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मिस्र में ‘इस्लामिक डेमोक्रेसी’ का खात्मा
मिस्र के लोगों ने आखिरकार ‘इस्लामिक डेमोक्रेटिक मॉडल’ को खारिज कर दिया है। एक वर्ष पहले सत्ता में आने के बाद से अपदस्थ राष्टÑपति मोहम्मद मुर्सी मिस्र को लगातार इस्लाम के रास्ते पर हांकने की कोशिश कर रहे थे। एक बड़ा तबका मुर्सी की इस्लामपरस्त नीतियों की मुखालफत कर रहा था। मुर्सी मुस्लिम ब्रदरहुड के सॉफ्ट चेहरा थे, जो मिस्र में धीरे-धीरे इस्लामिक कानूनों को लागू करने की दिशा में अग्रसर थे। मिस्र की उदारवादी और तरक्की पसंद ताकतें यह कतई नहीं चाह रही थीं कि मिस्र को इस्लाम की राह पर धकेला जाये। यही वजह है कि मुर्सी के खिलाफ मिस्र में विरोध प्रदर्शनों का तांता लगा हुआ था। लोगों की मानसिकता और हिंसा की संभावना को देखते हुए अब फौज मिस्र में अहम किरदार निभा रही है। फौज लोगों की हिमायत में आ खड़ी हुई है। फौज ने राष्टÑपति मुर्सी को अपदस्थ करके मुख्य न्यायाधीश अदली मंसूर को दोबारा राष्ट्रपति और संसद के चुनाव होने तक अंतरिम सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके साथ ही दुनियाभर में यह बहस तेजी हो गई है कि ‘इस्लामिक डेमोक्रेसी’ दुनिया के मुख्तलफ मुल्कों में सफल क्यों नहींं हो पा रही है? सीरिया में भी इसी तरह का संघर्ष चल रहा है। सीरिया के राष्टÑपति बसर अल असद भी वहां पर इस्लामी कानूनों को लागू करने पर तुले हुये हैं, जिसकी वजह से वहां हिंसक संघर्ष का दौर जारी है। मिस्र में भी सूरत कमोबेश सीरिया जैसी ही हो गई है।
हिंसक दौर की दहलीज पर मिस्र
अब मिस्र भी हिंसक दौर की दहलीज पर आ खड़ा हुआ है। मिस्र के हर प्रमुख शहर के चौक- चौराहों पर मुर्सी समर्थक और विरोधी आमने-सामने हैं। मुख्तलफ शहरों में हुये हिंसक संघर्ष में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और घायलों की संख्या हजारों में है। सेना हिंसा पर काबू पाने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन मुस्लिम ब्रदर हुड के कार्यकर्ता और मुर्सी समर्थक इस बात पर अड़े हुये हैं कि मुर्सी की चुनी हुई सरकार को फिर से बहाल किया जाये। अपनी नजरबंदी के पहले फेसबुक पर जारी एक बयान में मुर्सी ने तख्तापलट की कड़ी आलोचना करते हुये लोगों से अपील की थी कि संविधान और कानून को मानें और किसी भी कीमत पर तख्तापलट का साथ न दें। तख्तापलट के बाद मुर्सी विरोधियों ने जमकर जश्न मनाया था। लेकिन अब जिस तरह से मुर्सी के समर्थक सड़कों पर उतर कर उनके साथ दो-दो हाथ कर रहे हैं, उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि सेना के सक्रिय हस्तक्षेप के बावजूद मिस्र में अभी शांति कोसों दूर है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि हिंसा का यह दौर लंबा खिंच सकता है क्योंकि मुस्लिम ब्रदरहुड की छत्रछाया में मुर्सी समर्थक आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। वैसे एहतियात के तौर पर मुस्लिम ब्रदरहुड के करीब तीन सौ नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है। उनके अखबार और मीडिया पर भी सेना ने प्रतिबंध लगा दिया है। फिर भी मिस्र में हिंसा जारी है।
