राजेश खन्ना : जिन्दगी … कैसी ये पहेली हाय…!
1960 और 1970 के दशक में परदे पर रोमांस को एक नई पहचान देने वाले राजेश खन्ना ने अपनी आखिरी सांस अपने बंगले आशिर्वाद में ली। यह वही बंगला था जहां राजेश खन्ना ने अपने सपनों का महल खड़ा किया था और उन्हें एक एक कर बिखरते भी देखा। हिंदी सिनेमा में स्टार डम को एक नयी पहचान दिलाने और सुपरस्टार का रुतबा हासिल करने वाले रुपहले पर्दे के पहले कलाकार होने का श्रेय राजेश खन्ना को ही हासिल हुआ है। यहीं से सुपरस्टार और फिल्मों में रोमांस का एक अनूठा प्रयोग दिखा। ऐसा नहीं कि इससे पहले हिन्दी फिल्में प्यार या रोमांस जैसे शब्दों से अनभिज्ञ थी, पर जो दौर राजेश खन्ना को नसीब हुआ आज भी किसी सुपर स्टार के लिये एक स्वप्न की तरह है। हालांकि उस दौर में फिल्मों में नये कलाकारों का आना ही मुश्किल था और छा जाना तो लगभग नामुमकिन। तब हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार , देवानंद , मनोज कुमार और राजकपूर जैसी हस्तियों का बर्चस्व था जिसे चैलेंज करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। पर राजेश खन्ना का ऐसा जादू चला कि सभी उस आंधी में हवा हो गये।
राजेश खन्ना को लोग प्यार से ‘काका’ कह कर पुकारते थे। ऐसा कहा जाता था कि उस दौर में जब राजेश खन्ना का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा था तब एक जुमला बन गया था कि ऊपर आका और नीचे काका..। आज वही काका अपने उस सपनों के महल में चिरनिद्रा में सो गये ।
आज के समय की तरह एक टैलेंट हंट प्रतियोगिता की खोज थे राजेश खन्ना। साथ आये कई प्रतियोगियों को पछाड़ कर विजेता बनने वाले और अपना फिल्मी सफर शुरू करने वाले राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में हुआ था और उनका असली नाम जतिन खन्ना था। माया नगरी के एक नये सफर पर चल कर करोड़ों दिलों पर राज किया इस स्टार ने और इस नये सफर में उन्हें एक नया नाम मिला राजेश खन्ना।
शुरुआती दौर की ‘आखिरी खत’, ‘बहारों के सपने’ और ‘राज’ जैसी कुछ फिल्में बॉक्स औफिस पर कोई पहचान नहीं बना सकीं, पर राजेश खन्ना को लोगों ने काफी पसंद किया। फिर जब 1969 में ‘अराधना’ फिल्म रिलीज हुयी तो उस फिल्म की कामयबी ने उन्हें रातों रात स्टार बना दिया। उस फिल्म के एक गाने, मेरी सपनों की रानी कब आयेगी तू.. ने तो फिल्म से भी ज्यादा कामयाबी हासिल की। कहते है उस दौर में हर युवा इसी गाने के साथ सपनों में जीता था कि उसकी सपनों की रानी कब आयेगी ! कटी पतंग, अमर प्रेम, अपना देश, आपकी कसम, नकम हराम , अगर तुम न होते, प्रेम नगर, आनंद’ हम दोनों, अवतार, जैसी सुपर हिट फिल्में आज भी लोग उतने ही चाव से देखते हैं। शर्मिला टैगोर, आशा पारेख और जीनत अमान जैसी नामचीन अभिनेत्रियों के साथ राजेश खन्ना की जोड़ी काफी सराही गयी पर उन्हें सर्वाधिक पसंद किया गया मुमताज के साथ। लगभग आठ फिल्मों में यह जोड़ी दोहरायी गयी और हर बार इस जोड़ी को लोगों ने काफी पसंद किया। मुमताज के साथ गाये गाने लोगों की जुबान पर चढ़ जाते थे। लागातार पंद्रह हिट के साथ राजेश खन्ना सुपर स्टार कहलाने लगे । आज भी इस सुपर स्टार का यह रिकॉर्ड कायम है।
