क्या वीरचंद पटेल स्थित भाजपा के मीडिया सेल को पिछड़ा माना जाये ?
कमोबेश तमाम राजनीतिक दल परंपरागत तरीके से हांक रहे हैं मीडिया को
क्या पटना के वीरचंद पटेल स्थित भारतीय जनता पार्टी के मीडिया सेल को पिछड़ा माना जाये ? इस सवाल के जवाब में पार्टी के मीडिया इंचार्ज राकेश कुमार सिंह थोड़ा भड़कते हुये कहते हैं, “जरूर पिछड़ा मानिए, क्यों नहीं मानिएगा, पूरा बिहार ही पिछड़ा है।”
“जब कम्युनिकेशन करने के लिए आप से एक ई-मेल मांगा गया तो आप फोन पर किसी और से पूछ रहे हैं कि पार्टी का कोई ई-मेल आईडी है। पार्टी का मेल आईडी तो सहजता से आपकी जुबान पर होनी चाहिए। यदि नहीं है तो स्वाभाविक तौर पर आप पिछड़े हैं। और माफ किजीये आपके मीडिया सेल में एक भी कंप्यूटर नहीं दिखाई दे रहा है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, हालैंड, पोलैंड में तमाम राजनीतिक पार्टियों का कार्यालय अतिआधुनिक तकनीक से लैस है। भाजपा तो एक राष्ट्रीय पार्टी है, भारत को लीड करने की स्थिति में है। ऐसे में आपके आफिस को देखकर तो सहजता से यह लगता है कि यहां पिछड़ापन है।” इस काउंटर का जबाव देने के पहले ही राकेश कुमार सिंह अपने फोन पर व्यस्त हो गये और भाजपा के मीडिया सेल के ही अमित रंजन ने मोर्चा संभालते हुये कहा, “यहां पर अभी तक मेल से खबर लेने का कल्चर ही नहीं डेवलप हुआ है। पत्रकार लोग आते हैं और घंटों यहीं पर बैठे रहते हैं। जब कोई जरूरी कार्यक्रम होता है तो हमलोग उनको फोन कर देते हैं। आप भी अपना फोन नंबर दे दिजीये, हम आपको लगातार सूचना देते रहेंगे। आप आ जाइएगा।”
“और कोई नहीं आना चाहे, और वो सारी सूचनाएं भी प्राप्त करना चाहे जो आप जारी कर रहे हैं, मेल के जरिये, तो आप क्या करेंगे?
“अब आप जैसे कुछ लोग आएंगे और दबाव बनाएंगे तो हमलोग उस सिस्टम को अपना लेंगे। सुविधाएं तो यहां पर सारी मौजूद हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यहां पर विडियो कांफ्रेंसिंग तक की व्यवस्था है, लेकिन कोई नहीं करता है। और हमलोग रूट लेवल के लोगों तक कम्युनिकेट करना पड़ता है, जो मेल के जरिये संभव नहीं है। इसके अलावा केंद्र से भी इस आफिस का आधुनिकीकरण करने के बारे में कई बार बात हो चुकी है, लेकिन ध्यान नहीं दिया जा रहा।”
तो आप यह मानते हैं कि यहां का कार्यालय तकनीकी तौर पर पिछड़ा है?
मीडिया इंचार्ज राकेश कुमार सिंह फोन से फ्री होने के बाद बीच में कूद पड़े, “आप पहले ही बहुत कुछ बोल चुके हैं। हमें पिछड़ा तक बना दिया।”
“हमलोग डाट काम की पत्रकारिता कर रहे हैं, तो स्वाभाविक है कि उसी मोड में खबर की मांग करेंगे। और जो स्थिति यहां पर दिख रही है उसे देखकर आनलाईन पत्रकारिता का कोई भी आदमी यही कहेगा कि आपका आफिस पिछड़ा है।”
बात के सिलसिले को अमित रंजन ने एक बार फिर लपकते हुये कहा, “मेल का इस्तेमाल हमलोगों ने शुरु करने की कोशिश की थी। आपको पता है सिर्फ 13 मेल आये। यहां लोग मेल के जरिये कम्युनिकेशन करना पसंद ही नहीं करते। अब चाहे जो कारण हो, उनके पास समय की अधिकता हो या फिर वे खुद पार्टी कार्यालय आना पसंद करते हो। लेकिन अब हम मेल के जरिये भी सूचना देने की व्यवस्था बना लेंगे।”
तकनीकी क्रांति के युग में सत्ता पर दावेदारी करने वाले राजद के कार्यालय की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी, या यूं कहना बेहतर होगा कि इससे भी बदतर थी। चारों तरफ कुर्सियां ही कुर्सियां दिख रही थीं, लोग इधर उधर बैठकर गप्पे मार रहे थे। कंप्यूटर का कहीं कोई नामो निशान नहीं था। पूछने पर एक कार्यकता ने बताया कि हाकिम लोगों के कमरे में कंप्यूटर और नेट तो है लेकिन इनका वे कैसे इस्तेमाल करते हैं मुझे नहीं पता। वैसे अभी तक मेरी जानकारी में नहीं है कि मेल के जरिये यहां से सूचना दी जाती है। कुछ दूसरे पोलिटिकल कार्यालयों में चक्कर लगाने के बाद जो स्थिति दिखी वह तकनीकी क्रांति के नजरिये से निराश करने वाली ही थी। बिहार में लगभग तमाम दल विकास के हामी हैं, ऐसे में व्यापक संचार के लिए तकनीकी क्रांति का फैलाव करते हुये यहां के राजनीतिक कार्यालय नहीं दिख रहे हैं। तो क्या इन राजनीतिक दलों की नजर में वाकई में बिहार तकनीकी क्रांति के वरदान से अभी कोसो दूर है? व्यापक पैमाने पर गली मुहल्लों में खुलने वाले कैफे तो कुछ और कहानी बयां कर रही हैं। नये शहरी रंगरूट तो आनलाईन ट्रेडिंग के साथ-साथ तमाम तरह के इनफोर्मेशन के लिए जबरदस्त तरीके से नेट खंगाल रहे हैं। इनफोर्मेशन को लेकर इनके भूख को शांत करने के लिए खुराक कम पड़ रही है। इनफार्मेशन के लिए अब लोग सिर्फ अखबार या टीवी पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। तमाम तरह के सरकारी और गैर-सरकारी विज्ञापनों की बाढ़ ने अखबार और टीवी की विश्वसनीयता की कमर कमजोर कर दी है। दिन भर की रुटीन खबरों से इतर विशेष जानकारी के लिए बिहार की नई पीढ़ी इंटरनेट का ही सहारा ले रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद ब्लागबाजी कर रहे हैं, और उनका ब्लाग पढ़ा भी जा रहा है। ऐसे में उनकी पार्टी जदयू के कार्यालय को तो कम से कम आधुनिक संचार व्यवस्था से जुड़ा होना चाहिये था। लेकिन वहां पर भी परंपरागत तरीके से सूचनाओं को प्रेषित करने का रिवाज बना हुआ है।
Sampadak mahodaya,In netao ka karyakaal sirf apni sampatti badane ke liye hota hai.Inki property ka byora to yahi kahata hai.Ab baat vikas ki ho ya Hi-teck hone ki,inki bala se.
Well, I don’t know if that’s going to work for me, but definitely worked for you! 🙂 Excellent post!