इस्लामिक ब्रदरहुड का संक्षिप्त इतिहास
सोसाइटी आॅफ इस्लामिक ब्रदरहुड की स्थापना मिस्र में 1928 में हसन अल बाना द्वारा की गई थी। इसे अरब जगत का सबसे बड़ा इस्लामिक आंदोलन माना जाता है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक शक्ति हासिल करते हुये समाज का निर्माण इस्लामिक मूल्यों पर करने का था। दूसरी आलमी जंग के अंत तक इस संगठन के सदस्यों की संख्या दो मिलियन के करीब थी। अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए इस्लामिक ब्रदरहुड हिंसा का भी सहारा लेती रही है। इस संगठन पर मिस्र के प्रधानमंत्री मोहम्मद अन-नुकराशी पाशा की हत्या करने का भी आरोप है। दूसरी आलमी जंग के पहले इसका मुख्य उद्देश्य मिस्र में ब्रितानिया हुकूमत की मुखालफत करना था। मिस्र में इस संगठन पर कई बार प्रतिबंध भी लग चुका है। प्रथम अरब-इजरायल जंग के बाद मिस्र की सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। 1952 में इसने मिस्र क्रांति का समर्थन किया था लेकिन बाद में मिस्र के राष्टÑपति की हत्या के प्रयास के बाद एक बार फिर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। दूसरे मुल्कों में हिंसक गतिविधियों में संलग्न रहने की वजह से मुस्लिम ब्रदरहुड को बार-बार प्रतिबंधित किया गया है। 2012 में मिस्र में चुनाव के बाद मुर्सी के नेतृत्व में मुस्लिम ब्रदरहुड इस्लामिक एजेंडे को ही आग बढ़ा रहा था।
इस्लामिक संगठनों के लिए सबक
जिस तरह से मिस्र की सत्ता से मुर्सी और मुस्लिम ब्रदरहुड को बेदखल किया गया है, उससे मिस्र समेत दूसरे मुल्कों के इस्लामिक संगठनों में रोष है। अन्य मुल्कों में डेमोक्रेसी की हत्या पर आसमान सिर पर उठाने वाले अमेरिका समेत तमाम मगरबी मुल्कों की मुर्सी के तख्तापलट पर चुप्पी इस्लामिक संगठनों को रास नहीं आ नहीं आ रही है। इस्लामिक संगठनों के नुमाइंदों का कहना है कि मिस्र में एक चुनी हुई सरकार के तख्तापटल के बाद दुनिया के मुख्तलफ मुल्कों में हथियारबंद इस्लामिक संगठन अब कम से कम डेमोक्रेसी के नाम पर अपना हथियार डालने से रहे। डेमोक्रेसी पर से इनका विश्वास पूरी तरह से उठ चुका है। इसके पहले कई इस्लामिक संगठन जोर देकर कहा करते थे कि चुनाव के जरिये भी शरीयत कानूनों को किसी मुल्क में लागू किया जा सकता है। लेकिन अब मुस्लिम संगठन साफ तौर कहने लगे हैं कि मिस्र में मुर्सी हुकूमत के साथ जो कुछ भी हुआ है, उसे देखते हुये यह सबक हासिल करने की जरूरत है कि चुनाव के जरिये शरीयत कानूनों को लागू नहीं किया जा सकता है। बेंगाजी से लेकर अबूधाबी तक तमाम इस्लामिक संगठन मुर्सी के तख्तापलट की व्याख्या इसी तर्ज पर कर रहे हैं। ऐसे में यह आशंका बढ़ गई है कि आने वाले दिनों में मुखतलफ मुल्कों में शरीयत कानून को लागू करने की मंशा रखने वाले हिंसक अतिवादी इस्लामिक संगठन डेमोक्रेटिक पद्धति को पूरी तरह से नकारते हुये अपना संघर्ष और तेज करेंगे। तुर्की, ट्यूनिशिया