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बाबा रामदेव के रियलिटी शो की तैयारी पूरी

भ्रष्टाचार के खिलाफ बाबा रामदेव स्टेज शो की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। दिल्ली के रामलीला मैदान में तंबू-बंबू गड़ गये हैं। ढाई सौ से अधिक मजदूर दिन रात इस काम में लगे रहे। बाबा रामदेव के साथ अनशन पर बैठने वाले आंदोलनकारियों के लिए भव्य व्यवस्था की गई है। पंडाल को पूरी तरह से चकमक बनाया गया है, करीब आठ सौ कूलर लगे हुये हैं।   मीडिया वाले भी इस भव्य स्टेज शो को कवर करने के लिए अभी से ही मैदान में कूद गये हैं। कितनी संख्या में ओबी खड़ा किया जाये, कितने रिपोटरों को मौके पर तैनात किया जाये, एडिटिंग डेस्क की रणनीति क्या हो आदि को लेकर टीवी स्क्रीन को हांकने वालों के बीच ताबड़तोड़ बैठकें चल रही हैं। इतने बड़े स्टेज शो का लाइव कवरेज करने की जबरदस्त योजना बनाई जा रही हैं। जिस तरह से बाबा रामदेव स्टेज पर एक्टिंग करते हैं उसे देखकर मीडियावाले आश्वस्त हैं कि बाबा का यह शो कौन बनेगा करोड़पति से भी बेहतर टीआरपी देगा।

कांग्रेसी खेमे से लेकर बाबा रामदेव के तंबू और बंबू को परफेक्ट एडिंटिंग के साथ कंपाइल करते हुये प्रजेंट करने की होड़ अभी से ही लगी हुई है। सारा तमाशा रियलिटी शो की तरह नजर आएगा, यानि कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फूल इमोशनल सेंसेशन। आज पहला दिन, आज दूसरा दिन, आज तीसरा दिन और आज चौथा दिन…..और डटे हुये हैं बाबा रामदेव। सरकार के माथे पर पसीना,  मीटिंग पर मीटिंग और अन्त में रिजल्ट ढाक के तीन पात की तरह, जैसा कि अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ हुआ था। बाबा रामदेव यह जलसा अन्ना हजारे नाटक का ही दूसरा अंक है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस दूसरे अंक में अन्ना हजारे सेकेंड लीड में नजर आएंगे, फोकस बाबा रामदेव पर होगा। बाबा रामदेव लंबे समय से भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को घुट्टी पिला रहे हैं। नियमित फीस देने वाले कार्यकर्ताओं की एक फौज भी

तैयार कर ली है, जो बाबा के साथ इस स्टेज शो में भाग लेने के लिए देश के कोने-कोने से चल चुके हैं। बाबा रामदेव 500 और 1000 के नोट को खत्म करने की बात कर रहे हैं। उनके दिमाग में यह बात बैठी हुई है कि ऐसा करने से देश में काले धन पर अंकूश लगाने में सफलता मिलेगी। बाबा रामदेव को शायद नहीं मालूम कि इसके पहले भी देश में 1000 के नोट को रद्द किया गया है। काले धन पर रोक लगाने का यह प्रयोग असफल साबित हो चुका है।  

 1000 के नोट को एक बार पहले भी भारत में बंद किया गया था, जिसके बाद तमाम लोग हजार के नोट पर खाना खाते हुये नजर आये थे। भ्रष्टाचार इससे खत्म नहीं हुआ बल्कि और बढ़ता ही गया। बाबा रामदेव पुरानी शराब को नई बोतल में भरने की कोशिश कर एक बार फिर भारत के लोगों को मतवाला करने की कोशिश में लगे हैं।

इसी तरह काले धन की वापसी का मामला भी कई बार भारत में उठ चुका है। इसमें कोई शक नहीं है कि बहुत बड़ी मात्रा में भारत में रह रहे धनाठ्य लोगों का काला धन विदेशी बैंकों में जमा है। यह मामला कई बार उठ चुका है। यहां तक कि प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में भाजपा का नेतृत्व करने वाले लाल कृष्ण आडवानी भी जोर शोर से इस पर मुहिम चला चुके हैं, लेकिन उनकी

