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गायिकी से शिल्‍पा राव को मिली मुकम्‍मल पहचान

सर्वेश कश्‍यप

शिल्‍पा राव आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। अद्भुत गायिकी के दम पर संगीत की दुनियां में सिक्‍का जमा चुकी शिल्‍पा छोटे शहर से आने के बावजूद अपनी मेहनत और लगन से य‍ह मुकाम हासिल किया। वर्तमान में शिल्‍पा की आवाज देश-विदेशों में पसंद किये जाते हैं। शिल्‍पा विभिन्‍न शौलियों में गायिकी के लिए जानी जाती है,गानों में वेरियेशन लाने की कोशिश करती हैं। वे कहती हैं कि गायिकी मेरा पैशन है ये मुझे लोगों से कनेक्‍ट करती है।

मधुबनी पेंटिंग की दिवानी हैं शिल्‍पा

शिल्‍पा को बिहार की मधुबनी पेंटिंग से काफी लगाव है। शायद इसके पीछे उनका बिहार कनेक्‍शन भी हो सकता है। मूलत: जमशेदपुर से आने वाली शिल्‍पा खुद को बिहारन ही मानती हैं। क्‍योंकि उनका जन्‍म अविभाजित बिहार में हुआ था और बचपन का एक हिस्‍सा यहीं बीता। इसलिए उन्‍हें बिहार से खास लगाव है। मधुबनी पेंटिंग उन्‍हें बेहद पसंद है। इस बारे में शिल्पा कहती हैं जब भी मैं देश से बाहर जाती हूं,लोगों को मधुबनी पेंटिंग गिफ्ट करती हूं, जो खास तौर पर बिहार से ही मंगवाती हूं। मुझे मधुबनी पेंटिंग से बनने वाली ड्रेस भी पसंद है। राव बिहारी फूड लिट्टी चोखा, दही – चूड़ा आदि की दीवानी है। वे बिहार आना चाहती हैं। जब भी यहां आती हैं, बिहार को खूब इंज्‍वाय करती हैं। कहती हैं बिहार पहले से बहुत बदल गया है, यहां काफी विकाश हुए हैं।

शिल्‍पा पिता को मानती हैं प्रेरणा

शिल्‍पा राव अपने पिता एस वेंकेट राव को संगीत कैरियर में अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा मानती हैं। कहती हैं कि उनका टीचिंग उम्दा था और उस समय मेरे लिए बहुत महत्‍वपूर्ण भी। उन्‍होंने मेरे  पसंदीदा संगीत से मुझे मिलवाया। संगीत के विभिन्‍न रागों की बारिकियों से समझाया। खुद को संगीत के लिए दीवानी कहने वाली राव बताती हैं कि पापा बचपन के दिनों में उस्ताद अमीर खान,मेहदी हसन और नुसरत फतेह अली खान के गाने सुनाते थे और संगीत के सुरों से अबगत करवाते रहते थे। बिना पापा के इस मुकाम तक पहुंच पाना आसान नहीं था। शिल्‍पा अपने पैरेंटस की दुलारी भी हैं।

बॉलीवुड में शिल्‍पा की इंट्री

शिल्‍पा ने 13 साल की उम्र में मुंबई का रूख कर लिया था। कॉलेज के दिनों में उन्होंने कई जिंगल गाये । बाद पार्श्‍व और गजल गाय‍क हरिहरन से मुलाकात के दौरान उन्‍हें सिंगर बनने की प्रेरणा मिली और शिल्‍पा ने उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान से प्रशिक्षण भी लिया। शिल्‍पा को बॉलीवुड में बतौर सिंगर प्रसिद्ध कंपोजर और लिरिसिस्‍ट मिथुन शर्मा और प्रसिद्ध संगीतकार शंकर एहसान लोय ने मौका दिया। 2007 में शिल्‍पा को फिल्‍म ‘अनवर’ का गाना ‘तो से नैना’ के लिए चुना। शिल्‍पा कहती हैं कि यह गीत मेरे दिल के बहुत करीब है। इसके बाद शिल्‍पा ने कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा और एक के बाद कई हिट गाने दिए। डोल यारा डोल (देव डी 2009), मुडी मुडी इत्तेफाक से (पा 2009), अंजाना अंजानी (अंजाना अंजानी 2010), इश्‍क‍ सवा (जब तक है जान 2012), मलंग (धूम 3, 2013), मेहरबां (बैंग बैंग 2014) और बुलिया व आज जाने की जिद्द न करो (ऐ दिल है मुश्किल 2016) शिल्‍पा के हिट गाने हैं।

शिल्‍पा की उपलब्धियां

शिल्‍पा को 2009-10 में  फ़िल्म बचना ऐ हसीनों का गाना ‘खुदा जाने’ के लिए स्‍क्रीन अवार्ड में बेस्‍ट फीमेल प्‍लेबैक सिंगर का अवार्ड फिल्‍म चुका है। इसके अलावे उसी वर्ष उन्हें गाना ‘खुदा जाने’ के लिए बेस्‍ट फीमेल प्‍लेबैक सिंगर के तौर पर 59वें फिल्‍म फेयर अवार्ड और इंटरनेशनल इंडियन फिल्‍म अकादमी अवार्ड और स्‍क्रीन अवार्ड में नॉमिनेट हुई। शिल्‍पा एक मात्र ऐसी गायिका हैं, जिन्‍हें पाकिस्‍तान की प्रतिष्ठित कोक स्‍टूडियो में गाने का मौका मिला। कोक स्‍टूडियो में ‘पार चना दे’ गया, जिसे लोगों ने खूब पसंद भी किया। शिल्‍पा भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर आधुनिक सिनेमा में एक नये युग की शुरूआत पर 2013 में बॉम्‍बे टॉकीज के गीत अपना बॉम्‍बे टॉकीज का हिस्‍सा रह‍ चुकी हैं। 2011 में बेकाबू गाने के लिए इंडियन टेलीवीजन अकादमी अवार्डस में बेस्‍ट सिंगर और 2014 में कोक स्‍टूडियो सीजन 2 में ‘दम दम’ गाने के लिए गोल्‍डन इंडियन म्‍यूजिक एकेडमी अवार्डस में बेस्‍ट म्‍यूजिक डेब्‍यू का अवार्ड मिला। अतिउत्साही शिल्पा गायिकी को लेकर काफी सकारात्मक हैं। गायिकी को लेकर प्रयोग करना इन्हें बेहद पसंद है।

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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