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पटना में हॉस्टल लाइफ को इंज्वाय कर रहे हैं छात्र

आंखों में कुछ कर गुजरने का सपना लिये बड़ी संख्या में युवा वर्ग पटना के ह़ॉस्टलों में आसरा लिये हुये है। घर से निकलने के बाद यहां पर उनकी जिदंगी एक नये ढर्रे पर चल रही है। तमाम तरह की मुश्किलों के बावजूद हॉस्टल लाइफ का वे भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं।बेहतर पढ़ाई करके कैरियर बनाने की आकांक्षा छात्र छात्राओं को हॉस्टलों तक ले आती हैं, लेकिन इनके लिए घर को भूल पाना मुश्किल होता है। घर तो आखिर घर ही होता है।

पिछले कुछ वर्षों में पटना एजुकेशनल हब के रूप में विकसित हुआ। छात्र छात्रायें बड़ी संख्या में आज हॉस्टलों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं ताकि अपने मुकाम तक पहुंच सके। हॉस्टल की लाइफ इनको खूब भा रहा है। घर से बाहर निकलने के बाद थोड़ी आजादी तो मिल ही जाती है, लेकिन घर की भी याद उन्हें बहुत आती है।

हॉस्टलों के संचालक  यहां रहने वाले छात्र-छात्राओं का पूरा ख्याल रखते हैं। हॉस्टलों के कुछ कायदे और कानून भी होते हैं जिनका पालन करना सभी छात्र-छात्राओं के लिए जरूरी होता है। ये लोग भी इन कानूनों को अपने लिए जरूरी मानते हैं। आखिर माने भी क्यों नहीं, घर में भी तो नियम के तहत ही रहना पड़ता है। हॉस्टल के प्रबंधक भी छात्र छात्राओं की गतिविधियों पर पूरी नजर रखते हैं. छात्राओं को लेकर तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

हॉस्टल की जिंदगी में मिली आजादी का एक अलग ही मजा है। यहां मिलने वाले नये दोस्तों की वजह से जिंदगी एक नये रुप में सामने आती है, और हॉस्टल की लाइफ को वे इंज्वाय करने लगते हैं। घर से निकल कर हॉस्टल आने के बाद छात्र छात्राओं की जिंदगी थोड़ी बदल जाती है। यहां पर नये नये दोस्त बनते हैं, फिर उन्हीं के साथ रहने की आदत सी पड़ने लगती है। एक समय ऐसा भी आता है जब उन्हें यहां की जिंदगी अच्छी लगने लगती है। किसी खास अवसर पर हॉस्टल की छात्र छात्रायें धमाल भी खूब मचाते हैं। लेकिन धमाल मचाने के पहले हॉस्टल प्रबंधक को सूचित करना जरूरी होता है और अमूमन हॉस्टल प्रबंधक की ओर से उन्हें धमाल मचाने की इजाजत मिल ही जाती है। बस उनकी ओर से इतना कहना काफी होता है कि आज वे धमाल मचाने के मूड में हैं। हॉस्टल में अपने दोस्तों को सरप्राइज देने का मजा भी कुछ और है। छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखकर ऐसा सहज तरीके से किया जाता है। इस तरह की बातें उन्हें एक दूसरे के करीब लाती हैं। गर्ल्स होस्टल की संचालिका भी लड़कियों की मौज मस्ती को गंभीरता से नहीं लेती हैं। उन्हें पता है जहां इतनी सारी लड़कियां रहेंगी वहां मौज मस्ती का आलम तो होगा ही।

