बाइट प्लीज (उपन्यास, भाग-6)
10.
सुबह 6 बजे के करीब बस जब रांची पहुंची तो वहां मुसलाधार बारिश हो रही थी। बस से उतरने के बाद बड़ी मुश्किल से दोनों आटो पकड़कर एक गेस्ट हाउस पहुंचे। बारिश की वजह से रांची का तापमान काफी गिर गया था। दोनों की कंपकंपी छूट रही थी। गेस्ट हाउस में दाखिल होते ही दोनों कपड़ा बदलने के बाद कंबल लेकर बेड पर लेट गये। कमरे में एक टीवी रखा हुया था। नीलेश ने टीवी आन करते हुये कहा, “एक नजर खबरों की सुर्खियों पर मार लिया जाये। दीवाकर भी तो रांची में ही है ना?”
“एक महीना पहले ही दैनिक दिनकर ज्वाइन किया है। यदि वक्त मिला तो उससे भी मिल लिया जाएगा। उसका दफ्तर गेस्ट हाउस के आसपास ही कहीं है। मैं कई बार उसे फोन कर चुका हूं, लेकिन वह फोन ही नहीं उठाता है, ” सुकेश ने कहा।
“यह उसकी पुरानी आदत है। उसके जानने वाले लोगों की यह आम शिकायत है कि जब भी वह किसी पोस्ट पर बैठ जाता है अपने परिचितों का फोन उठाना बंद कर देता है।”
“उसके लाइफ में भी बहुत नौटंकी है। पिछले तीन साल से वह पटना से एक साप्ताहित अखबार निकाल रहा था और साथ ही एक चैनल लाने की तैयारी भी कर रहा था। पहले वह पटना में दैनिक सुबह का स्थानीय संपादक हुआ करता था। पता नहीं क्या हुआ कि उसने वह नौकरी छोड़ दी और साप्ताहिक अखबार निकालने लगा। तुम्हें तो पता ही है कि अब साप्ताहिक अखबार का क्रेज रहा नहीं। फिर भी तीन साल तक वह अखबार चलाता रहा। ”
“उसके साप्ताहिक अखबार के लिए मैं भी दिल्ली से खबरें भेजता था, लेकिन कभी उसने मुझे एक पैसे तक नहीं दिये। ”
“पैसे रहेंगे तब न देगा। वैसे अखबार का तेवर अच्छा था। काबिल आदमी तो वह है ही। काफी मशक्कत करने के बाद उसे दैनिक सुबह के भागलपुर से निकलने वाले संस्करण में स्थानीय संपादक की नौकरी हाल ही में मिली थी। ज्वाइन भी कर लिया था। करीब पचास हजार का पैकेज था। इसी बीच दैनिक दिनकर से भी रांची के लिए बुलावा आ गया। कुछ दिन तक असमंजस में रहा। मैंने ही उसे सजेस्ट किया था कि दैनिक दिनकर ज्वाइन कर लो। एक लाख का पैकेज मिल रहा है, सारा कष्ट दूर हो जाएगा। मुझे उसने अपने साप्ताहिक अखबार का संपादक भी बना दिया था, प्रिंट लाइन में भी मेरा नाम जाने लगा था, लेकिन उसके दैनिक दिनकर ज्वाइन करने के बाद यह साप्ताहिक अखबार बंद हो गया। अब जब वेतन के रूप में मोटी रकम मिल रही है तो साप्ताहिक अखबार चलाने का क्या तुक है ? ”
“ अट्टाहास फोर मीडिया डाट काम मैंने इस संबंध में एक खबर पढ़ी थी। उस खबर में दिवाकर के बारे में लिखा हुया था कि उसने दैनिक सुबह के संपादक के साथ गद्दारी की है। जब उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी तब दैनिक सुबह के संपादक ने उसे भागलपुर का स्थानीय संपादक बनाया और दैनिक दिनकर से मोटा आफर मिलते ही वह पलटी मार गया। दैनिक सुबह का विज्ञापन भी बहुत दिनों से अट्टहास फोर मीडिया डाट काम पर लग हुआ है। लगता है कि अट्टहास फोर मीडिया भी धंधेबाज हो गया है ”, नीलेश ने कहा।
“सीधी सी बात है दो पैसा जहां ज्याद मिलेगा वहीं लोग काम करना पसंद करेंगे। अखबार वाले भी पूरी तरह से बनिया ही हैं और अट्टहास फोर मीडिया डाट काम भी वही कर रहा है। रांची में दैनिक दिनकर दैनिक सुबह को जोरदार टक्कर दे रहा है। चूंकि दैनिक सुबह का तालमेल अट्टहास मीडिया के साथ है, ऐसे में अट्टहास फोर मीडिया की यह मजबूरी है कि वह दैनिक दिनकर और दिवाकर पर हमला करे। दिवाकर पोलिटिकल न्यूज एडिटर के तौर पर दैनिक दिनकर में काम कर रहा है। दैनिक भारत भी रांची से निकल रहा है और जैसा कि लोग बता रहे हैं अट्टहास फोर मीडिया में इसके खिलाफ भी बहुत सारी खबरें छप चुकी है। हालांकि आज तक मैंने अट्टहास फोर मीडिया नहीं देखा है। ”
“मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि तुम एक आउटडेटेड पत्रकार हो। नेट चलाना आता नहीं, कंप्यूटर पर टाइपिंग करनी आती नहीं और ऊपर से तूर्रा यह कि तुम अपने को पत्रकार कहते हो। तुम्हें पता होना चाहिये कि डाट काम के रूप में न्यू मीडिया पत्रकारिता को नया आयाम दे रहा है। इस न्यू मीडिया पर ऐसी- ऐसी खबरें निकल कर सामने आ रही हैं जिनका पारंपरिक मीडिया में निकल पाना कभी संभव नहीं था। न्यू मीडिया में पत्रकारों और मीडिया घरानों की खबरें अब खुब निकल रही हैं। अपने आप को अपटूडेट करो, यदि पत्रकारिता में लंबी दौड़ दौड़नी है तो, ” टीवी पर एक के बाद चैनलों को बदलते हुये नीलेश ने कहा।
“फिलहाल तो मुझे नींद आ रही है। और यदि फ्रेश मूड में कंट्री लाइव के दफ्तर पहुंचना चाहते हो तो एक नींद तुम भी मार लो। यदि सबकुछ मन मुताबिक रहा तो आज रात को ही पटना के लिए रवाना हो जाएंगे,” यह कहते हुये सुकेश ने कंबल से अपना मुंह ढंक लिया। करीब एक घंटा तक चैनल बदलते-बदलते नीलेश को कब नींद आ गई उसे पता भी नहीं चला।
11.
नीलेश देर तक सोता रहा जबकि सुकेश सुबह नौ बजे तक नहा धोकर बाहर से चाय तक पी आया और साथ में दैनिक दिवाकर की प्रति भी खरीद लाया। नीलेश की जिस वक्त आंख खुली उस वक्त सुकेश अखबार के पन्नों में नजर गड़ाये हुये था। यह बताते हुये कि माहुल वीर से अभी-अभी फोन पर उसकी बात हुई है सुकेश ने नीलेश को फौरन तैयार होने को कहा।
करीब आधे घंटे बाद दोनों एक आटो में सवार होकर ऐयर पोर्ट के करीब स्थित कंट्री लाइव चैनल के मुख्यालय में पहुंचे। यह एक खुला-खुला सा दो मंजिला मकान था। मुख्य दरवाजे पर वर्दी में एक सुरक्षा गार्ड खड़ा था। मकान के अगले हिस्से में स्थिति बड़े से हाल को रिसेप्शन में तब्दील कर दिया गया था, जहां पर एक सोफा और कुछ कुर्सियां रखी हुई थी, जिस पर पंद्रह-बीस लोग बैठे हुये थे। लड़कियों की संख्या भी अच्छी खासी थी। अंदर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, कुछ कारीगर जमीन पर कारपेट बिछाने में लगे हुये थे तो कुछ मेन हाल में रिपस्पेशन का डेस्क बनाने में लगे हुये थे। रिस्पेशन पर ही पूछने पर पता चला कि माहुल वीर अंदर रत्नेश्वर सिंह के साथ मीटिंग में बैठा हुआ है। रत्नेश्वर सिंह कल रात को ही रांची आ गये थे, उनके साथ संदीप सिंह भी था। संदीप सिंह लंबे समय से दिल्ली में पत्रकारिता करते हुये एक इलेक्ट्रानिक मीडिया में ऊंचे मुकाम पर पहुंच चुका था। इसके खाते में एक भोजपूरी न्यूज चैनल भी लांच करने का श्रेय जाता था।
पत्रकारिता में जैसा कि लंबे सफर के बात पत्रकारों के साथ होता है एक टीम बन जाती है और फिर इसी टीम के सहारे अघोषित तौर पर चैनलों को हाइजैक करने की संगठित कार्रवाई शुरू हो जाती है। यह स्थिति किसी पत्रकार विशेष के लिए आदर्श स्थिति होता है और व्यवहारिक स्तर पर सही मायने में पत्रकारिता जीवन का क्लाइमेक्स भी यही है। संदीप सिंह अपने पत्रकारिता जीवन में इसी फेज से गुजर रहा था। भोजपुरी टीवी की लांचिंग में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन कई कारणों से इस प्रयोग को वह सफलता नहीं मिल पाई थी जिसकी उम्मीद इसके मालिकानों को दिलाई गई थी। बाद में संदीप सिंह को इस चैनल से चलता कर दिया गया और साथ में उसकी टीम के सदस्यों को भी एक एक करके बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
