बच्चों पर मौत का कहर बनकर टूट रही है इंसेफलाईटिस
अनिकेत प्रियदर्शी, पटना
बिहार मे इंसेफलाईटिस मौत का कहर बन कर टूट रही है… सरकारी महकमे एवं स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी बारिश आने का इंतजार कर रहे…..मासूमों की जान जिस बारिश के इंतजार पर अटकी है अगर उसमें देर हुई तो न जाने और भी कितने मासूमों को असमय काल के गाल में समाहित हो जाना पड़ सकता है…। सेवा यात्रा में लगे माननीय मुख्यमंत्री जी का अभी तक इस मामले मे कोई विशेष पहल नजर नहीं आया है.. बिहार के बच्चों और उनके परिजनों के दर्द सुशासन बाबू के दिल तक शायद अभी पहुंचा नही है!!!
हां बीच- बीच में स्वास्थ्य मंत्री का हाल-ए-दर्द उभर कर सामने जरूर आ जा रहा है……लेकिन वो भी मीडिया को कोसने में । जमकर कोसा जा रहा है मीडिया को ..जैसे की इस बीमारी की मुख्य जड़ मीडिया में ही कहीं पसर रही है । क्या मीडिया को इस मामले में चुप रहकर केवल सुशासन की झूठी पीठ थपथपाने को ही सरकार सही मानती है ? मंत्री जी को यह सोचना चाहिए की उनका रवैया ही यहां उनकी उंचाई का निर्धारण करेगी …. योग्यता से ज्यादा यहां अभी सकारात्मक रवैये की जरूरत है ।
बिहार राज्य बाल संरक्षण आयोग की तीन सदस्यी टीम ने जब पटना मेडिकल कॉलेज का हाल जानने का प्रयास किया तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई । बरामदे मे भयानक गर्मी के बीच पीडित बच्चे और उनके परिजनों की थकी और बुझी हुई आखों में कही एक कराह देने वाला दर्द का अहसास साफ झलक रहा था । इनकी आखों का दर्द यही बता रहा था कि सब कुछ तो जान लिया बस अब यही समझ में नही आ रहा है कि कैसे जीयें ? डाक्टरों की मामले से अनभिज्ञता… न कहते हुए भी बहुत कुछ कहने का प्रयास कर रही थी ।
राज्य के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कालेज की दयनीय स्थिती इस बात का भी बयां कर रही थी कि जब यहां यह हाल है तो राज्य के अन्य हिस्सों मे क्या चल रहा होगा? कितने बच्चें इस रोग से मर रहे है इसकी भी पूरी जानकारी पटना मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों द्वारा सही तरह से नहीं मिल पा रही थी। बिहार सरकार से यह निवेदन है इस भयावह बिमारी से पल्ला झाडने का प्रयास कर अवांछित न बने…. क्योंकि सरकार को यह जानना चाहिए कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है…..। कही इस बीमारी की चपेट मे आकर आप खुद ही लाईलाज न हो जाए ।
कोई गारंटी है कि आने वाले दिनों मे बारिश के बाद भी स्थिति मे बहुत ज्यादा सुधार हो जाएगा ।नकारात्मक दृष्टिकोण को जीवन की एक मात्र विकलांगता माना जाता रहा है …. क्या सरकारी संवेदनहीनता और नकारात्मक दृष्टिकोण का इससे बढिया उदाहरण कहीं और देखने को मिल सकता है ? वैसे भी गलत मानसिक दृष्टिकोण से काम कर रहे व्यक्ति या संस्था की इस दुनिया में कोई मदद नहीं कर सकता । कई तरह की कमियों एवं इलाज की सही प्रक्रिया न अपनानाने,गंदगी और गर्मी के बीच बच्चों को मरता छोड़ देना एक ही बात को दर्शाता है कि प्रवृत्ति की कमजोरी कहीं न कही चरित्र की कमजोरी बन जाती है । क्या बिहार सरकार इस पर कोई जवाब देने को तैयार है ?
और रही बात एक बार फिर से मीडिया वालों को कोसने की तो सर जी मीडिया तो कल से सीखती हैं, आज में जीती है, और कल के लिए उम्मीद रखती है…हां मीडिया के लिए ज़रूरी यह है कि वो आपसे प्रश्न करना न छोड़े । अन्धकार भरे दिनों में भी उम्मीद खोज लेना मीडिया का काम है…उसे अपना काम करने दे ।
समय चाहे कितना भी अंधकारमय क्यों ना हो , आशा हमेशा संभव हैं…. उम्मीद तो यही करता हूं कि बिहार सरकार और उसका स्वास्थ्य विभाग आने वाले दिनों मे बारिश के उपर निर्भर न रह कर अपने प्रयासों को उचित दिशा देने का प्रयत्न करता हुआ नजर आये ।