तुम्हें प्यार करते हुए (कविता)
आवेश तिवारी
मुझे अच्छी लगती हैं वो सभी औरतें
जिनसे मुझे प्यार हो सकता था
गुड़िया हाट में घुमती /दुकानदारों से लडती
पर्स में छोटे बड़े नोटों की परतें लगाये
मोटी बिंदी वाली औरतें
वो औरतें/ जो खूबसूरती को प्यार करने की शर्त माने हुए
अपनी उम्र में/ उतनी ही स्थिर हैं
जितनी तुम मेरे प्यार में हो |तुम्हें प्यार करते हुए
मुझे बेहद पसंद आती है
“कभी – कभी ” की राखी गुलजार
जी में आता है
उसे बाहों में ले लूँ
और इस बार
वो मेरे लिए गाये
“कभी – कभी मेरे दिल में ख्याल आता है “तुम्हें प्यार करते हुए
मुझे प्यार आता है /उन दुश्मनों पर
जो बदजात सिर्फ और सिर्फ
तुम्हें चाहने के लिए पैदा हुए हैं
मैं चाहता हूँ कि /उनकी रात के किसी कोने में
मैं भी शामिल होऊं
उनके बालों पर हाँथ फेरूँ या फिर उन्हें अपने हिस्से की नींद दे जाऊं
मैं उन्हें अपनी हथेली के /उस हिस्से को भी चूमने को कह सकता हूँ
जिस पर तुम्हारे होठों के निशान /अब भी सुर्ख हैंतुम्हें प्यार करते हुए
मुझे अच्छे नहीं लगते ग़ालिब
अपनी गलियों में मजमा लगाकर किस्मत का रोना रोते हुए
अगर कभी मिले तो मैं
कह सकता हूँ उनसे
कभी हमारे दरवाजे आओ
गजलों का सफ़र वहाँ से शुरू होता है
जहाँ से तुम आसमान की ओर देखकर मुस्कुराती होतुम्हें प्यार करते हुए
तुम्हें प्यार न करना भी मुझे अच्छा लगता है
मै चाहता हूँ कि
वापस फिर से वहीँ पहुँच जायें
उस एक सुबह में
जहाँ/ एक कोने में भूत बन कर बैठी तुम
वाष्पीकरण के सिद्धांत को समझते –समझते
उस एक सफ़र की और निकल पड़ती हो
जहाँ तुम्हें
उड़े हुए /खाली और बेतरतीब से दिन मिलते हैं
फिर भी मेरे प्यार में पड़ी तुम
बार –बार बूँद बन पिघलती हो /मेरे सीने पर
और जहाँ से मैं –
तुम्हें प्यार करते हुए
तुम्हें प्यार न करने की कोशिशें जारी रख सकता हूँ
***
बढिया…क्या बात है?