वैसे तो होस्टल के छात्र छात्रायें खुद को रिफ्रेश करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। नाच गाना और डांस तो होता ही है। लेकिन सबसे ज्यादा मजा अंत्याक्षरी में आता है। एक बेहतर माहौल बनाने के लिए यह मनोरंजन  ट्रैडिशनल स्टाइल आज भी कारगर है। सिनियर छात्र-छात्राओं का दबदबा भी यहां खूब चलता है। ऐसे में नये छात्र-छात्राओं को थोड़ी बहुत परेशानी तो होती ही है। हॉस्टलों में रैगिंग एक आम बात है। हर छात्र को इससे होकर गुजरना ही पड़ता है। लेकिन सिनियर्स छात्र जूनियर्स छात्रों के लिए हेल्पफुल भी होते हैं।
आमतौर पर हॉस्टलों में सीनियर जूनियर का भेद भाव देखा जाता है। ऐसे में जूनियर लड़कियों का परेशान होना स्वाभाविक है। हॉस्टल में आने के पहले सिनियरों का खौफ तो लड़कियों में होता ही है। रैगिंग का कहर लड़कों को ज्यादा झेलना पड़ता है। लड़कों के हॉस्टलों में रैगिंग आम बात है। इसे लेकर नये छात्रों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। वैसे सिनियर्स   जूनियर छात्रों के लिए सहायक  सिद्ध होते हैं । अपने सिनियर्स से जूनियर्स  को अच्छी खासी मदद मिल जाती, खास कर परीक्षा के दिनों में। यदि होस्टल में रुप पार्टनर अच्छा मिल जाये तो कई मुश्किलें चुटकियों में हल हो जाती है। होस्टल में बेहतर रुम पार्टनर मिलना एक सौभाग्य की बात है। पढ़ाई लिखाई में बेहतर रूम पार्टनर काफी मददगार साबित होते हैं। हॉस्टल लाइफ में बेहतर रुम पार्टनर का मिलना निहायत जरूरी है। बेहतर रुम पार्टनर मिलने से पढ़ाई भी बेहतर तरीके से होती है। अपने पार्टनर के साथ रुम में बैठकर पढ़ना कैरियर के लिए काफी लाभदायक होता है।

हॉस्टल में अच्छे और बुरे दो तरह के दोस्त मिलते हैं। बेहतर दोस्त जहां हर कदम पर  सहायक होते हैं वहीं बुरे दोस्त पढ़ाई को बाधित करने वाले होते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि दोस्त बेहतर हो। घर से निकलने के बाद हॉस्टल के नये माहौल में छात्र-छात्राओं को एडजस्टमेंट में थोड़ी परेशानी तो होती है, लेकिन फिर वे हॉस्टल की लाइफ में पूरी तरह से ढल जाते हैं। हॉस्टल की जिंदगी उन्हें ताउम्र याद रहती है।

हॉस्टल में घर के खाने की याद बहुत आती है। आमतौर पर हॉस्टल का खाना छात्रों को अच्छा नहीं लगता है। ऐसे में उन्हें खाने को लेकर थोड़ा एडजस्ट करना पड़ता है। हॉस्टल के अंदर खाने पीने की व्यवस्था को लेकर छात्र छात्राओं में थोड़ा असंतोष देखा जा सकता है। अब घर जैसा खाना तो इन्हें मिलने से रहा । किसी तरह मैनेज करना पड़ता है। वैसे हॉस्टल प्रबंधक की ओर से इस बात पूरा ख्याल रखने का दावा किया जाता है कि छात्र छात्राओं को सही समय पर बेहतर खाना मिले ताकि उनकी पढ़ाई में किसी तरह की बाधा नहीं आये। छोटी मोटी बीमारी में तो छात्र छात्रायें खुद ही दवा लेकर काम चला लेती हैं, लेकिन अचानक गंभीर रूप से बीमार होने पर हॉस्टल प्रबंधक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में बीमार स्टूडेंट को अस्पताल में भर्ती कराने से लेकर देखभाल तक करना पड़ता है।

हॉस्टल की जिंदगी थोड़ी टफ लेकिन आनंददायक है। घर से बाहर निकलने के बाद छात्रों को एक नई दुनिया मिलती हैं, स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारियों का भी अहसास होता है। सही मायने में यह उनके कैरियर का एक पड़ाव होता है, जो उन्हें भावी जिंदगी के लिए बहुत कुछ सिखाता है।

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