यंग तेवर

प्यार से बिखरती जात की दुनिया

कहा जाता है कि भारत देश में जाति एक बङी सच्चाई है। भरतीय समाज का पूरा ताना – बाना जात के धागे से बुना गया है। पूरी जातीय व्यवस्था ऐतिहासिक नींव पर खङी है। एक बहुत ही मजबूत नींव। राजनीति आज बहुत ताकतबर दिखती है। जनतंत्र में जन नेताओं का बड़ा ही महत्व है। लेकिन जात की ताकत के सामने भारतीय राजनीति और इसके नेता भी बौने और कमजोर  दिखते हैं।

देश विकास कर रहा है, समय आगे बढ़ रहा है, लेकिन जाति की धारणाएं और उसकी समझ आगे नहीं बढ़ रही हैं, उसमें विकास नहीं हो रहा है। जाति का परिवर्तनवादी रुप नहीं दिख रहा। या तो कहीं जाति टूट कर बिखर रही है, या कहीं अपनी सारी मान्यताओं के साथ जकड़ी हुई मजबूती से खड़ी है। आज जात को तोड़ने वाली एक बहुत बड़ी ताकत सामने आकर खड़ी हो गई है जिसका परचम युवाओं के हाथों में लहरा रहा है। वह ताकत है प्यार की ताकत। युवाओं का एक विद्रोही वर्ग तैयार हो चला है जो वास्तव में जात के विरुद्ध सतत् युद्ध की अवस्था में है। युवाओं के बीच प्यार की आंधी चल रही है। अंतर्रजातीय विवाह का अंतहीन सीलसीला चल पड़ा है। बहुत तेजी से आ रहे इस बदलाव के कारण पारंपरिक समाज की नींव हिल रही है। एक ब्राह्मण और दलित की शादी , अगड़े और पिछड़े की शादी जहां एक पल के लिए हंगामा खड़ा कर रहा है, वहीं परिवारों के जातीय महल एक पल में चकनाचूर हो जा रहे हैं।

जात के विरुद्ध इस युद्ध को भारत के सांविधानिक दर्शन के तहत वैधानिक मान्यता भी मिला हुआ है। प्यार का पूरा मामला बुलंदी पर है। अदालत साथ रहने वाले प्रेमी – प्रेमिका को पति पत्नी का दर्जा दे रहे हैं। अदालत अपनी इच्छा से अंतर्रजातीय विवाह करने वाले जोड़ों को पुलिस सुरक्षा देने की बात बार – बार कहती रही है। जातीय सम्मान के नाम पर की जा रही हत्या पर भी अदालत की तल्ख टिप्पणी आती है। जात एक सामाजिक सच्चाई हो सकती है पर यह सांविधानिक और वैधानिक सच्चाई बिलकुल नहीं है । यह एक जबर्दस्त प्रकिया चल रही है जो देश की पूरी तश्वीर बदल देगी।

अपने को विकास का एक रुप दिखाने वाली मीडिया, राजनीति के विश्लेषण में अपना जातिगत चेहरा खुलकर कर दिखाती है। कौन नेता और उम्मीदवार किस जाति का है और उसका अपनी जाति पर कितना पकड़ है इसका पूरा चिठ्ठा मीडिया तैयार करती  है और जातीय जन – जाग्रीति का पूरा माहौल बानाती है। मीडिया शायद समाज और राजनीति का आईना होने का फर्ज निभा रही होती है।

जात के पीछे भागना राजनीति की मजबूरी है। यह राजनीतिक सफलता पाने का आसान रास्ता है। कुछ लोग जातीय राजनीतिक समीकरण बैठा कर चुनाव जीतने के महारथी होते हैं। कोई नेता जाति की इस मजबूत धारा से टकराना नहीं चाहता। बैठे – बिठाए संकट मोल क्यों लें। जो चल रहा है चलने दो। जहां हर वर्ग से लोग जाति के चरणों पर समर्पित हों रहे हैं, वहीं प्रेमी युवाओं की फौज इस ऐतिहासिक ताकत से टक्कर लेने के लिए खड़ी हो गई है। राष्‌ट्रकवि दिनकर की कविता है-

जिन्हें देख कर डोल गई हिम्मत दिलेर मरदानों की

उन मौजों पर चली जा रही किस्ती कुछ दीवानों की

एक जमाना था जब इन प्रेमी युवाओं को यह बोल कर डराया जाता था कि उन्हें परिवार के जमीन – जायदाद और मकान से बेदखल कर दिया जाऐगा। आर्थिक डर दिखाया जाता था। असुरक्षा की भावना दिखाई जाती थी। आज वो कम उम्र में ही कतनीकी और व्यवसायिक शिक्षा के साथ पैसे की अहमियत को छोटा दिखा रहे हैं। उनका स्पष्ट संदेश है कि पैसा तो मेरे पास है लेकिन जात के चक्कर में क्या अपना प्यार खो दूं ! आज उन्हें एक और डर दिखाया जा रहा है कि तुम्हारे बच्चे  किस जाति के कहे जाऐंगे, उनका सामाजिक भविष्य क्या होगा? डर का खेल जारी है। साथ ही जाति के विरुद्ध  इस युद्ध में विद्रोहियों कि संख्या तेजी से बढ रही है। यह सामाजिक उथल – पुथल का दौर है। प्यार परवान चढ़ रहा है और जातीय सम्मान के लिए उनकी हत्या भी की जा रही है। जातीय मान्यताऔं को विकास और परिवर्तन के रास्ते पर आना होगा , नहीं तो वे अपनी जकड़न के साथ टूट जाएंगे।

Related Articles

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button