बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
विलियम और केट की शादी को जिस तरह से भारत के इलेक्ट्रानिक मीडिया महिमामंडित करने पर तुले हुये हैं उसे देखकर एक पुराना जुमला याद आता है, बेगाने की शादी में अब्दुलाह दीवाना। सारे मीडिया गुरुओं को एक साथ जुकाम हो गया है और लय ताल में बस छिंके चले जा रहे हैं। कुछ दिन पहले यह मीडिया अन्ना हजारे को दूसरा गांधी साबित करने पर तुली हुई थी, और अब विलियम और केट की शादी में ठुमके लगाने पर तुली हुई है। एक स्वाभाविक सा प्रश्न उठता है कि विलियम और केट की शादी में केट शादी मे क्या पहनेगी, वह क्यों नर्वस हो रही है, उसके ग्रह नक्षत्र क्या कह रहे हैं, विलियम और केट की आंखे चार कैसे हुई, स्क्रीन पर आकर एंकर पूरे हाव-भाव के साथ पूरे मामले को मसालेदार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय समाज के लिए यह कितना प्रासांगिक है?
डमोक्रेटिक सेटअप को अपनाने के बाद इंग्लैंड में राजशाही को आज भी जिंदा रखा गया है। वहां के लोग शाही परिवार की गतिविधियों में खासतौर पर रुची रखते हैं। वहां के राजशाही परिवार पर वहां की मीडिया में गासिप अंदाज में खूब खबरें छपती हैं जिन्हें लोग चटकारे लेकर पढ़ते हैं लेकिन गंभीरता से नहीं लेते। राजशाही ब्रिटेन में परंपरागत रुप से आज भी जिंदा है, और राजशाही को जिंदा रखने में ब्रिटेन के लोग गर्व का अनुभव करते हैं, जबकि दुनिया के अन्य मुल्कों में राजशाही को एक बदनुमा धब्बा मान भुला दिया गया है या फिर नेपथ्य में धकेल दिया गया है। राजशाही के मत्थे पर आज भी अनगिनत लोगो के खून के कलंक लगे हुये हैं। ऐसे में पुरी दुनिया के सामने राजशाही के इस रंग को इतना महिमामंडित करके परोसने का तुक समझ के परे है।
जिस तरह से भारतीय मीडिया में विलियम और केट के विवाह को दिखाया जा रहा है उसे देखते हुये यही कहा जा सकता है कि भारतीय मीडिया को हांकने वाले लोग या तो मानसिक रुप से दिवालिया है या फिर आज भी 1947 के पहले वाली मानसिकता में जी रहे हैं। वैसे भारत में सरदार बल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण राजशाही की कब्र खोद दी गई थी। ऐसे में ब्रिटेन की एक शाही शादी का सीधा प्रसारण अपने आप में सवाल खड़ा करता है। क्या यह भारतीय मीडिया में लगे विदेशी पूंजी का असर है? वैसे भी भारत में जरूरत की मूलभूत चीजों से ध्यान हटाने का नाटक बहुत लंबे अरसे से इन्हीं तंत्रों से सफल हो रहा है।
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