पर जिस तरह समय चक्र घूमता है और कल किसी और का था , फिर आने वाला कल किसी और का होगा कि तर्ज पर राजेश खन्ना का करियर भी अपनी ढालान पर आ रहा था । आनंद फिल्म में जब राजेश खन्ना के साथ अमिताभ बच्चन को लोगों ने देखा तो उनकी नजर में वह कलाकार भी आ गया और यही से राजेश खन्ना की फिल्में कमजोर पड़ने लगी। लोगों ने एक नये कलाकार को बॉक्स ऑफिस का दूसरा सुपर स्टार बनाया, जो आज तक नायक नहीं महानायक बना हुआ है। पर इतना तय है कि जो शौहरत लोगों ने राजेश खन्ना के नाम किये उसके बाद हर कोई इंडस्ट्री में दूसरा बन कर ही रह गया। भले अमिताभ बच्चन ने फिल्मों को एक नयी दिशा दी जिसमें प्यार के साथ हिंसा को भी आजमाया गया पर राजेश खन्ना के प्यार का लोहा बड़े बड़े कलाकार आज भी मानते हैं। प्यार का दूसरा नाम कोई है तो वह है राजेश खन्ना। आज भी उनके डायलॉग बोलने के उस अनोखे अंदाज को लोग नहीं भूल पाते जिसमें उनका आंखे झपकाकर और गर्दन टेढ़ी कर प्यार का इजहार होता था। हर बडे स्टार की तरह उन्हें भी प्यार से लेकर उनकी शादी तक को ढ़ेरो कहानियों का सामना करना पड़ा । कभी अंजु महेन्दू तो कभी टीना मुनीम तक के साथ उनका नाम जुड़ा। फिर राजेश खन्ना ने मार्च 1973 में डिंपल कपाड़िया से शादी की जिसने अंजू महेंद्रू को तोड़कर रख दिया। ऐसा कहा जाता है कि अंजू के साथ राजेश खन्ना के रिश्ते करीब सात सालों तक रहे पर स्टारडम के नशे में चूर राजेश खन्ना को अंजू का कोई भी समर्पण याद नहीं रहा और उन्होंने एक नयी तारिका जिसकी कोई भी फिल्म अभी रिलीज नहीं हुयी थी से शादी रचाकर अपने साथ जुड़े हर विवाद को विराम देना चाहा । पर नियति को कुछ और ही मंजूर था और अंजू की आह थी शायद कि दो दो बेटियों के पिता बनने पर भी राजेश खन्ना का दाम्पत्य जीवन सफल नहीं हो सका ।
पर्दे पर एक सफल कलाकार का वास्तविक जीवन काफी उलझनों से भरा रहा । राजेश खन्ना ने राजनीति में भी अपने हाथ आजमाये। 1991 में कांग्रेस के टिकट पर नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी चुने गये। लेकिन जल्दी ही फिल्में जो इनकी जिन्दगी थी ने उन्हें अपनी तरफ खींचा और वे एक बार फिर से फिल्मों की ओर गये, पर धीरे धीरे वे गुमनामी के अंधेरों में घिरते चले गये। अपनों से दूर होना ही उन्हें सालता रहा और यहीं से उनकी जिन्दगी का दूसरा दौर शुरू हुआ जहां वह पूरी तरह अकेले हो गये। फिर जब एक बीमार और कमजोर राजेश खन्ना, पंखों के एक विज्ञापन में दिखाई दिए तो सभी आहत हो गये तथा इस बीमार राजेश खन्ना में उस खूबसूरत से आनंद को ढूढंते रहे।
जिंदगी कैसी ये पहेली…हाय…के तर्ज पर इन्होंने भी अपनी जिन्दगी को काफी उलझा लिया था । उनके साथी कलाकार के साथ उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनकी जिन्दगी को रहस्यमय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिरी समय में जब वे एक दम बीमारी की हालत में अपने बंगले में सिमट गये तो उनके परिवारिक सदस्यों जिनमें उनकी पत्नी डिंपल जिनसे उनका सिर्फ अलगाव हुआ था तलाक नहीं, और बेटी ट्विंकल एवं रिकी खन्ना तथा आज के सफल कलाकार और ट्विंकल के पति अक्षय कुमार ने उन्हें अस्पताल में भर्ती तो करवाया पर एक रहस्य बनाकर कि उन्हें क्या हुआ है । किसी ने भी कभी कोई जानकारी नहीं दी उनके संदर्भ में। हर कोई बस उन्हें ठीक बताता रहा। उनकी मौत और बीमारी आम लोगों के लिये आखिरी समय तक रहस्य ही बन कर रह गयी। अक्षय कुमार की एक घोषणा के बाद कि उनके ससुर अब इस दुनिया में नहीं रहे के साथ हर अटकलों पर विराम लग गया। पर इतना तय है कि उनके ‘फैंस’ हमेशा उनके साथ रहेंगे और उन्हें उनसे कोई नहीं छिन सकता।
राजेश खन्ना जी के फिल्मी और निजी जिंदंगी पर एक बेबाक निष्पक्ष विवेचन संग्रहणीय है।