सम्पादकीय पड़ताल

क्या अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा भी समझते हैं तेजस्वी?

क्या सोशल मीडिया पर का एकाऊउंट बना कर किसी सरकारी अधिकारी, पुलिसकर्मी, मंत्री या फिर सार्वजनिक नेता का चरित्र हनन करने की स्वतंत्रता देना उचित है? ऐसी हरकत करने वाले को क्या साइबर अपराधी के तौर पर चिन्हित करके उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना उचित नहीं है? यदि सभी लोग जिनके पास इंटरनेट या फिर मोबाइल की सुविधा है एक दूसरे को अपशब्द कहने लगे तो फिर क्या समाज में अराजकता की स्थिति पैदा नहीं होगी? क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने समझते हैं तेजस्वी यादव या फिर सोशल मीडिया पर  बिहार की अस्मिता को धूमिल करते हुये लोगों को गुमराह कर रहे हैं तेजस्वी यादव?

बिहार में इकोनॉमिक ऑफेन्स यूनिट के एडिशनल डायरेक्टर जनरल नय्यैर हुसनैन द्वारा सोशल मीडिया पर सरकारी अधिकारियों, नेताओं, विधायकों व मंत्रियों के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण टिप्पणियों पर कार्रवाई के संबंध में जारी किये गये दिशा निर्देश के बाद हंगामा की स्थिति पैदा हो गयी है। सार्वजनिक तौर पर कुछ प्रदर्शनकारियों के बीच खड़े होकर पटना के डीम का उपहास उड़ाने वाले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव तो इसे सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का तुगलगी फरमान करार दे रहे हैं। कुछ टीवी चैनल के पत्रकार और अखबारों से जुड़े लोगों ने भी इस आदेश के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है और सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े आलेख लिखकर समझा रहे हैं कैसे यह आदेश अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने वाला है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी की कोई सीमा है,कोई सीमा होनी चाहिए या फिर इसे किसी का भी खेत चरने के लियए बौराये हुये सांड़ की तरह आजाद छोड़ देना चाहिए ?

व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता की सीमा की विवेचना करते हुये प्रसिद्ध चिंतक जॉन स्टुअर्ट मिल कहता है, “व्यक्ति तभी तक स्वतंत्र है जब तक उसकी स्वतंत्रता किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक न बने। किसी को गाली देने या फिर अपमानित करने की स्वतंत्रता देने की इजाजत वह हरगिर नहीं देता। दुनियाभर के तमाम कानून भी इस फलसफे को स्वीकर करते हैं। यदि बिहार हुकूमत खुलेआम या छद्म रूप धारण करके सोशल मीडिया पर राज्य की प्रतिष्ठित संस्थाओं और उनसे जुड़े लोगों को चिन्हित करके साइबर अपराध के दायरे में लाने की प्रतिबद्धता जताती है तो इसमें गलत क्या है?

देखने में आया है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों को गलत तरीके से मोबलाइज करके सार्वजनिक तौर पर एक दूसरे खिलाफ नफरत फैलाते हुये फसाद पैदा करने के लिए भी किया जाता रहा है। क्या ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के लिए बिहार सरकार का प्रतिबद्ध होना लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा है?

सोशल मीडिया लोगों के लिए बंदर के हाथ में उस्तुरा भी साबित हो रहा है। समाज को जख्मी करते-करते लोग खुद को भी जख्मी कर रहे हैं। जैसे राज्य व्यक्ति को आत्महत्या करने का अधिकार नहीं देता है, क्या उसी तरह सोशल मीडिया पर राज्य का नियंत्रण जरूरी नहीं  है ?

जनतंत्र में पक्ष और विपक्ष की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। जनहित के मुद्दों को लेकर दोनों के बीच में वाद-विवाद के लिए कई मंच निर्धारित किये गये हैं। वाद-विवाद की इस प्रक्रिया से जनतंत्र में और निखार आता है और जनतंत्र की यही खूबसूरती भी है। समस्या तब शुरु होती है जब पक्ष और विपक्ष के जन प्रतिनिधि किसी कारणवश अपनी निर्धारित भूमिका से निकलकर अवांछित तरीके से मनमाना व्यवहार करने लगते हैं और अपना स्वार्थ साधने में जनतंत्र के तमाम मापदंडों की धज्जियां उड़ाने लगते हैं। विरोध का यह स्वरूप सोशल मीडिया पर आकर पूरी तरह से गैरमर्यादित होकर और भी खतरनाक रूप धारण कर लेता है। जैसा कि अब नेता प्रतिपक्ष और राजद के सोशल एकाउंटों पर अब देखने को मिल रहा है।

