हार्ड हिट
क्या आम आदमी पार्टी कांग्रेस की बी टीम है?
क्या आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस की बी टीम है, जिसे चुनावी दंगल में भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए उतारा जा रहा है? राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लेकर इन दिनों यह बहस छिड़ी हुई है। भले ही आम आदमी की टोपी पहन कर अरविंद केजरीवाल लगातार भाजपा और कांग्रेस पर निशाना साधते रहे हों लेकिन सत्ता के गलियारों से लेकर पत्रकारों के बीच आम आदमी पार्टी को एक ‘वोट कटवा’ पार्टी के रूप में ही देखा जा रहा है, जो सीधे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाकर कांग्रेस को लाभ पहुंचाने की रणनीति पर अमल कर रही है। चुनावी समर पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि इस साल होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी को फलने-फूलने के लिए खाद-पानी कांग्रेस की ओर से मुहैय्या कराई जा रही है और इसकी निगरानी सीधे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निवास से की जा रही है। बहरहाल इसमें सचाई चाहे जो हो, इतना तो तय है कि आम आदमी पार्टी की वजह से सीधा नुकसान भाजपा को होने वाला है।
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पिछले तीन टर्म से दिल्ली में जमी हुई हैं। भाजपा उनको उखाड़ने के लिए लगातार जोर लगा रही है। हर बार कांग्रेस और भाजपा के बीच लड़ाई उन्नीस-बीस की होती है। चूंकि पिछले 15 साल सें शीला दीक्षित दिल्ली पर काबिज हैं, ऐसे में स्वाभाविक है कि उनके कट्टर समर्थकों के साथ-साथ कट्टर विरोधी भी दिल्ली में विराजमान हैं। यदि वह अपने विरोधियों को विभाजित करते हुये अपने पारंपरिक समर्थकों को समेट ले जाती है तो एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता। जानकारों की मानें तो आम आदमी पार्टी की भूमिका शीला दीक्षित के विरोधियों को बांटने की होगी। सियासत का एक सिद्धांत है, ‘यदि लोगों को अपने पक्ष में नहीं कर सकते हो, तो उन्हें कंफ्यूज करो।’ इसका फायदा विरोधी मानसिकता वाले लोगों के बिखराव के रूप में हासिल होता है। कहा जा रहा कि एक सोची समझी रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस विरोधी लोगों को कंफ्यूज करने का ही काम कर रही है।
यदि थोड़ी देर के लिए परंपरागत कांग्रेस समर्थकों को दरकिनार करके देखा जाये तो दिल्ली का ‘इलीट वर्ग’ शीला दीक्षित के विकास मॉडल से पूरी तरह से खुश है। इस इलीट वर्ग को ध्यान में रखकर शीला दीक्षित दिल्ली के इन्फ्रास्ट्रक्चर में मूलभूत परिवर्तन करने में कामयाब रही हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें कुछ अलोकप्रिय कदम उठाने भी उठाने पड़े हैं। इसमें सड़कों के चौड़ीकरण के लिए अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का कार्य भी शामिल है। ऐसा करके शीला दीक्षित ने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का ही परिचय दिया है, जिसे दिल्ली के इलीट वर्ग ने पसंद किया है। दिल्ली का इलीट वर्ग विकास के इस मॉडल को और भी मजबूत करने के पक्ष में है। ऐसे में कहा जा सकता है कि यहां के इलीट वर्ग पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में खड़ा है। आम आदमी की टोपी पहनने वाले अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली के विकास मॉडल को कभी चुनौती नहीं दी है। छिटपुट रूप में भू-माफियाओं पर निशाना साधने के बावजूद दिल्ली के इलीट वर्ग को अपने हक में करने की उन्होंने कभी कोई कोशिश नहीं की है, जिसे एक तरह से उनके द्वारा कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देना ही माना जा रहा है।
