रहबर लूटें कारवाँ, ढूँढ़े कौन उपाय!
संपादक, बाबूजी का भारतमित्र (साहित्यिक पत्रिका)
राजा जी लाचार हैं, जनता गूँगी गाय।
रहबर लूटें कारवाँ, ढूँढ़े कौन उपाय।।
होड़ मची है लूट की, ज्यादा लूटे कौन।
देश बना है द्रौपदी, हुए पितामह मौन।।
राजनीति में हो गई, चोरों की भरमार।
जनता को ही लूटते, जनता के सरदार।।
कुछ मंदिर के पक्ष में, कुछ मस्जिद के पक्ष।
दिखता किसको है यहाँ, माँ का घायल वक्ष।।
रिश्तों में जब-जब पड़ी, नफरत भरी दरार।
आँगन में तब-तब उगी, एक नई दीवार।।
धर्म कमाने चल दिए, झण्डा ले श्रीमान्।
भूख-प्यास से बाप के, तन से निकले प्राण।।
नारी पर होने लगे, पग-पग अत्याचार।
‘सेफ नहीं अब कोख में, दुर्गा की अवतार।।
बाधाओं पर मिल गई, बेशक तुमको जीत।
अभी मंजिलें शेष हैं, ठहर न जाना मीत।।
रखती है बेटी सदा, मात-पिता का ख्याल।
फिर भी कहते आप क्यंू, बेटे को ही लाल।।
भू से नभ तक कर रही, बेटी आज कमाल।
फिर भी उसके जन्म पर, करते लोग मलाल।।
अमरित पीकर भी लगे, धनवानों को रोग।
विष पीकर जिंदा रहे, सीधे सच्चे लोग।।
तब तक मैं बेख़ौफ़ था, थे जब तक तुम साथ।
तात आपकी मौत ने, मुझको किया अनाथ।।
बेशक मैं हर दिन मरा, जिन्दा रहे उसूल।
जीना बिना उसूल के, मुझको लगे फिज़ूल।।
जीवन भर जिसने किया, अंतहीन संघर्ष।
मिला उसी को एक दिन, जीवन का उत्कर्ष।।
साँपनाथ इस ओर हैं, नागनाथ उस ओर।
वोटर की उलझन यही, वह जाये किस ओर।।
जनता के दुख-दर्द का, जिसे नहीं अहसास।
कैसे उस सरकार पर, लोग करें विश्वास।।
बेटों से मैं कम नहीं, अजमाना सौ बार।
पहले मुझको दीजिए, जीने का अधिकार।।
कहीं उगे हैं कैक्टस, काँटे कहीं बबूल।
दौर गिरावट का चला, मरने लगे उसूल।।
लोकतंत्र दिखला रहा, नये निराले खेल।
राजतिलक अपराध का, सज्जनता को जेल।।
गंदा कह मत छोडि़ए, राजनीति को मीत।
बिना लड़े होती नहीं, अच्छाई की जीत।।
लगे आप जो भागने, कौन लड़ेगा यार।
सज्जन जब होंगे खड़े, तब होगा उद्दार।।
बहुत दिनों तक जी लिए, शीश झुकाकर यार।
अब तो सच का साथ दो, बन जाओ खुद्दार।।
पेट पीठ से सट गया, हलक गया है सूख।
राशन मुखिया खा गया, मिटती कैसे भूख।।
होती हैं जिस देश में, नौकरियाँ नीलाम।
रिश्वत बिन कैसे वहाँ, होगा कोई काम।।
आनी-जानी चीज है, सत्ता तो श्रीमान।
चोटी चढ़ते ही सदा, आती नयी ढलान।।
लोकतंत्र में लोक ही, होता है सिरमौर।
लेकिन अपने देश में, नहीं लोक को ठौर।।
रघुविन्द्र जी !
आपके जाग्रत मन और राष्ट्रहित चिंतन को मेरा साधुवाद ,
आपका आह्वान सफल होगा , देश मे स्वच्छ वातावरण का निर्माण अवश्य होगा , अगली पीढ़ी में नैतिकता पर टीके लोगों की बहुतायत होगी और देश गरिमायुक्त होगा .
लगे आप जो भागने, कौन लड़ेगा यार।
सज्जन जब होंगे खड़े, तब होगा उद्दार।।
जय माँ भारती ,
धर्म -राजनीती से अलग बेबाक लेखन !आधुनिक कबीर !!