टेस्ट क्रिकेट को बाय-बाय क्यों कर रहे हैं धोनी ?
नीतू कुमारी (नवगीत), पटना
जैसे खिलाड़ी बीच-बीच में लंबा आराम लेते रहे हैं । लेकिन धोनी द्वारा टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के संकेत से उनके प्रशंसक सकते में हैं । धोनी की उम्र अभी मात्र 30 साल है । किसी खिलाड़ी के लिए यह उम्र अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने का होता है । धोनी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे भी रहे हैं । 36 टेस्ट मैचों में कप्तानी कर 17 में वे टीम को जीत दिला चुके हैं । इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के दौरे पर टीम का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा है, तथापि टीम इंडिया ने धोनी के नेतृत्व में एक बार 20-20 विश्व कप और एक बार एकदिवसीय विश्वकप में अपनी बादशाहत साबित किया है । फिर माना यह जाता रहा था कि धोनी एक अच्छे दमखम वाले खिलाड़ी हैं और लंबे समय तक टीम इंडिया का नेतृत्व करते हुए कई विजय-गाथाएं लिखेंगे । लेकिन उनके द्वारा संन्यास के दिए जा रहे संकेतों से यह साफ हो गया है कि धोनी लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेलेंगे । माना जा रहा है कि एकदिवसीय और 20-20 मैचों में अपना कैरियर लंबा खींचने के लिए वह टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेंगे । सवाल यह उठता है कि धोनी ने सबसे पहले टेस्ट क्रिकेट को अलविदा करने की तैयारी क्यों की । उनकी मनोदशा क्या है।
क्रिकेट के पंडित टेस्ट क्रिकेट को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते रहे हैं । टेस्ट क्रिकेट में ही किसी खिलाड़ी के कौशल और तकनीक की असली परीक्षा होती है । ऐसे में धोनी द्वारा टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारी करना इस बात को इंगित करता है कि क्रिकेट पंडितों की सोच और नये खिलाड़ियों की सोच अलग-अलग है । वस्तुतः महेन्द्र सिंह धोनी भारत में नव उदारवादी व्यवस्था अपनाए जाने के बाद उभार लेती पीढ़ी के आइकान रहे हैं । यह पीढ़ी कई मायनों में पुरानी पीढ़ी से भिन्न है । पांच दिनों तक धैर्य रखकर बल्ले और गेंद से जूझना इस पीढ़ी को नागवार लगता रहा है । कम समय में धमाल मचाकर अधिक पैसे कमाना आसान है। क्रिकेट में ज्यादा पैसा 20-20 और एकदिवसीय मैचों में है। जबकि जिस फार्मेट में रणकौशल, धैर्य और तकनीक की असली परीक्षा होती है उससे दर्शक भी दूर जाने लगे हैं । नई पीढ़ी के खिलाड़ी भी उसी रास्ते पर हैं । वस्तुतः टेस्ट क्रिकेट के प्रति उपेक्षा का भाव बढ़ता जा रहा है । 20-20 और एकदिवसीय मैचों के बढ़ते आयोजनों के कारण अंतराष्ट्रीय स्तर पर खेले जानेवाले टेस्ट मैचों की संख्या वैसे भी कम होती गयी है । फिर खिलाड़ी भी इससे मुंह मोड़ने लगे हैं । नव उदारवादी व्यवस्था में ऐसी परिस्थिति प्रायः हर क्षेत्र में देखने को मिल रही है । परंपरा के निर्वाह और धैर्य के साथ कार्य का संपादन किसी को रास नहीं आता । सभी को तुरंत नतीजा चाहिए , चमक चाहिए , तेज तरक्की चाहिए और फिर अपने और अपने परिवार के लिए ढेर सारा खाली समय चाहिए । भला क्रिकेट खिलाड़ी इसका अपवाद कैसे हो सकते हैं । इस पीढ़ी के आइकान धोनी भी शायद ऐसी ही इच्छा रखने वाले इंसान हैं ।