अरविंद केजरीवाल की नजर मुख्यरूप से दिल्ली के ‘मिड्ल क्लास’ पर है, जिसे भाजपा अपना परंपरागत वोट बैंक के रूप में देखती है। दिल्ली में बिजली-पानी के मसले को उठाकर अरविंद केजरीवाल भाजपा के इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि अपनी कोशिश में वह सफल होते हैं तो इसका सीधा असर भाजपा पर होगा। यह सच है कि दिल्ली के ‘मिड्ल क्लास’ का एक तबका कई वजहों से कांग्रेस और शीला दीक्षित से नाराज है। खासकर एफडीआई और महंगाई के मसले को लेकर दिल्ली के तमाम छोटे-बड़े कारोबारी कांग्रेस और शीला दीक्षित को सबक सिखाने के मूड में हैं। इसकी पूरी संभावना है कि अपनी नाराजगी का इजहार यह तबका भाजपा के पक्ष में मतदान करके कर सकता है। अरविंद केजरीवाल मुख्यरूप से इसी तबके को कंफ्यूज करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इस काम में वह कहां तक सफल हो पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा। जानकारों का कहना है कि यदि इस तबके को आम आदमी पार्टी साधने में कामयाब हो जाती है तो शीला दीक्षित की मुश्किलें आसान हो जाएंगी। यही वजह है कि बिजली बिल के मसले पर दिल्ली में कानून तोड़ने के बावजूद शीला दीक्षित की सरकार ने अरविंद केजरीवाल पर हाथ डालना मुनासिब नहीं समझा। कांग्रेस के नीति निर्धारकों को पता है कि अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के माध्यम से ‘मिड्ल क्लास’ के उस तबके को, जो भाजपा के पक्ष में जा सकता है, कुशलता से तोड़ रहे हैं।
यदि गौर से देखा जाये तो आम आदमी पार्टी का नेतृत्व इस वक्त ‘अपर मिड्ल क्लास’ के लोगों के हाथ में हो, जिनमें वकील, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व प्रशासक शामिल हैं। यह नेतृत्व मिड्ल क्लास को तो टच कर रहा है लेकिन ‘लोअर क्लास’ से पूरी तरह से दूर है, क्योंकि दिल्ली में लोअर तबके पर भी शीला दीक्षित की मजबूत पकड़ है। दिल्ली में परंपरागत रूप से बसी बस्तियों पर भी शीला दीक्षित ने पूरा ध्यान दिया है। हालांकि इन बस्तियों में भाजपा भी लगातार जोर आजमाइश करती आ रही है। इसके बावजूद लोअर तबके में शीला दीक्षित की मकबूलियत भाजपा नेताओं की तुलना में अधिक है। अभी तक आम आदमी पार्टी लोअर क्लास से पूरी तरह दूरी बनाये हुए है। दिल्ली में पारंपरिक रूप से कांग्रेस का कट्टर समर्थक लोअर तबका आम आदमी पार्टी के एजेंडे में शामिल ही नहीं है। आम आदमी पार्टी के तमाम ‘अपर मिड्ल क्लास’ नेता कांग्रेस के साथ जुबानी जंग में भ्रष्टाचार के खिलाफ तो बात करते हुये नजर आते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर कांग्रेस के हित को चोट पहुंचाने की मानसिकता से कोसों दूर हैं। दिल्ली की सियासत पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि आम आदमी पार्टी पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में काम कर रही है।
आम आदमी पार्टी की ओर से दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कुछ उम्मीदवारों के नाम जारी होने के बाद जानकार इस बात का आकलन करने में लगे हुये हैं कि ये उम्मीदवार विभिन्न क्षेत्रों में भाजपा को कितना नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं। इसके साथ ही उस खाद पानी को लेकर भी अटकलें लगा रहे हैं, जो इस पूरे अभियान पर कांग्रेस द्वारा खर्च किया जा रहा है। दिल्ली में पत्रकारों के महफिलों में यह चर्चा आम है कि अरविंद केजरीवाल आम आदमी की टोपी पहन कर आम आदमी को ही टोपी पहनाने की जुगत में लगे हुये हैं। बहरहाल आम आदमी और कांग्रेस पार्टी के बीच के सांठगांठ की सच्चाई चाहे जो हो, फिलहाल आम आम आदमी के चुनावी मैदान में उतरने से भाजपा नेताओं के माथे पर बल पड़ा हुआ है। भाजपा के तमाम नेताओं को इस बात का अहसास है कि आम आदमी पार्टी से सबसे अधिक नुकसान उन्हीं को होने वाला है। कहीं ऐसा न हो कि आम आदमी पार्टी की वजह से भाजपा के लिए दिल्ली की ताजपोशी दूर की कौड़ी ही साबित हो। वैसे आम आदमी पार्टी के नेता यही मान रहे हैं कि इस साल होने वाला दिल्ली विधान सभा का चुनाव उनके लिए लिटमस टेस्ट साबित होने वाला है। इसके नतीजों पर ही उनका मुस्तकबिल निर्भर करेगा।