आमतौर पर किसी संस्थान में मुख्यपद पर बने व्यक्ति को हटाने के बाद प्रबंधन की ओर से उन सभी लोगों को हटाने की कवायद चल निकलती है जो संस्थान के बजाय व्यक्ति विशेष के प्रति वफादारी में यकीन रखते हैं। इसी फार्मूले के तहत संदीप सिंह और उनकी टीम के कई लोग फिलहाल सड़कों पर खाक छान रहे थे। संदीप सिंह की रत्नेश्वर सिंह के साथ रिश्तेदारी थी, जिसकी वजह से संदीप सिंह कंट्री लाइव न्यूज चैनल में बिना कोई ओहदा पकड़े ही महत्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित कर रहा था। कंट्री लाइव में कर्मचारियों की नियुक्ति में भी उसकी खूब चली थी। रांची में भी कई महत्वपूर्ण ओहदों पर अपने पसंद के लोगों की नियुक्तियां करवाने में वह कामयाब रहा था। खबर तो यहां तक उड़ी थी कि संदीप सिंह चैनल हेड के पद पर विराजमान होने वाला है लेकिन नरेंद्र श्रीवास्तव के तीव्र विरोध के बाद रत्नेश्वर सिंह ने अपना हाथ पीछे खींच लिया था।
इस वक्त रत्नवेश्वर सिंह, माहुल वीर और संदीप सिंह के साथ एक बंद कमरे में मीटिंग कर कर रहे थे और रांची में नियुक्त किये तमाम पत्रकारों और कैमरामैन के साथ बाहर बैठकर नीलेश और सुकेश इधर-उधर की बातें करते हुये माहौल को समझने की कोशिश कर रहे थे। बीच-बीच में माहुल वीर कमरे से बाहर निकलता था और एक सिगरेट सुलगाकर अधिकतम गति के साथ धूंकने लगता था।। इस दौरान वहां मौजूद लड़के उसे चारो ओर से घेर लेते थे। सुकेश और नीलेश के साथ उनका दुआ सलाम तो हो चुका था लेकिन तसल्ली से बातें नहीं हो पा रही थी, हालांकि सुकेश कई बार उसे साइड में ले जाकर बात करने की कोशिश कर चुका था, लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी। लंबे इंतजार के बाद दोनों बाहर सड़क पर टहलने लगे।
“माहुल से तो बात ही नहीं हो पा रही है, जब भी वह बाहर निकलता है लोग उसे घेर लेते हैं, ” खैनी की डिबिया निकालते हुये सुकेश ने कहा।
“ क्या लगता है हमलोगों का काम होगा या नहीं?” नीलेश ने पूछा
“रांची रहना चाहे तो रह ही सकते हैं, इसमें कोई मुश्किल नहीं होगी। ”
“ मुझे तो रांची भी अच्छा ही लग रहा है, यहां रहने पर नक्सलवाद पर काम करने का भरपूर मौका मिलेगा। नक्सलियों का प्रैक्टिकल आपरेशन यहीं के इलाकों में चल रहे है। यहां का मौसम भी अच्छा है, लेकिन मुझे काम करना है बिहार में, मैं दिल्ली से यही सोच कर चला था कि सिर्फ और सिर्फ बिहार में की काम करूंगा”, नीलेश ने अंतिम वाक्य पर जोर देते हुये कहा।
“ ऐसी क्या खासियत है बिहार में? तुम ठहरे पत्रकार आदमी। तुम्हें तो चुनौती पूर्ण माहौल चाहिये। संभावना बिहार में भी है और झारखंड में भी। यदि झारखंड में रहने का मौका मिला तो तुम्हें व्यवहारिकतौर पर माओत्से तुंग के पीपुल्स वार को समझने का अवसर मिलेगा,” सुकेश ने कहा।
“ तुम चाहो तो यहां रुक सकते हो, लेकिन मैं तो बिहार में ही काम करूंगा”, नीलेश ने कहा।
“ पटना तो मैं भी नहीं छोड़ सकता हूं। पटना के कंड्री लाइव के दफ्तर में एक नया डेवलपमेंट हुया है । भुजंग को बिहार का ब्यूरो प्रमुख बना दिया गया है, ” खैनी में चूना मिलाकर उसे अपनी हथेलियों पर रगड़ते हुये सुकेश ने कहा।
“ कौन भुजंग ?”