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठे व्यक्तियों ने अपने शानदार व्यक्तित्व के जरिये इस पदा की गरिमा में और इजाफा किया है। चाहे जनहित के मुद्दों के प्रति सरकार को आकर्षित करने की बात हो या फिर सरकार के किसी फैसले को प्रभावित करने की बात हो। नेता प्रतिपक्ष की तरफ से हमेशा मर्यादित तरीके से व्यवहार किया गया है। बिहार की गौरवशाली संस्कृति के अनुकूल व्यवहार और भाषा के स्तर पर उनलोगों ने हमेशा शालिनता का परिचय दिया है। लेकिन जब से तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठे हैं तब से पद की गरिमा में निरंतर ह्रास होता जा रहा है। जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल वह सोशल मीडिया पर राज्य के चयनित मुख्यमंत्री और सरकार के लिए कर रहे हैं वह बिहार की गौरवशाली लोकतांत्रिक परंपरा को समृद्ध करने वाली कतई नहीं है। उदाहरण के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री पद को कई बार सुशोभित कर चुके नीतीश कुमार के लिए नेता प्रतिपक्ष के ओहदे पर बैठकर कर तेजस्वी यादव लगातार उनके लिए“अनुकंपाई”व“थके हुये”  जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जो निश्चिततौर पर उनकी कमअक्ली, भाषा की तंगी और बिहार विधानसभा चुनाव में शिकस्त से बौखलाये एक विकृत व्यक्ति के व्यक्तित्व को दर्शा रहा है।

हो सकता है कि उनके कुछ समर्थक सोशल मीडिया पर उनकी भाषा और रोड छाप शैली को पंसद करते हो। लेकिन बिहार की समृद्ध संस्कृति इस तरह की भाषा और शैली को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। विगत 15 वर्षो में बिहार ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने आत्मगौरव और आत्म सम्मान का जोरदार तरीके से प्रदर्शन किया है। राष्ट्र निर्माण में बिहार के लोगों की महत्वपूर्ण और अथक भूमिका को आज पूरा देश सराह रहा है। आज बिहारियों को देशभर में सम्मान मिल रहा है। सोशल मीडिया की पहुंच देश और दुनिया के हर कोने में बड़ी सहजता से है।

ऐसी स्थिति में नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठकर सोशल मीडिया के जरिये पूरे देश भर में बिहार का अपमान करते रहने का अधिकार तेजस्वी को कैसे दिया जा सकता है? अपने विरोधी खेमा से राजनीतिक लड़ाई लड़ने का यह मतलब तो नहीं है कि आप पूरे बिहार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपमानित करे?

शालीन भाषा में इनको यह स्पष्ट करना चाहिए इनकी लड़ाई सरकार से है या फिर पूरे बिहार से? नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठकर तेजस्वी यादव के सड़क छाप भाषा और व्यवहार का खामियाजा देशभर में रह रहे बिहार के लोग भला क्यों भुगते? मुख्यमंत्री रहते तेजस्वी यादव के पिता लालू प्रसाद यादव और उनकी मां ने तो बिहार की प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय स्तर पर धूल धूसरित कर दिया था। दूसरे राज्यों में बिहार के लोग अपनी पहचान तक छिपाने लगे थे। नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठकर क्या एक बार फिर तेजस्वी यादव वही इतिहास दुरहराने की कोशिश नहीं कर रहे हैं?

इतना ही नहीं, अपनी विकृत मानसिकता और भाषा का शिकार बिहार के नेता प्रतिपक्ष पुलिस और प्रशासन व्यवस्था को भी बना रहे हैं। क्या नेता प्रतिपक्ष होने के नाते उनका काम सिर्फ भौंडे तरीके से सवाल उठना और पुलिस और प्रशासन की गरिमा को तार-तार करना है? यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि आज जनतंत्र यहां तक विकास की एक लंबी प्रक्रिया के बाद पहुंचा है। इसकी गरिमा को नष्ट करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। पक्ष और विपक्ष आते हैं जाते हैं, लेकिन लोकतंत्र एक स्थायी और निरंतर विकसित होने वाली संस्था है।

लोगों से मिलना, बिहार के जनहित से संबंधित मुद्दों को मजबूते से उठना यह न सिर्फ नेता प्रतिपक्ष का अधिकार है, बल्कि यह अधिकार हर राजनीतिक दल को प्राप्त है।  क्या इस बात को लेकर अब तक बिहार में किसी की गिरफ्तारी हुई है? यदि नहीं तो बेवजह गिरफ्तारी की बाते क्यों की जा रही है?  यह किसी उकसावेबाज नेता का काम हो सकता है, नेता प्रतिपक्ष का नहीं।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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