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भारतीय सिनेमा के सौ साल: आई एम 100 इयर्स यंग

रविराज पटेल,

पटना, 3 मई 2013मौका था भारतीय सिनेमा के सौवें वर्षगांठ का। इसी तिथि (3 मई, 1913) को प्रथम भारतीय फीचर फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र पहली बार बम्बई (अब मुंबई) के कोरेशन थियेटर में प्रदर्शित हुई थी। ठीक सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पटना स्थित कालिदास रंगालय भी लब्बोलुवाब था शहर के सिने प्रेमियों से। कालिदास रंगालय के शकुंतला प्रेक्षागृह में इस कार्यक्रम का उद्घाटन पटना दूरदर्शन के उप महानिदेशक श्री कृष्णदेव कल्पित ने किया तथा अध्यक्षता मशहूर कवि श्री अलोक धन्वा ने किया।

इस अवसर पर श्री कल्पित ने कहा कि सिनेमा के प्रति यह दीवानगी ही है कि आज हम सब यहाँ उपस्थित हैं। आज के समय में और पहले के ज़माने के सिनेमा देखने में काफी अंतर आ गया है। 5060 के दशक में सिनेमा देखना एक अनुष्ठान जैसा अनुभव देता था। आज वह बात नहीं रही। सिनेमा अपनी गंभीरता लगातार खोती जा रही है, हमें इस पर विचार करना चाहिए।

अपने अध्यक्षीय उदगार में कवि अलोक धन्वा ने कहा कि मैं कवि ज़रूर हूँ, लेकिन मूलतः मैं सिनेमा का आदमी हूँ। मैं सिनेमा का बेहतर समझ रखता हूँ, यह श्रेय चार्ली चैप्लिन, सत्यजीत राय, विमल राय, श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकारों के फिल्मों को जाता है। मुझे कविता ज्यादा याद नहीं है लेकिन मुगले आज़म का एक एक संवाद आज भी मुझे याद है। यह फिल्मों की सम्प्रेषणशीलता की ताकत जो दर्शाता है। आज मैं बहुत खुश हूँ और यह शानदार आयोजन के लिए सिने सोसाइटी और बिहार आर्ट थियेटर को विशेष बधाई देता हूँ।

उद्घाटन समारोह संपन्न होने के पश्चात भारत सरकार के फ़िल्म डिविजन द्वारा निर्मित एवं यश चौधरी द्वारा निर्देशित 122 मिनट की वृतचित्र आई एम 100 इयर्स यंग दिखाई गई।

इसके तुरंत बाद भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्मित और निर्देशित प्रथम भारतीय फीचर फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र दिखाई गई। यह फ़िल्म 20 मिनट की है। वैसे यह फ़िल्म 40 मिनट की बनी थी, परन्तु अब जो उपलब्ध है वह मात्र 20 मिनट की ही है।

इसके बाद सिने सोसाइटी, पटना के अध्यक्ष श्री आर. एन. दास जी (अवकाश प्राप्त भा.प्र.से.) का अभिनन्दन समारोह संपन्न हुआ। यह अभिनन्दन सिने सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. दिलीप सेन के पहल पर आयोजित थी। इस अभिनन्दन समारोह के भी अध्यक्ष डॉ. दिलीप सेन ही थे तथा सफल संचालन सोसाइटी के उपाध्यक्ष डॉ. जय मंगल देव ने किया। इस अवसर पर मंचासीन थे बिहार संगीत नाटक आकदमी के अध्यक्ष डॉ. शंकर दत्त, बिहार संगीत नाटक आकदमी के पूर्व अध्यक्ष एवं मीडिया क्रिटिक डॉ. शंकर प्रसाद, बिहार आर्ट थियेटर के महासचिव एवं वरिष्ठ रंगकर्मी सह कार्यक्रम नियंत्रक श्री अजित गांगुली, पटना विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष सह संस्कृतिकर्मी प्रो. शैलेश्वर सती प्रसाद एवं सोसाइटी की वरिष्ठ सदस्या प्रो. अनुराधा सेन। मंच संचालक डॉ. देव ने अध्यक्ष की इज़ाज़त से प्रो. अनुराधा सेन को आमंत्रित किया, जिन्होंने श्री दास के सम्मान में विनम्र अभिनन्दन पत्र पढ़ा। तत्पश्चात डॉ. दिलीप सेन ने श्री दास को मोमेंटो प्रदान किया वहीं प्रो. शैलेश्वर सती प्रसाद ने उन्हें अंग वस्त्रम् प्रदान कर सम्मानित किया। मंचासीन सभी वक्ताओं ने श्री दास के सम्मान में उनकी शालीनता, सहजता, सहयोग भावना एवं ज्ञान भंडार पर प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती मिनती चकलानविस ने किया।

इसके तुरतं बाद सिने सोसाइटी द्वारा निर्मित वृतचित्र पोस्टरिक्सदिखाई गई। इस फिल्म के निर्देशक डॉ. जय मंगल देव एवं प्रशांत रंजन हैं। 26 मिनट की यह फ़िल्म, फिल्मों के पोस्टरों पर आधारित है।

इस पूरे कार्यक्रम के संयोजक सिने सोसाइटी, पटना के मीडिया प्रबंधक रविराज पटेल थे तथा सह संयोजक युवा रंगकर्मी कुमार रविकांत थे। आयोजक सिने सोसाइटी, पटना एवं बिहार आर्ट थियेटर के साथ सह आयोजक पाटलिपुत्र फिल्म्स एंड टेलीविजन एकेडेमी, पटना था।

इस अवसर पर वरिष्ठ फिल्म समीक्षक श्री विनोद अनुपम, श्री अलोक रंजन (मुंबई), वरिष्ठ रंगकर्मी श्री सुमन कुमार, श्री अभय सिन्हा, श्री कुमार अनुपम, श्री अनीस अंकुर, सिने सोसाइटी के सचिव श्री गौतम दास गुप्ता श्रीमति माला घोष , श्री यु. पी. सिंह, श्री चिरागउद्दीन अंसारी, डॉ. शत्रुगन प्रसाद, पाटलिपुत्र फिल्म्स एंड टेलीविजन एकेडेमी के निदेशक श्री संतोष प्रसाद के अलावा शहर के कई सजग रंगकर्मी, प्रबुद्ध सज्जन, एवं पत्रकार मौजूद थे |

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सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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