“ भोजपुरी चैनल में था, संदीप सिंह की टीम का सदस्य है। संदीप सिंह के कहने पर ही रत्नेश्वर सिंह ने बिहार का स्टेट हेड बनाया है। संदीप सिंह कंट्री लाइव टीवी को पूरी तरह से अपने प्रभाव में लेता जा रहा है, ” सुकेश ने सहजता से कहा।
“इसका मतलब यह हुआ कि पटना ब्यूरो में हमलोगों का रास्ता बंद होता जा रहा है।”
“यह कहना जल्दबाजी होगी। एक बार माहुल वीर से खुलकर बात हो जाये फिर सबकुछ साफ हो जाएगा। भुजंग ने पटना में ज्वाइन कर लिया है, वहां पर इतने सारे हेड हो गये हैं कि काम कम और राजनीति ज्यादा होगी। बिहार में माहुल वीर को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए किसी न किसी तरह हमलोगों की नियुक्ति करनी होगी। मुझे यकीन है कि वह इस लाइन पर जरूर सोच रहा होगा,” यह कहकर सुकेश ने थोड़ी सी खैनी नीलेश को दी और बाकी बचे हुये खैनी को अपने होठों को बीच दबा लिया।
सुकेश के स्टाइल में नीलेश ने भी खैनी को अपने होठों के बीच में रखते हुये कहा, “इस चैनल में कौन-कौन आ रहा है इस बात का मुझपर कोई असर नहीं पड़ेगा। मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि मुझे दो-तीन बेहतर प्रोग्राम बनाने का अवसर मिल जाये। ”
“इसके लिए यह जरूरी है कि हम पहले चैनल के अंदर दाखिल हो और फिलहाल सारी कवायद इसीलिए हो रही है। अब चलो वापस चल कर देखते हैं वहां क्या हो रहा है।”
थोड़ी देर बाद दोनों एक बार फिर रांची स्थित कंट्री लाइव के दफ्तर में थे। माहुल वीर रिसेस्पशन के पास खड़ा होकर वहां मौजूद नये रंगरुटों से कह रहा था, “ रत्नेश्वर सिंह आप सभी लोगों से मिलना चाहते हैं। आप लोग ऊपर कांफ्रेंस हाल में चलकर बैठिये। हमलोग वहीं पर आते हैं।”
एक-एक करके सभी लोग सीढ़ियों से होकर ऊपर की ओर चल दिये। ऊपर न्यूज रूम में कंस्ट्रक्शन का काम तेजी से चल रहा था। न्यूज रूम के ठीक बगल में ही कांफ्रेंस हाल था। दो लोग कांप्रेंस हाल में कुर्सियां लगा रहे थे। चूंकि हाल में पेंट का काम चल रहा था इसलिये उस हाल में घुसने वाले लोगों की आंखें जल रही थी। लगभग सभी लोगों की आंखों से आंसू निकल रहे थे। पेंट के प्रभाव को कम करने के लिए दो बड़े –बडे पंखे चला दिये गये थे, हालांकि इन पंखों का असर उल्टा ही हो रहा था। पेंट की तीखी गंध से लोगों का बुरा हाल हो रहा था। थोड़ी देर बाद उजला पोशाक में रत्नेश्वर सिंह, माहुल वीर और संदीप सिंह के साथ कांफ्रेंस हाल में दाखिल हुये। पेंट के प्रभाव से उनकी आंखे भी जल उठी। हाल के एक कोने में मेज के पीछे लगी कुर्सियों पर तीनों बैठ गये।
अपनी आंखों को कुछ देर तक मसलने के बाद रत्नेश्वर सिंह ने कहा, “ हमलोगों की टीम बन गई है। संदीप सिंह एक मजे हुये पत्रकार हैं, काफी व्यस्त हैं। इसके बावजूद हमारे अनुरोध पर यहां आये हैं। ये हमारे रिश्तेदार भी हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि काम करने के दौरान यह खाना-पीना तक भूल जाते हैं। मैंने इन्हें चैनल से जुड़ने का भी आफर दिया था, लेकिन अपनी व्यस्तता को देखते हुये इन्होंने इंकार कर दिया है। इसके बावजूद ये चैनल से हर स्तर पर जुड़े रहेंगे। इनका दिशा निर्देश हमें मिलता रहेगा। हमें इनके अनुभवों से लाभ उठाना चाहिये। माहुल वीर तो हम लोगों के साथ हैं ही। किसी भी तरह की समस्या होने पर आप लोग माहुल वीर से बात कर सकते हैं, या फिर सीधे मुझसे भी बात कर सकते हैं। अब मैं चाहूंगा संदीप सिंह कुछ बोले। ”
