चल मां के दरबार में (कविता)
चल रे साथी..हाथ जोड़ ले
मां के दर्शन कर ले
धुल जाएंगे पाप तेरे
क्यूं मोह-माया में भटके
चल रे साथी…ओ साथी……
जय जगदम्बे… जय मां जय जगदम्बे…
जीवन उसका तर जाता है
जो कोई शरण में आया
चल रे साथी…ओ साथी……
जय जगदम्बे… जय मां जय जगदम्बे…
पल भर में झोली भर दे
महिमा उसकी कोई समझ न पाया
ये तेरे कर्मों का फल है
पैसा कमाकर भी रोया
जिसने तुझको जीवन दिया
उसे ही तूने भुलाया
चल रे साथी…ओ साथी……
जय जगदम्बे… जय मां जय जगदम्बे…
घमंड अपना छोड़ दे
मां ने तुझे बुलाया
पीछे मुड़कर देख ले
क्या खोया क्या पाया
चल रे साथी…ओ साथी……
जय जगदम्बे… जय मां जय जगदम्बे…
लौंग कपूर की आरती करके चुनरी तुम चढ़ाओ
हर डाली से फूल तोड़कर माला उसे पहनाओ
माथे पर तिलक लगाकर अखंड ज्योति जलाओ
मां के गुणगान में ही ध्यान अपना ध्यान लगाओ
शीश झुका दे चरणों में उसके
शीश झुका दे चरणों में उसके….
हो जाएंगे तेरे वारे न्यारे
चल रे साथी…ओ साथी……
जय जगदम्बे… जय मां जय जगदम्बे…
चल रे साथी…ओ साथी….
-राजेश वर्मा, कानपुर
साभार : — http://muhkhole.blogspot.in/