और मिस्र में डेमोक्रेटिक तरीके से चुनी गई इस्लाम परस्त सराकरों का जो हाल हुआ है, उससे तमाम कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों का यकीन डेमोक्रेसी पर से उठ गया है। सिनाई में हजारों मुर्सी समर्थकों ने मुर्सी के समर्थन में जेहाद का नारा बुलंद करते हुये एक वार काउंसिल गठित करने की मांग कर रहे थे। प्रदर्शनकारी नारा लगा रहे थे कि अब शांति का युग समाप्त हो चुका है। काहिरा विश्वविद्यालय में भी प्रदर्शन के दौरान तमाम वक्ता जोर देकर कह रहे थे कि अल्लाह के कानून से मुंह मोड़ने का नतीजा यही होता है। अब हमें डेमोक्रेसी में यकीन नहीं रहा। यह हमारे सिद्धांतों का हिस्सा नहीं रहा है। इसके बावजूद हमने इसका अनुकरण किया लेकिन हमें मिला क्या-तख्ता पलट।
सेना की भूमिका
ब्रदरहुड के नुमाइंदे मिस्र में सेना और ब्यूरोक्रेसी की भूमिका को लेकर खासे नाराज हैं। इनका मानना है कि मुर्सी की सरकार को अपदस्थ करके सेना ने डेमोक्रेसी की हत्या की है। इस साजिश में मगरबी मुल्क के सियासतदान भी शामिल हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड काफी मेहनत के बाद मिस्र में सत्ता पर काबिज होने में सफल हुई थी। सत्ता तक पहुंचने के लिए उसने पूरी तरह से डेमोक्रेटिक तौरतरीका अख्यितार किया था। ऐसे में सेना को हक नहीं है कि वह किसी चुनी हुई सरकार का तख्तापलट दे। सेना की इस हरकत से मुसलमानों के बीच यह स्पष्ट संदेश गया है कि डेमोक्रेसी उनके लिए नहीं है। मुर्सी के विदेश मामलों के सलाहकार एसाम अल हदाद ने तख्तापलट के तुरंत बाद अपने आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा था कि मिस्र में सेना द्वारा चुनी हुई सरकार का तख्तापलट से आतंकी संगठनों और बल मिलेगा। सेना के अधिकारी मगरबी मुल्कों से मिले हुये हैं? इस तख्तापलट पर मगरबी मुल्कों की चुप्पी से इस बात की तस्दीक होती है। सेना पहले से ही ताक में थी। लोगों के प्रदर्शन के बाद उसे मौका मिल गया। सेना के खिलाफ रोष जताते हुये मुर्सी ने भी अपने आधिकारिक वेबसाइट पर कहा था कि वह मिस्र के चुने हुये राष्टÑपति हैं और सेना क्रांति की चोरी कर रही है।
जश्न का माहौल
मिस्र में हिंसा और प्रतिहिंसा के बीच बड़ी संख्या में लोग जीत का जश्न मना रहे हैं और क्रांति के गीत गा रहे हैं। अलबरदेई को प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने के बाद इनकी खुशी दोगुनी हो गई है। उन्हें इस बात का फख्र है कि उनका संघर्ष आखिरकार रंग लाया और अब मिस्र शरीयत के रास्ते पर नहीं बढ़ेगा। हालांकि उन्हें इस बात इल्म है कि अभी मंजिल उनसे कोसों दूर है। जिस तरह से मुस्लिम ब्रदरहुड और मुर्सी के समर्थक कमर कसे हुये हैं, उससे मिस्र को असल डेमोक्रेसी हासिल करने के लिए खून का दरिया भी पार करना पड़ सकता है। फिलहाल जीत की खुशी मनाकर वे खुद को जेहनी तौर पर इस संघर्ष के लिए तैयार कर रहे हैं। चूंकि इस क्रांति की अगुवाई करने वाले अधिकांश नुमाइंदे मगरीब मुल्कों से पढ़ कर निकले हैं, इसलिए उन मुल्कों से भी उन्हें बधाइयां मिल रही हैं।