वहां मौजूद सभी लोगों पर एक नजर डालने के बाद संदीप सिंह ने कहना शुरु किया, “ यह सही है कि मैं रत्नेश्वर जी का रिश्तेदार हूं, लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि काम का रिश्तेदारी से कोई संबंध नहीं है। जहां तक रत्नेश्वर जी को मैं जानता हूं, अब तक इन्होंने जो भी काम हाथ में लिया है उसे मुकाम तक पहुंचाया है। धुन के पक्के हैं। मुझे पूरा यकीन है कि कंट्री लाइव न्यूज चैनल भी बिहार और झारखंड में अपन एक खास मुकाम हासिल करेगा। रत्नेश्वर जी परिस्थितियों से जूझते हुये आगे बढ़ना जानते हैं। अब सिर्फ काम और सिर्फ काम के बारे में सोचना है। फिलहाल आप लोग कुछ कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं।”
वहां मौजूद कुछ लोगों ने भी कंट्री लाइव चैनल को कैसे आगे बढ़ाया जाये इस पर अपने विचार रखे। माहुल वीर इस मौके पर कुछ भी कहने से बचता रहा। उसका पूरा ध्यान इस बात पर था कि यहां की व्यवस्था से हर तरह से रत्नेश्वर सिंह संतुष्ट हो जाये। इस सार्वजनिक मीटिंग के बाद माहुल वीर ने रत्नेश्वर सिंह और संदीप सिंह को सेटअप दिखाने लगा। न्यूजरूम, स्टूडियो, पीसीआर, एमसीआर की बारिकियों को बताने के दौरान चैनल से संबंधित भावी योजनाओं पर चर्चा होती रही।
शाम को करीब छह बजे रत्नेश्वर सिंह और संदीप सिंह के जाने के बाद माहुल वीर को फुर्सत मिली। कुछ देर तक वहां के लोगों से बात करने के बाद माहुल सुकेश और नीलेश के साथ बाहर निकल आया। तीनों बाहर सड़क के किनारे खड़े थे। माहुल के हाथ में सिगरेट थी। सिगरेट का एक गहरा कश लेते हुये उसने कहा, “प्रोग्राम रांची से भी बनेंगे और पटना से भी। बिहार स्टेट के हेड के रूप में भुजंग की नियुक्ति हो गई है। तुम दोनों की ज्वाइनिंग में वह प्रोबल्म करेगा। तुम दोनों की ज्वाइनिंग रांची से करा दूंगा। मैं एक दो दिन में पटना पहुंच रहा हूं। आज रुकना है या निकलना है? ”
“अब सारी बात हो ही चुकी है तो रुकने से क्या फायदा, हमलोग निकल जाते हैं,” सुकेश ने कहा।
“अब ये संदीप सिंह को ला दिया है, हालांकि ये सब से पहले नरेंद्र श्रीवास्तव को ही हेडक करेगा। बहुत सारे लोगों को तो भर दिया है। खैर जो होगा देखा जाएगा। सुकेश, तुम्हें सीनियर प्रोड्यूसर और निलेश को प्रोड्यूसर बना देते हैं, क्यों ठीक रहेगा ना? ” माहुल ने कहा।
“तुम जो बेहतर समझो”, सुकेश ने कहा।
कुछ देर तक इधर-उधर की बाते करने के बाद माहुल ने दोनों से विदा लिया। इस तसल्ली के साथ कि पटना में जाकर ज्वाइन करना है, सुकेश और नीलेश गेस्ट हाउस से अपना सामान बटोरने के बाद पटना के लिए निकल पड़े।
12.
