हुये नजर आये कि पहले दो चरणों में एनडीए को कम से कम 58 सीटें मिलेंगी। वहां मौजूद पत्रकारों का समूह अमित शाह के इस दावे से इत्तफाक नहीं रख रही थी। चर्चा के दौरान कई पत्रकार इस बात को खुलकर कह रहे थे कि पहले दो राउंड में एनडीए पीट चुकी है। अगर अगले तीन राउंड में यह अपना प्रदर्शन ठीक नहीं करती है तो समझो बिहार इसके हाथ से निकल गया। मोदी के विकास मॉडल को लालू यादव ने आरक्षण से धो दिया है। वैसे सवर्ण युवाओं का रुझान भाजपा के पक्ष में देखा गया, जबकि पिछड़े और दलित समाज के युवा मोदी के नाम पर नाक भौ सिकोड़ते हुये नजर आये।

पटना एयरपोर्ट से पीएम मोदी के होर्डिंग को चुनाव आयोग से कह कर हटवाने के बाद महागठबंधन का आत्मविश्वास कुछ और बढ़ गया है। बीजेपी इस मामले में भी खुद यह कहते हुये यह काम एजेंसी का है खुद का बचाव करती हुई नजर आ रही है।

बिहार के चुनाव में भाजपा द्वारा पीएम मोदी को दाव लगाने की वजह से राष्ट्रीय मीडिया भी लगातार केंद्र सरकार से संबंधित मुद्दों को छेड़ती रही, जिससे भाजपा की स्थिति असहज सी हो गई थी। यहां तक कि भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में जब एनडीटीवी की परखा दत्त ने दादरी और देश में बढ़ते धार्मिक अष्हिष्णुता पर सवाल दागे तो अमित शाह को कहना पड़ गया कि आप कहां बिहार के चुनाव में दूसरे सूबों की बात कर रही हैं। इतना ही नहीं उन्होंने बिहार के पत्रकारों को यह नसीहत भी दे डाली कि कम से कम यहां की मीडिया की तो अपने एजेंडे को सामने रखना चाहिए। लगता है बिहार की मीडिया के पास कोई एजेंडा ही नहीं है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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