जर्नलिज्म वर्ल्ड

भावनाओं के संमदर में कब तक हिचकोले लगाते रहेंगे!

संतोष सिंह,पत्रकार|

कभी कभी मुझे अपने आप पर हंसी आती है, कभी गुस्सा भी आता है, और कभी शर्म भी महसूस होती है कि हम भी इस देश के नागरिक हैं। भारत माता की जय कहने वालों को मेरी इस बात से दुख हुआ होगा, स्वाभाविक है हमलोग भावनाओं की गोद में पैदा लेते हैं और भावनाओं के संमदर में तैरते हुए फिर वापस वहीं लौट जाते हैं जहां से सफर की शुरुआत हुई थी। मित्रों भावनाओं के इस संमदर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो कम से कम किनारे तो आइये, इसके अलावे भी एक बड़ी दुनिया है जिसे समझने और देखने की जरुरत है।
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वर्ष से इस संमदर मे तैर रहे हैं, क्या मिला आप खुद अनुभव कर सकते हैं। नारा दिया रोटी कपड़ा और मकान बेहतर आप बता सकते हैं कितने लोगो को मिला, फिर नारा दिया सबको शिक्षा सबको सम्मान क्या मिला बेहतर आप बता सकते हैं, फिर नारा दिया धर्मनिरपेक्षता बेहतर आप ही समझ सकते हैं, कितने धर्मनिरपेक्ष है हमारी सरकार। दलित, महादलित, पिछड़ों, अतिपिछड़ों और अब मुसलमानों के आरक्षण की वकालत हो रही है, इन वर्गो से जुड़े लोगों से ही मेरा सवाल है नौकरी में और चुनाव में आरक्षण मिलने से कितना भला हुआ इस वर्ग के लोगों का। जिन्होंने इस आधार पर नौकरी पायी, इस आधार पर सांसद, विधायक और मंत्री बने अब तो मुखिया भी बन रहे हैं, इनसे इन वर्गों के समाज में क्या बदलाव आया। आजादी के 66 वर्ष बाद भी यह समाज इस आधार पर कहां तक पहुंचा है। लेकिन इसके आधार पर हो क्या रहा है, राजनीतिज्ञ जब चाहते हैं इन मुद्दों पर हमारा आपका सीधे सीधे शब्दों में कहे तो बलात्कार कर लेते हैं। चुनाव जीते फिर वही खेल शुरु, लूट लाओ और अपना खजाना भरो। यह खेल आजादी के समय से ही जारी है और दुर्भाग्य यह है कि जैसे जैसे हमलोग काबिल हो रहे हैं नेताओं की दुकान और चमकती ही जा रही है। पहले नेता और उनके कार्यकर्ता गांव गांव में भावना भड़काते थे अब उसमें मीडिया भी शामिल हो गयी है और हमलोग लूट रहे हैं।
मुझे तो कभी कभी लगता है कि गांव का भोला भाला मजदूर हमसे बेहतर सोचता है और हमसे बेहतर इंसान है। 1989 में पहली बार मुझे मताधिकार का अधिकार मिला था और तब से वोट डाल रहे हैं। 1998 से पत्रकार हैं तो नेताओं और वोटरों को करीब से देख रहे हैं, मुझे तो लगता है कि दिन प्रतिदिन स्थिति बुरी ही होती जा रही है। राजनेता ऐसे मुद्दे ला रहे हैं जो सिर्फ भावनाओं को हवा दे रही है। अभी देखिए छह माह बाद चुनाव होना है कांग्रेस की सरकार की तमाम विफलतायें पीछे छूट गयी हैं, मुद्दा क्या है धर्मनिरपेक्षता नरेन्द्र मोदी आ रहा है जो मुसलमानों को इस देश से मिटा देगा। आम मुस्लिम नेताओं के इस चाल से कितने प्रभावित हैं ये तो बाद की बात है। लेकिन नेता से अधिक मुस्लिम बुद्दिजीवी, मीडिया और फेसबुक से जुड़े मुस्लिम जिन्हें इस्लाम में सिर्फ कट्टरता दिखता है वे तूफान मचाये हुए हैं।
दंगा भड़क जाये इसकी कामना करते हैं, इससे इनका रोजगार चल जायेगा। इन्हें अपने कॉम की चिंता नहीं है। 80 फिसद आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है, लेकिन अल्लाह के नाम पर फसाद करवाने में इन्हें आंनद की अनुभूति होती है। लेकिन इनकी दुकान इसलिए फलफूल रही है क्यों कि हमलोग आज भी नहीं समझ पा रहे हैं कि ये क्या चाह रहे हैं। इसी तरह से मोदी समर्थकों की बात करें। तूफान मचाये हुए हैं जैसे इस देश में बाबर का प्रभाव एक बार फिर बढने वाला है बात करेंगे हिन्दू राष्ट्रवादी का क्या है, हिन्दू राष्ट्रवाद दूसरे धर्म के लोगों को गाली दे उन्हें अपमानित करे, मित्रों बंद करिये ऐसे लोगों की दुकानदारी।
अब बतायें, यूपी में एक आईएस अधिकारी को सरकार ने निलम्बित कर दिया हाय-तौबा मची है। कितने ईमानदार होते हैं ये आईएस अधिकारी किसी से छुपा हुआ है क्या? होते तो हैं जनता के सेवक लेकिन करते क्या हैं जनता पर शासन जनता से इन्हें गंध आती है। कभी दफ्तर में पहुंच जायें आज तक के हमारे महान रिपोर्टर पूण्यप्रसून बाजपेयी जी, समझ में आ जायेगा। क्या हो रहा है और सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि इस खेल में पढ़े लिखे लोग शामिल है जो जितने पढ़े लिखे हैं, वे उतने ही इन मामलों को हवा दे रहे हैं। नीतीश की ही बात कर लीजिए कहते है, चापाकल की सुरक्षा की जिम्मेवारी चौकीदारों की होगी। बीस वर्षो से चौकीदार की नियुक्ति नहीं हुई है, पंचायत में एक चौकीदार होता है और चापाकल की संख्या कितनी। आप ही बतायें, कुछ भी हुआ तो कह देते हैं साजिश है, किसी भी अपराधिक घटनाओं के पीछे साजिश ही तो होती है। साजिश का पर्दाफास करना किसकी जिम्मेवारी है?
लेकिन हो क्या रहा है मीडिया, सरकार और कोर्ट भी यही कर रहा है, कैसे जनता के भावनाओं के साथ खेले और राज करे क्योंकि यह सबसे आसान तरीका है। बिना किसी मेहनत के सब कुछ मिल जाता है और अराम से नौकरी चल जाती है। संभलिये मित्रों! भावनाओं से ऊपर उठ कर कभी दिन में एक बार देश के वर्तमान हलात पर सोचिए नहीं तो वो दिन दूर नहीं है जब कोई विदेशी चालीस की संख्या में आकर आपके पूरे भारता माता को रौद कर ना चले जाये, फौज की भी स्थिति वैसी ही होती जा रही है।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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