रांची यात्रा के तीन दिन बाद सुकेश और नीलेश पटना के बांस घाट स्थित कंट्री लाइव के दफ्तर में थे। दफ्तर के बाहर सड़क पर दो ओबी लगी हुई थी, जिन पर मोटे-मोटे अक्षरों में कंट्री लाइव लिखा हुआ था। दफ्तर में चहल-पहल थी। सुबह से ही रिपोटरों और कैमरा मैन को ज्वाइनिंग लेटर दिये जा रहे थे। सफेद पोशाक में रत्नेश्वर सिंह अपने चेंबर में बैठे हुये थे। नरेंद्र श्रीवास्तव और माहुल वीर भी उन्हीं के साथ बैठकर चैनल से संबंधित भावी कार्यक्रमों की योजना बनाने में तल्लीन थे।
मकान के अंदरुनी हिस्से में प्रोग्रामिंग और एसाइनमेंट डेस्क को रत्नेश्वर सिंह के चैंबर के ठीक सामने एक ही स्थान पर सेट कर दिया गया था। यह स्थान मकान के दूसरे हिस्से का बरामदा था,जिसे लकड़ी से पूरी तरह से पैक करके कबूरतखाने का शक्ल दे दिया गया था। मकान के इस हिस्से में खुली हवा आने की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस हिस्से में तीन तरफ से लकड़ी का घेरा देते हुये डेस्क बना दिये गये थे, जिन पर पांच कंप्यूटर और दो एडिटिंग मशीन रखे हुये थे। इन घेरों के बीच में बचे हुये थोड़ी सी जगह में लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। दो दिशाओं में दो कुर्सी रख देने के बाद बीच में सिर्फ एक आदमी के अंदर-बाहर करने का जगह बचता था। यह बरामदा उस मकान में स्थित सभी कमरों से जुड़ा हुआ था, हर कमरे का कम से कम एक दरवाजा इस बरामदे में खुलता था। बरामदे के पश्चिम दिशा वाले कमरे को रत्नेश्वर सिंह के चैंबर के रूप में तब्दील कर दिया गया था, क्योंकि इस कमरे के साथ लैट्रिन व बाथरूप एटैच थे और रत्नेश्वर सिंह की यह सख्त हिदायत थी कि उनकी बैठने की व्यवस्था ऐसे कमरे में की जाये जिसके साथ लैट्रिन और बाथरूम अटैच हो। उस कमरे में एक बड़ा सा टेबुल, कुछ कुर्सियां,एक टीवी और एक एयर कंडिशनर को सलीके से सेट करके उसे भव्यता प्रदान करने की पूरी कोशिश की गई थी।
बरामदे के पूरब दिशा में एक दरवाजा था, जो आगे जाकर एक छोटे से हाल में खुलता था। लकड़ी की मदद से इस हिस्से को भी घेर कर छोटे से दरबे का रूप दे दिया गया था। स्टेट हेड भुजंग के बैठने की व्यवस्था यहीं कर दी गई थी। आगे के हाल में भी तीन छोटे-छोटे दरबे बना दिये गये थे। इन दरबों के सामने एक छोटी सी गली थी, जिसका एक सिरा रिस्पेशन की ओर जाता था और दूसरा सिरा बाथरूम की ओर। बीच में एक शीशे का दरवाजा देकर रिस्पेशन को इस गली से काट दिया गया था। बाहर से इस गली में आने के लिए इस शीशे की दीवार से होकर गुजरना पड़ता था। शीशे की दीवार से दाखिल होने के बाद पश्चिम दिशा में एक बड़ा सा हाल था, जिसमें बाहर से आने वाले लोगों को बैठाने की व्यवस्था की गई थी। उस मकान का यही एक कमरा खुला-खुला सा था। इसकी लंबी-लंबी खिलड़कियां उत्तर की ओर उस बगीचे में खुलती थी जिसमें कैक्टस के पौधे लगे हुये थे। इस बड़े से हाल का दक्षिण का दरवाजा उस बरामदे में आकर खुलता था जहां पर प्रोग्रामिंग और एसाइनमेंट को सेट किया गया था। कुल मिलाकर इस कबूतर खाने में एक बार प्रवेश करने के बाद अंदर ही अंदर बड़ी सहजता से किसी भी दरबे में जाया जा सकता था। रत्नेश्वर सिंह के चैंबर तक पहुंचने के लिए एक-एक करके सभी दरबों को पार करना पड़ता था।
नीलेश, सुकेश और रंजन प्रोग्रामिंग वाले दरबे में आमतौर पर बिहार के शहरी शादी-विवाह में इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठे हुये थे। उनके इर्दगिर्द लकड़ी के बने डेस्कों पर कुछ पुराने तो कुछ नये माडल के पांच कंप्यूटर रखे हुये थे, दो कंप्यूटरों की बत्तियां जल रही थीं, जबकि तीन बंद पड़े थे। रंजन एक चालू कंप्यूटर के सामने बैठा हुआ था, सुकेश और नीलेश कुछ दूरी पर थे।
