पटना में बच्चों के अधिकार को लेकर सेमिनार
पटना। राजधानी के जमाल रोड स्थित बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सभागार में चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई), बिहार बाल आवाज मंच एवं एसोसिएशन फॉर स्टडी एंड एक्शन (आशा) के संयुक्त तत्वाधान में पाठ्य पुस्तक वितरण: समस्या एवं समाधान विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार की अध्यक्षता बिहार बाल आवाज मंच के संरक्षक उदय ने किया। जबकि संचालन मंच के राज्य समन्यवक राजीव रंजन ने किया। विषय प्रवेश कराते हुए आशा के अनिल कुमार राय ने कहा कि छात्र के जीवन में पाठ्यपुस्तक का काफी महत्व है। शिक्षा अधिकार कानून में पाठ्यपुस्तक मुफ्त एवं अनिवार्य रूप से देने का प्रावधान किया गया है। पाठय पुस्तक उपलब्ध नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। शैक्षणिक सत्र के चार माह के गुजरने के बाद भी बच्चों को पुस्तक नहीं मिलना आश्चर्य की बात है। सेमिनार में अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए क्राई के बिहार हेड शरदिंदु बनर्जी ने कहा कि जुलाई 2017 में बिहार के 12 जिले के 24 प्रखंड के 180 प्रारंभिक विद्यालयों का का सर्वे कराया गया।जिसमें यह बात सामने आयी कि कुछ स्कूली बच्चों को ही कुछ विषय की पुरानी पुस्तक मिल सकी।श्री बनर्जी ने कहा कि शैक्षणिक सत्र के पहले दिन पाठय पुस्तक वितरण दिवस के रूप मनाया जाना चाहिए तथा पहले सप्ताह को पुस्तक वितरण सप्ताह मनाया जाना चाहिए। ऐसी नीति बने की मार्च से पहले पुस्तक विद्यालय तक पहुंच जाय। शिक्षाशास्त्री डॉ ज्ञानमणि त्रिपाठी ने विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पाठय पुस्तक के बगैर किसी तरह की शिक्षा नहीं दी जा सकती है। आखिर क्या समस्याएं है। उसका समाधान जरूरी है। बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष निशा झा ने कहा कि वह जब आयोग के अध्यक्ष थे तो पाठय पुस्तक के निर्माण एवं उसके वितरण को लेकर पहल किये थे। पाठय पुस्तक नहीं मिलना एक बड़ा सवाल है। इसमें समाज के लोगों को आगे आना चाहिए। समाजकर्मी अक्षय कुमार ने कहा कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है। विद्यालय के बच्चों को पाठय पुस्तक नहीं मिलना कहीं न कहीं वंचित वर्ग को शिक्षा की मुख्य धारा से हटाना है।सभी जानते है कि सरकारी विद्यालय में किसके बच्चे पढ़ते है। पटना विश्वविद्यालय के प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा कि राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से समय पर बच्चों को पाठय पुस्तक नहीं मिलती है। इसके लिए जन दबाव बनाना जरूरी है। विधान मंडल में बात उतनी चाहिए। इसे बड़ा मुद्दा बनाने की जरुरत है। शिक्षाविद डॉ एमएन कर्ण ने कहा कि पाठय पुस्तक में कंटेंट क्या हो। पाठय पुस्तक का निर्माण की व्यवस्था तथा उसके वितरण की नीति स्पष्ट होनी चाहिए। पाठय पुस्तक के मुद्दे को लेकर समाज के हर तबके को आगे आना चाहिए।सरकारी विद्यालय गरीब,मजदूर एवं दलित,आदिवासी के बच्चे पढ़ते है।अबतक पढ़ने के लिए पाठय पुस्तक नहीं मिलना एक बड़ी बात है। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए मंच के संरक्षक उदय ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में कॉरपोरेट का हस्तक्षेप होने की संभावना बन गई है। पाठय पुस्तक समय पर उपलब्ध हो। इसके लिए प्रभावकारी जन दबाव आवश्यक है। कॉरपोरेट मिजाज वाले नहीं चाहते की गरीब, मजदूर, दलित, आदिवासी समाज के बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। सेमिनार को समस्तीपुर के ललित कुमार, आरा के खुर्शीद आलम, रविन्द्र कुमार, चंद्रभूषण, रमाकांत,अधिवक्ता राम जीवन, राकेश आदि ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि दोषपूर्ण व्यवस्था की वजह से ऐसी स्थिति बनी है। कमान स्कूल प्रणाली लागू करने की वकालत भी की गई। सेमिनार को सफल बनाने में विनोद रंजन, सूरज गुप्ता,सुमन सौरभ आदि ने सक्रिय योगदान दिया।