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भ्रष्ट सिस्टम से ऊबकर वकील की आत्महत्या

अरविंद त्रिपाठी, कानपुर

यूं तो मौत के कई कारण और बहाने होते है पर इन सब का परिणाम एक ही होता है.दुनिया में अपने अधूरे सपनों को कभी पूरा न होने के लिए छोड़ जाना. दुनिया में अपनी और देश-दुनिया की पहचान बनाने और अपने को सिद्ध करने की योजनाओं का असमय अंत हो जाना. जब बात चली ही है कि मायावती की प्रदेश सरकार अपनी छवि सुधारने में लगी है और सरकार पर बोझ साबित होने वाले भ्रष्ट मंत्रियों पर लगाम कसी जाने लगी है तो लगता है कि अपना शहर कानपुर भी इसी क्रम में है. कानपुर की आशाओं के दुक्लौते केंद्र अनंत मिश्र के प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद हुए आशाओं के संचार में अब कमी आ चुकी है. आम शहरी अब जान चुका है कि वो अब वास्तव में सरकार बन चुके हैं और हम सब उनकी प्रजा हो गए हैं. उनके चारों ओर एक ऐसे काकस का अभेद्य घेरा बन चुका है जिसे तोड़कर अपनी बात पहचानना अब नामुमकिन  प्रतीत होता है. उस घेरे को तोड़ने के लिए आवश्यक सिक्कों की खनक और रंगीनि़यत की व्यवस्था अब आम नहीं रही. ऐसे में एक खास वर्ग के लोग ही उनतक पहुँच पा रहे है.

            माया सरकार में से हटाये गए मंत्रियों और विधायकों के कारनामों को देखा जाए तो कानपुर का वकील का आत्महत्या करना अभी और कभी भी, अपना असर लाएगा. मंत्री अनंत कुमार मिश्रा को अपने चरित्र और कृतित्व के लिए कभी भी क़ानून के कठघरे का सामना करना पड़ सकता है. तब उनके चारों तरफ घेरा  बनाए रहने लोग वाले लोग ही सबसे पहले गायब होंगे. मंत्री जी खुद ये जानते हैं कि होता हरदम से यही आया है कि अपने कर्मों का फल भोगना खुद को ही पड़ता है. उन्होंने तो सबसे बड़ी गलती ये की है कि  कानपुर में एक बाबा प्रखर जी महराज को  बुला रखा है. वो उनके लिए आस्तीन का सांप साबित हो रहे हैं. उधर उसने यज्ञ शुरू किया इधर कानपुर में एक भ्रष्टाचारी का विकेट गिरा. अब कौन इन्हें समझाता कि खेरेश्वर मंदिर के विस्तारीकरण की चपेट में आने वाले पुजारी को न भगाओ और मंदिर के नाम पर सड़क पर कब्जा न करो. बड़े भैया सतीश चंद्र मिश्रा से सबक लो जो पनकी मंदिर के विस्तारीकरण की चपेट में आये दुकानदारों को फिर से दुकानें एलाट कराने का वादा कर गए.लोग तो वैसे भी कहते ही रहते हैं कि भैया के यहाँ डाक्टरों और दवा कंपनियों  के लोगों का जमावडा बना रहता है. मंत्री जी कहना सही भी है कि उनके यहाँ उनके विभाग के लोग तो अपनी समस्या ले कर आयेंगे ही, जो पूरी तरह से वाजिब भी है.अब उन्हें  कोई क्या समझाए विभागीय मंत्री के पास तो लोग खाली हाथ आते नहीं इस लिए ‘पत्रम – पुष्पम’ लेकर ही जाया जाता है. अब बुरा हो रिजर्व बैंक का कि उसने ‘पत्र मुद्रा’ शुरू कर दिया है तो इसमें मंत्री जी का क्या दोष ? पर ज़रा गौर कीजिये दोष है जरूर , दोष है आम कानपुर वासिओं की आशाओं पर तुषारापात करने का. आम कनपुरिया समाज नहीं जानता और जानना भी नहीं चाहता कि आप किस मर्ज की दवा हो ? वो अपनी समस्याएं लेकर आपके पास तो जाएगा ही. अब ये आपकी डाक्टरी है कि आप क्या करते हो, उसकी बीमारी ठीक करते हो या फिर  फिर मीठी गोली दे कर टरका देते हो. इसी मीठी और कड़वी गोली का शिकार हुआ वकील विनय यादव. कमला टावर क्षेत्र का रहने वाला यह वकील मंत्री जी के संघर्ष के दिनों का साक्षी था. उसे पता था कि वे किस प्रकार इसी शहर में  चुनाव हारे. और फिर कैसे अबतक का  इकलौता विधानसभा सदस्य बनने का चुनाव  फर्रुखाबाद में जीता. वे उसे अपने लगे. पुरानी मित्रता के बहाने वो मंत्री जी से आस लगाए था कि उसके अपने सपने पूरे करने का भी सुअवसर कभी न कभी अवश्य आएगा. उसे बहुत नहीं एक छोटी सी आशा थी कि मंत्री जी उसकी पत्नी उमा यादव जो की फर्रुखाबाद में एक प्राइमरी विद्यालय में शिक्षिका हैं , का स्थानान्तारण कानपुर करा देंगे. ये तो होना दूर उसकी पत्नी बेवजह जब निलंबित हो गयी,फिर भी उसने  आस नहीं छोड़ी और मंत्री के चौखटों पर अपनी नाक रगडता रहा. उसे आज-कल के फेर में फंसा दिया गया. उसने जब व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी समस्या बतायी तो उसे बुरा-भला कहते हुए मंत्रीजी ने उसके अहीर होने की अयोग्यता के कारण दुत्कार कर भगा दिया.जब उसने कहा कि उसके पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं बचा तो मंत्रीजी ने उसे ये अत्यंत जल्दी करने के लिए कहा. उसने एक बार और मौक़ा देते हुए पहले सुसाइड नोट मंत्रीजी को फैक्स किया .परन्तु कोई उत्तर न मिला. इस दुर्व्यवहार और मंत्री जी की डपट से अंतत उसकी खुद्दारी जागी और उसने अन्य कोई रास्ता न देखकर मौत को अपना लिया.