मुहिम भी टायं-टायं फिस्स हो गई और एक तरह से भारतीय राजनीति से उनका सफाया ही हो गया, हालांकि इसके और भी कई कारण थे। लोगों की स्मरण शक्ति कमजोर होती है। भारत के लोगों का यह फितरत है कि भ्रष्टाचार को लेकर लोग सहजता से आंदोलित हो जाते हैं, लेकिन हर बार भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी आंदोलन को मुंह ही खानी पड़ती है। विश्वनाथ सिंह के नेतृत्व में बोफोर्स तोप का मुद्दा देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी जंग का प्रतीक बना था। विश्वनाथ सिंह की सरकार भी बनी लेकिन भ्रष्टाचार अनवरत रूप से जारी रहा। लोग बोफोर्स को भी पूरी तरह से भूल गये। भूलना भारतीयों की नियती है। भ्रष्टाचार को लेकर बाबा रामदेव भले ही एक ज्वार लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस ज्वार का क्या हर्ष होगा कह पाना मुश्किल है। विगत के इतिहास से तो यही लगता है कि बाबा रामदेव से बढ़चढ़ उम्मीद करने का अर्थ होगा एक बार फिर धोखा खाना।     

भ्रष्टाचारियों के लिए बाबा कैपिटल पनिशमेंट की बात कर रहे हैं। 1789 ई की फ्रांसीसी क्रांति के समय भी भ्रष्टाचार एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना था। क्रांति के दौरान भ्रष्टाचारियों को जज राब्सपीयर के नेतृत्व में पूरी क्रूरता के साथ गिलोटिन पर चढ़ाया गया था, यहां तक कि लुई सोलहवां और उसकी पत्नी मेरी अन्तोनोयेत समेत उनके बच्चों को भी गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया था। गिलोटिन पर चढ़ाने के सिलसिला राब्सपीयर की मौत से ही समाप्त हुआ। राब्सपीयर को भी गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। भ्रष्टाचारियों को कैपिटल पनिशमेंट देने की बात कह कर बाबा रामदेव जाने अनजाने भारत को गिलोटिन की ओर ही ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इसके दायरे में बाबा रामदेव देर सवेर खुद इसके लपेटे में जाये। वैसे भी भारत का लोकतंत्र परपक्व हो चुका है, इसे गिलोटिन की जरूरत नहीं है।      

फिलहाल बाबा रामदेव लोकप्रियता के शिखर पर हैं। योग ने बाबा को एक चर्चित व्यक्ति बना दिया है, अब  वे देश में सुधार की बात भी कर रहे हैं और व्यवस्थित तरीके से इसके लिए प्रयत्न भी कर रहे हैं। आगे बढ़कर उन्होंने खुद से देश के नेतृत्व की जिम्मेदारी भी ले ली है। लेकिन उनका स्वर कहीं न कहीं हिटलरवादी मानसिकता को ही व्यक्त करता है, भले ही उनका हाव भाव फूहड़ हो, जिसमें से एक धुर्धता की बू आती है।      

बहरहाल मामला जो हो, फिलहाल बाबा का रियलिटी शो देखने के लिए तैयार हो जाइये,  टेलीविजन के हर चैनल पर आने वाले दिनों में बाबा रामदेव ही दिखाई देंगे। भ्रष्टाचार खत्म हो या न हो, लेकिन यह संदेश जरूर लोगों तक पहुंचेगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ फाइनल जंग का उदघोष हो चुका है। बाबा का मीडिया मैनजमेंट वैसे ही दुरुस्त हैं, और मीडिया के लिए वह एक बिकाऊ आइटम तो पहले से बन चुके हैं। भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर बाबा को बेचने के लिए मीडिया व्याकुल है, और बाबा भी अपने तरीके से मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए सजग है। डर है कि एक बार फिर देश के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता कहीं ठगी न जाये।  

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2 Comments

  1. आलोक जी,
    अन्तिम वाक्य में देश की जगह दुनिया होगा। बाबा का ढाबा मीडिया को कुछ दिन खाना तो आराम से खिलाएगा ही। हजार के नोट की बात तब सही है जब चीजें बहुत सस्ती हों, अभी नहीं। http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/05/big-currency-notes-in-india-black-money.html देखें। यहाँ नोट पर चर्चा है।

    घूमता इतिहास है हर बार देखो
    भ्रष्ट लोगों का बड़ा त्योहार देखो
    हर तरफ़ इन चैनलों के कार देखो
    भीड़ करती हर तरफ़ जयकार देखो
    मूर्ख मुखिया का डरा व्यवहार देखो
    बीते गए दिन अनशन के अब चार देखो
    हूँह! खाली गया ये वार देखो
    निकला ये भी पल्टीमार देखो
    पूरा तमाशा हो गया बेकार देखो
    हो गई है देश की फिर हार देखो
    सत्ता का यहाँ व्यापार देखो
    पचास सालों से खड़ी सरकार देखो
    बाबा का तमाशा खत्म
    अब खुश हुआ सरदार देखो

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