सामने रत्नेश्वर सिंह के चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद था, अंदर एक साथ कई चीजों को लेकर विचार मंथन चल रहा था। रत्नेश्वर सिंह की इच्छा इस नये धंधे से जुड़ी हर चीज को सीखने, समझने और जानने की होती थी और उनके चैंबर में मौजूद माहुल वीर की पुरजोर कोशिश होती थी कि रत्नेश्वर सिंह की जिज्ञासा को शांत करे। नरेंद्र श्रीवास्तव ने पहले ही यह कह रखा था कि चैनल के बारे में वह कुछ नहीं जानते हैं, लेकिन उनके पास चैनल को चलाने वाले सटीक लोग हैं। रत्नेश्वर सिंह के पास माहुल वीर की इंट्री चैनल चलाने वाले एक विशेषज्ञ के रूप में हुई थी, और इस रुतबे को मजबूत करने का एक भी मौका वह नहीं खोता था। इस वक्त भी अंदर चैनल से संबंधित किसी फंडे पर जुगाली हो रही थी, साथ में कई आर्थिक और प्रशासनिक काम भी निपटाये जा रहे थे। एकाउंटेंट विमल मिश्रा बार-बार अपने हाथों में कागज का पुलिंदा लेकर अंदर-बाहर कर रहा था। हर कर्मचारी के नियुक्ति पत्र पर रत्नेश्वर सिंह खुद दस्तखत कर रहे थे।
कई लोगों को ज्वाइनिंग लेटर मिल चुका था और कई लोग लेटर के इंतजार में इधर-उधर टहल रहे थे। लेटर बांटने की प्रक्रिया पिछले दो दिन से चल रही थी। सुकेश और नीलेश को रंजन ने यह कहा गया था कि अभी उनका लेटर नहीं बना है। वे दफ्तर आते रहे लेटर उन्हें दे दिया जाएगा। अपनी आंखों के सामने कई लोगों को लेटर मिलते देखकर नीलेश को थोड़ा गुस्सा आ रहा था। असंतोष के भाव तो सुकेश के चेहरे पर भी थे, लेकिन इधर-उधर की बातें करते हुये वह उन भावों को दबाने की कोशिश कर रहा था।
“अभी तक हमलोगों को नियुक्ति पत्र भी नहीं मिला है, दो दिन से यहां आकर बैठ रहे हैं। मुझे तो इनका सारा मामला ही गड़बड़ लग रहा है, इस तरह से यहां समय बर्बाद करने का तुक मेरी समझ में नहीं आ रहा है, क्या कहते हो तुम?”, अपने कंधे को सुकेश की तरह झुकाते हुये नीलेश ने पूछा।
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो, एक बार रंजन से पूछो,’ सुकेश ने सलाह दी।
नीलेश रंजन से मुखातिब हुआ, “हमें ज्वाइनिंग लेटर कब मिलेगा? ”
“यहां लेटर का कोई वैल्यू है? अभी तक मैंने भी लेटर नहीं लिया है, चुपचाप बैठे रहिये, मैं आपको लेटर बना कर दे दूंगा,” रंजन ने कहा।
“मैं इस तरह से काम करने का आदि नहीं हूं, लेटर देना है तो दिजीये नहीं तो राम सलाम करिये। मेरा समय बर्बाद मत कीजिये, कई जगह काम कर चुका हूं और काम करने का तरीका मुझे मालूम है। ” नीलेश ने थोड़ा तीखे अंदाज में कहा, जो रंजन को नागवार लगा। रंजन ने संभलते हुये कहा, “एक बार माहुल वीर से बात कर लिजीये, आप लोगों का लेटर रांची से निकलेगा।”
जैसे ही रंजन की बात पूरी हुई, वैसे ही एक खूबसूरत सी लड़की दरबे के उस हिस्से में दाखिल हुई और एक कुर्सी खींच कर चुपचाप बैठ गई। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें अपने अगल- बगल के लोगों के प्रति पूरी तरह से बेपरवाह थी, यहां तक कि उसके बैठने का ढंग भी बेपरवाही के हद से चार कदम आगे था। उसने पैर के ऊपर पैर चढ़ाकर उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया था और हाथ में अंग्रेजी का एक नावेल लेकर इस अंदाज में खो गई कि यहां बैठकर वह अगल-बगल लोगों पर मेहरबानी कर रही है, कि सिवाये दूसरी दुनिया में खोने के अलावा उसे और कुछ आता ही नहीं है, कि उसके दिमाग में एक साथ कई विचार तैर रहे हैं और इन तैरते विचारों की एक झलक पाने के लिए वहां बैठे तमाम लोग वर्षों से इसी पल की प्रतीक्षा कर रहे थे। फूल बांह की काली कमीज और ब्लू जींस में उसका गोरा चेहरा उस दरबे में ट्यूब लाईट की तरह दमक रहा था। कोई चोरी छुपे तो कोई खुलेआम उसका दीदार कर रहा था।
दरबे के एक कोने से निकल कर भुजंग सामने आया और उस लड़की के पास खड़ा होते हुये पूछा, “क्या नाम है आपका?”
