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बहन-बेटी को जिंदा जलाने वाली मानसिकता!
यदि कोई बालिग लड़की अपनी इच्छा से किसी पुरुष के साथ जिस्मानी संबंध बनाती है तो क्या उसके बाप को यह अधिकार है कि वह उसे मौत के घाट उतार दे? दिल्ली गैंग रेप मामले में दोषियों के वकील ए.पी. सिंह अपने मुवक्किलों को फांसी की सजा से न बचा पाने के बाद अब तुगलकी अंदाज में पीड़िता के चरित्र पर ही निशाना साध रहे हैं। उन्हें इस बात पर आपत्ति है कि पीड़िता अपने पुरुष मित्र के साथ रात में बाहर क्या कर रही थी। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि यदि उनकी बहन या बेटी 11 बजे रात में किसी के साथ बाहर घूमती तो वह उस पर पेट्रोल छिड़कर कर आग लगा देते। एक आम आदमी इस तरह की प्रतिक्रिया देता है तो बात समझ में आती है, लेकिन एक वकील के मुंह से जब इस तरह के शब्द निकले तो निस्संदेह कानून को लेकर उसकी समझ पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। मुल्क का कानून यह इजाजत नहीं देता कि किसी लड़की को जिस्मानी संबंध स्थापित करने पर उसे जिंदा जला दिया जाये। महज रात में अपने पुरुष मित्र के साथ घूमने के कारण उसकी हत्या करने की बात करना तालिबानी मानसिकता को भी दर्शाती है। बहरहाल इस मामले में बार काउंसिल में वकील ए.पी. सिंह के खिलाफ शिकायत की गई है। कई महिलावादी संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। वकील ए.पी. सिंह के बयान के बाद महिला स्वतंत्रता को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है।
बगावती तेवर
दुनियाभर में महिला आंदोलनों की नुमाइंदगी करने वाले रैडिकल महिला संगठनों का मानना है कि स्त्री शरीर पर स्त्री का ही हक है। अपनी इच्छानुसार वह किसी के साथ भी सहवास कर सकती है। उसके इस अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे सकता। यह जरूरी नहीं है कि अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वह वैवाहिक बंधन में बंधे। दुनिया के मुखलतफ मुल्कों में महिलाएं अपने इस हक को लेकर आंदोलनरत हैं। सड़कों पर मोर्चे निकाल कर अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। भारत में भी तमाम तरह के रैडिकल महिला संगठन अपने हक को लेकर सक्रिय हैं। यह सच है कि महिलाओं की मानसिकता में आये इस बदलाव का असर स्थापित सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर पड़ रहा है। महिलाएं स्थापित सामाजिक मूल्यों के खिलाफ भी बगावती तेवर अख्तियार किये हुये हैं। उनका तर्क है कि तमाम सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों का ईजाद पुरुषों ने किया है। समाज में व्यवस्था स्थापित करने के नाम पर उन्होंने महिलाओं को तो बेड़ियां पहना दीं और खुद स्वतंत्र रहे। रैडिकलवादी महिलाएं अपने वजूद पर पुरुषों के अधिकार को पूरी तरह से नकारती हैं। वह इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि रात में किसी पुरुष मित्र के साथ घूमने की वजह से उन्हें जिंदा जला देने जैसी मानसिकता पाली जाये। इतना ही नहीं, ए.पी सिंह का यह कहना कि एक स्त्री जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुषों पर आश्र्ति होती हैं और उन्हीं के संरक्षण में महफूज रह सकती हैं। महिला संगठनों के साथ-साथ महिलावादी चिंतकों को भी रास नहीं आ रहा है। दुनिया तेजी से बदल रही है और इस बदलती हुई दुनिया में महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। हर क्षेत्र में महिलाओं का दबदबा महसूस किया जा रहा है। ऐसे में ए. पी. सिंह महिलाओं को घर के अंदर कैद रखने की वकालत करके ‘खापवादी मानसिकता’ का ही परिचय दे रहे हैं, जो जरा-जरा सी बात पर महिलाओं को हलाक करने के लिए उकसाती है।
अवसरवादी रवैया
दिल्ली गैंग रेप के दोषियों का मुकदमा लड़ने के लिए कोई भी वकील तैयार नहीं था। उस वक्त वकीलों के बीच आम सहमति हुई थी कि इस मुकदमे को कोई भी हाथ में नहीं लेगा। ऐसे में वकील ए.पी. सिंह को मौका मिल गया। अपने पेशेवर साथियों के बीच सहमति के विपरीत जाकर उन्होंने यह मुकदमा लपक लिया। कई वकीलों ने इनका विरोध भी किया था, लेकिन अपनी वकालत चमकाने की गरज से इन्होंने किसी की नहीं सुनी। इस मामले में सुनवाई के दौरान वह शुरू से ही उल्टी-सीधी दलील देते रहे और मीडिया से मुखातिब होकर अपना चेहरा चमकाते रहे। जब दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई तो इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया और जज पर ही दबाव में आकर निर्णय सुनाने का आरोप लगाने लगे। पीड़िता के पिता ने इस मसले को गंभीरता से लेते हुये न्यायालय के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने के लिए वकील ए. पी. सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की गुहार लगाई है। दोषियों को फांसी की सजा दिलाने के लिए कई संगठन लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इन संगठनों ने भी बार काउंसिल आॅफ इंडिया से वकील ए. पी. सिंह का लाइसेंस रद्द करने की मांग की है। दोषियों का वकील बनकर वह पहले से ही खलनायक बने हुये हैं। अब आने वाले दिनों में उनको भी निपटाने की लड़ाई तेज हो जाये तो किसी को अचरज नहीं होनी चाहिए। वैसे भी भारत में महिलाओं के प्रति ओछी मानसिकता रखने वालों के खिलाफ अभी आक्रोश चरम पर है।
महिला आंदोलनों पर खुन्नस
मुल्क में महिला अधिकारों को लेकर चलने वाली तमाम तहरीरों पर भी उंगली उठाने से वकील ए. पी. सिंह बाज नहीं आ रहे हैं। वर्तमान में महिलाओं की दुर्दशा के लिए उन्होंने उल्टे महिला संगठनों को ही जिम्मेदार ठहराते हुये कहा है कि तथाकथित महिला संगठनों ने समाज में महिलाओं का ठेका ले रखा है। इनकी बातों से साफ झलकता है कि महिलाओं में आई जागृति से ये खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। इनका यह कहना कि वह एक ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखते हैं, जहां महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। निस्संदेह उनके महिला विरोधी चरित्र को ही उजागर करती है। मर्यादा में रह कर हर व्यक्ति को अपनी बात कहने की इजाजत है। एक वकील होने के बावजूद ए.पी. सिंह तमाम मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाते हुये मरने के बाद भी पीड़िता के चरित्र पर उंगली उठाकर क्या साबित करना चाहते हैं? बहरहाल इस पूरे प्रकरण में वकील ए.पी. सिंह अपने स्टैंड पर न सिर्फ कायम हैं बल्कि लगातार नये-नये शिगूफे भी छोड़ रहे हैं। उनका वश चले तो वह पूरे मुल्क की महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू कर दें और तमाम महिला संगठनों पर रोक लगा दें। जानकारों का कहना है कि दरअसल महिला संगठनों की वजह से ही दोषियों को लेकर पुलिस समेत पूरा समाज सजग रहा। ए.पी. सिंह महिला संगठनों की सक्रियता को हजम नहीं कर पा रहे थे। अब अपनी खुन्नस मिटा रहे हैं।