          इस अप्रत्याशित घटना का मामला राजनैतिक और सत्ता दल के अति प्रभावशाली मानलों से जुड़े होने के कारण जागे प्रशासन ने त्वरित कदम उठाये. उमा यादव को बैक डेट में 31 दिसंबर को ही फर्रुखाबाद के बी.एस.ए. के द्वारा बहाल करते हुए उनकी कानपुर स्थानांतरण की तत्काल संस्तुति कर दी गई. उधर वकीलों ने लाश को साक्षी मानकर प्रण किया कि बिना मंत्रीजी पर आपराधिक मुकदमा लिखवाये आंदोलन नहीं बंद करेंगे. अब समाजवादी पार्टी की बारी है. उस दल से विधान मंडल दल के नेता शिवपाल सिंह यादव शनिवार को कानपुर आयेंगे और शोक-संतृप्त परिवार को सांत्वना प्रदान करेंगे.

         सुसाइड नोट में वकील विनय यादव ने शिक्षा अधिकारियों और भ्रष्ट राजनैतिक व्यवस्था को कोसने सहित अपनी बेचारगी को उजागर किया है. ये पत्र उसने प्रदेश की मुखिया को फैक्स करने के बाद फांसी लगा ली. अब देखना है कि प्रदेश की मुखिया इस मामले में क्या कदम उठाती है. मेरे विभाग का मामला नहीं कह कर अपना पाला झाड रहे मंत्री जी का क्या हाल होता है ? क्या मायावती इन्हें भी वकीलों ,शिक्षक राजनेताओं,विपक्षी राजनैतिक दलों या फिर आम जनता के विरोध या आन्दोलन के बाद ही मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाएंगी ? या फिर मायावती इन्हें विधान सभा चुनाव के ठीक पहले ठीक करने का आडम्बर करते हुए ठीक करेंगी. अब ये दोनों बातें समय के गर्भ में हैं पर वकील के आत्महत्या से उसके और उसके परिवार के टूटे सपने मंत्री जी के सपने अवश्य तोड़ेंगे ऐसा लगने लगा है.

यज्ञ का असर प्रारम्भ

कनपुरिये भाई लोगों ने अब वास्तव में बाबा की महिमा को स्वीकारना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि उधर पीपे का पुल बनने के लिए इलाहाबाद से पीपे लाने का का ऐलान हुआ नहीं की मंत्री का नाम सुसाइड नोट में आ गया. औरैया का मंत्री अपनी विधायकी भी नहीं बचा पाया. कभी मायावती के खासुलखास अधिकारी जे.एन. चैंबर की बिटिया दिशा चैंबर की भी दिशा खराब जानकार बहन जी ने दशा खराब कर दी. लोगों में दबी जबान में सुरसुरी थी क्या अब अपने स्वास्थ्य मंत्री का भी स्वास्थ्य यज्ञ की ही वजह से खराब होने वाला है ? मंत्री जी के कुछ अत्यंत खास समर्थक कह रहे थे कि अगर ऐसा होता है तो अब उन्हें कानपुर आने से रोका जायेगा.

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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