“ तृष्णा विशाल,” खड़े होते हुये उसने जवाब दिया।
“एंकरिंग के लिए आई हो ना? ”
“जी हां।”
“बैठ जाओ”, रंजन वाले हिस्से में आकर एक कुर्सी खींचकर तृष्णा के ठीक सामने बैठते हुये भुजंग ने कहा। “इसके पहले कहीं काम किया है?”
“स्टेज शो के कार्यक्रमों में लाइव परफारमेंस करती रही हूं। दूरदर्शन पर भी मेरे प्रोग्राम आते रहते हैं। ”
“ कितने पैसे चाहिये यहां काम करने के? बायोडाटा लाई हो। ”,
“जी,” यह कहते हुये उसने नावेल के पन्नों की बीचे से अपना बायोडाटा निकाल कर भुजंग की ओर बढ़ा दिया।
“आज ही ज्वाइन करना होगा, दस हजार मिलेंगे,” बायोडाटा पर नजर दौड़ाते हुये भुजंग ने कहा।
“ये तो बहुत कम है। मुझे अपने घर वालों से पूछना पड़ेगा। मैं कल तक बता पाऊंगी,” कुछ देर तक सोचने के बाद उसने कहा।
“जो निर्णय लेना है अभी लो, वैसे मेरी सलाह मानों तो ज्वाइन कर लो, एक जगह दिखोगी तो तुम्हारी पहचान बनेगी, ब्रांडिंग होगी।”
इस बीच माहुल वीर रत्नेश्वर सिंह के चैंबर से बाहर निकला और सामने भुजंग और तृष्णा को देखकर थोड़ी देर के लिए रुक गया।
“भाई साहब, इस लड़की को एंकर रख लेते हैं, दस हजार में। ”, माहुल वीर को सामने पाकर थोड़ा उत्साहित होते हुये भुजंग ने कहा।
“मुझे बारह हजार दे दिजीएगा, दस हजार पर मैं काम नहीं कर पाऊंगी, ” भुजंग की बात को काटते हुये तृष्णा ने कहा।
“यहां मीडिया के लिए नियुक्ति हो रहा है या साटा लिखा रहा है,”, माहुल वीर ने बुदबुदाते हुये कहा। काफी देर से उसे सिगरेट की तलब हो रही थी, इसलिये बाहर की ओर निकल गया।
तृष्णा जिस तरीके से बार्गेनिंग कर रही थी, उससे भुजंग की नजरों में उसका वैल्यू कुछ और बढ़ गया था, जबकि रंजन की यही इच्छा हो रही थी, एक मिनट में उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये। नीलेश और सुकेश भी तृष्णा और भुजंग के बीच जारी बातचीत में रुचि ले रहे थे।
“देखो बेटे, अभी तुम्हें बहुत सीखने और जानने की जरूरत है। यहां तुम्हें भरपूर मौका मिलेगा। ज्यादा सोचो मत, ज्वाइन कर लो। कहो तो लेटर तैयार करवा दूं? और हां, आज ज्वाइन नहीं करोगी तो कल की मैं गारंटी नहीं ले सकता। बाहर बहुत सारे लोग कतार में हैं, ” भुजंग ने समझाया।
“ठीक है ज्वाइन कर लूंगी,” तृष्णा ने हामी भर दी और भुजंग को यह अहसास हुआ जैसे उसने बाजी मार ली हो। तृष्णा के बायोडाटा को लेकर करीब आधे घंटे तक वह प्रशासनिक फार्मिलिटी पूरा करने में लगा रहा और फिर रत्नेश्वर सिंह के हस्ताक्षरयुक्त ज्वाइनिंग लेटर के साथ हाजिर हुआ।
थैंक्स कहते हुये तृष्णा ने लेटर रख लिये और अगले दिन से दफ्तर आने का वादा करके निकल गई। सुकेश और नीलेश एक दूसरे के चेहरा देखते हुये उठ खड़े हुये।
“सर, मुझे लेटर कब मिलेगा, पिछले तीन दिन से मैं आ रही हूं। हमेशा यही कहा जाता है कि कल दिया जाएगा, ” एक मोटी सी लड़की, जो बहुत देर से कबूरत खाने के उस हिस्से में बैठी हुई थी, ने रंजन से पूछा।
“जब मैंने कह दिया है कि लेटर मिल जाएगा तो समझो मिल जाएगा,” रंजन के चेहरे पर थोड़ी सी झुंझलाटह थी। सुकेश और नीलेश बाहर जा चुके थे।
जारी….
alok bhai badhai. bahut achha likh rahe hai. behtar upnyas hoga. kya isme mai bhi hu. kab tak chhapega. padh kar majaa aa rahaa hai.
dhanyabaad
aapka
akhilesh alkhil