नेचर

दुर्घटनाओं को आमंत्रण देता इको पार्क।

 

राजधानी वाटिका के नाम से मशहूर सचिवालय परिसर से सटा हुआ राजधानी का इको पार्क, अत्यंत सुदंर, सुव्यवस्थित एवं सुरक्षित । साफ सुथरा और प्राकृतिक मनोरम से भरपूर यह पार्क लोगों के बीच नीतीश सरकार और नीतीश की सराहना का केंद्र बना हुआ है। सुबह शाम की सैर का भी भरपूर लुत्फ यहाँ उठाया जाता है। इन सारी अच्छी बातों के बीच बुराई तो यह है कि यह पार्क आज कल प्रेमी जोड़ों का भी सैरगाह बना हुआ है। सुबह शाम में कम परंतु पूरे दिन इस पार्क पर प्रेमी जोड़ों का कब्जा रहता है और यही इस पार्क की सबसे बड़ी खामी बनी हुयी है । इन जोड़ों को सीधे सड़कों पर से ही विभिन्न मुद्राओं में आलिंगन बद्ध या चिपक कर बैठे हुये देखा जा सकता है। प्रेम करना सदियों से अपराध नहीं है । यह तो प्रकृति प्रदत्त अधिकार है और फिर सूबे  के मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार किया है कि प्यार पर पहरा तो लगाया नहीं जा सकता एवं प्रेमी जोड़े आखिर जायेंगे कहाँ ? बात सही भी है परंतु तकलीफ तो तब बढ़ जाती है जब इन जोड़ों को देखने के लिये सड़कों से गुजरने वाले वाहनों पर सवार लोगों की निगाहें लगातार उस पार्क की तरफ होती हैं। वाहन चाहे चारपहिया हो अथवा दो पहिया , साइकिल सवार हो या फिर पैदल चलने वाले , सभी की नजरें पार्क में जोड़ियों को तलाश रही होती हैं। उनकी खुशी सिर्फ जोड़ों को देखने और उनकी आलोचना करने भर की होती है। इस देखा देखी में किसी बड़ी दुर्घटना का अंदेशा हमेशा बना रहता है।चुंकि ऑफिस के समय इस सड़क से सर्वाधिक निजी गाड़ियाँ गुजरती हैं तथा ट्रैफिक की दुरुस्त व्यवस्था नहीं रहने के कारण किसी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता । हद तो तब हो जाती है जब स्कूली बच्चों के वाहन वहां से गुजरते हैं और नन्हें बच्चों के बीच नासमझी भरी होड़ लग जाती है जोड़े गिनने की ।इस होड़ में बच्चें बीच सड़क पर गिर भी सकते हैं, साथ ही बच्चों की मानसिकता पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

प्रेमी जोड़ों को तो वहाँ से  नहीं हटाया जा सकता और न ही इन वाहन चालकों की नजरों पर अंकुश लगाया जा सकता है। पर जिस अंधी रफ्तार से वहाँ  से गाड़ियाँ गुजरती हैं वह सुरक्षित नहीं है। प्यार पर पहरा भले ही न लगे पर पर्दा तो लगाया ही जा सकता है। पार्क की दीवारों को बांस की चाली से अवरुद्ध किया जा सकता है, जिससे सड़क से पार्क तो दिखे पर पार्क के अंदर के जोड़े जो अत्यंत ही अश्लील दृश्य प्रस्तुत करते हैं को नहीं देखा जा सके । लोगों की उत्सुक्ता इस बात को लेकर भी होती है कि क्या इन जोड़ों को अपने परिवार वालों का भय नहीं होता क्योंकि यहाँ तो पर्दा जैसा कुछ भी नहीं है । सड़क से गुजरने वालों में कभी भी इनका सामना अपने परिजनों से हो सकता है। परंतु इन जोड़ों से बात कर जो तस्वीर निकल कर आती है,उसके अनुसार ज्यादातर जोड़े अपनी पीठ सड़क की तरफ करके बैठते हैं , तथा जो सामने की तरफ से बैठने की हिम्मत जुटाते हैं वे उस मुहल्ले से दूर के होते हैं। मसलन पटना से दूर दराज के प्रेमी जोड़े जिनका राजधानी में कोई परिचित नहीं होता । खैर मसला जोड़ो को लेकर गंभीर नहीं है,गंभीरता तो उन नयन सुख लेने वालों के लिये है कि कहीं सबकी निगाहें एक तरफ रहीं तो गाड़ियों की आपस में टक्कर न हो जाये एवं समय रहते इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाये।

महानगरों में तो इस तरह के दृश्य आम होते हैं।अत्यंत पिछड़े राज्य बिहार में परिवर्तन का यह दृश्य लोगों को  रास नहीं आ रहा है। चुंकि राजधानी वाटिका अति वी. आइ. पी क्षेत्रों को अपने में समेटे हुये है इसलिये यहाँ प्रेमी जोड़े तो बिल्कुल सुरक्षित हैं पर उनपर निगाह रखने वालों की जान पर सदैव खतरा बना हुआ है।

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7 Comments

  1. Good place for Loving birds. After sometime no body will notice them. Atleast now patna is following other growing city.

  2. In between town, park for family is very good but some undecipline teen agers have not capacity to differenciate between real life and reel life and also have no foresight to see future himself.
    Your observation in this regard is very good and thank full to you to give our attention to think how we rectify this type of mistake as soon as.

  3. ये देखने वाले का दोष है.. उसमे कोई क्या करे. मरे ससुरा

  4. अपने उचित प्रसंग उठाया है, इस समय वर्षा ऋतू है, पार्क के चारों ओर घना व्रक्षारोपण कराया जा सकता है एवं वृक्ष बड़े हों तब तक के लिए आपका सुझाया बांस चाली का प्रयोग ही सही रहेगा.

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