राबिनहुड वाले स्टाईल में पार्टी कार्यालय पहुंच रहे हैं नेता लोग
बिहार मे चुनावी शंखनाद बज चुका है और अब हमारे नेतागण को एक बार फिर से जनता की अदालत में पेश होना है । उसी जनता की अदालत में जो उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर लोकतंत्र के अखाड़े में भेजता है । जी हां…पिछ्ले समय में जो कुछ भी घटनाएं देखने को आयी है, उन्हीं को आधार मान कर आज आप संसद या विधानमंडल को लोकतंत्र का अखाड़ा भी कह सकते है । संसदीय गरिमा को ताक पर रखकर जो उठा पटक आज के दौर में हमे नेताओं के द्वारा देखने को मिलता है, वो भली-भांति भारतीय राजनीति की शक्लो-सूरत को बयां कर देता है ।
बिहार में चुनाव के मद्देनजर आचार-संहिता लागू कर दी गई है और इसी के साथ शुरू हो गया टिकट पाने का विकट खेल । 25 वर्ष के बालक से लेकर 60 वर्ष तक के नौजवान सभी भिड़ गये हैं उस जद्दोजहद में जहां उनका एकमेव उद्देश्य है अपनी पसंदीदा पार्टी के तरफ से चुनाव का टिकट प्राप्त करना। आखिर ये जद्दोजहद हो भी क्यों न…इसी टिकट पर तो भविष्य की कई योजनायें निर्धारित है । मसलन अगर टिकट मिल गया, तो फिर साम, दाम, दंड और भेद की नीति का अक्षरश:पालन करके, किसी भी तरह से चुनाव जीतने का प्रयास करना है…और अगर सब कुछ ठीक रहा और चुनाव जीत लिये तो फिर अगले पांच साल में कम से कम इस जन्म की तो उचित व्यवस्था कर ही लेनी है ।
आज राजनीति अपने हालत और हालात दोनों पर हतप्रभ है। बात बिहार की करे तो ये वो प्रदेश है जहां डा0 राजेन्द्र प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह तथा और भी कई विभूषित हस्तियों ने राजनीति को एक विशेष सम्मान दिलवाया है, पर आज के माहौल अलग हो चले हैं। आज राजनीति को सम्मान दिलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है, राजनीति के द्वारा सम्मान प्राप्त करना। आज अगर चुनाव जीत गये तो सम्मान मिलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, अगर विधायक बन लिये तो अति सम्मान के पात्र हो जाते है, साथ ही अगर किस्मत अच्छी रही और मंत्री बन गये तो अति विशिष्ट सम्मान तो आपके कदम चूमती नजर आती है । भले ही उसके बाद आप हजारों करोड़ के घोटाले करते रहे, आपके सामाजिक अति विशिष्ट सम्मान में कोई अंतर नहीं आने वाली है ।
कभी नेता प्रगति का ध्वज-वाहक माना जाता था । पर आज संख्या में कुछ गिने चुने ही नेता रह गये है, जो वास्तव मे प्रगति के लिये संघर्ष करते रहते है । गौरव, स्वाभिमान और सम्मान को ताक पर रख नेता बनने की भूख आज के दौर ज्यादा बलवती हो गयी है । आज की राजनीति में स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही इस कदर हावी है कि इसके आगे जाकर सोचने की चेष्टा कम से कम आज के ज्यादातर राजनीतिज्ञ तो बिलकुल भी नहीं करना चाहते । आज की राजनीति में शिष्टता और नम्रता का घोर अभाव देखा जा सकता है । आखिर ये सब कमियां अगर राजनीति मे देखी जा रही है तो क्यूं ? क्या लोकतंत्र का प्रभाव इतना कमजोर है कि उसे आज कोई भी अंगूठा दिखा कर चला जा रहा है ।
चुनावी मौसम में बिहार राज्य के कई इलाकों से लोगों का हुजूम लिये राबिनहुड प्रकार के महानुभाव अपने पार्टी कार्यालय पहुंच रहे है, ताकि एक अदद टिकट उन्हे भी मिल सके। बायो-डाटा हाथ में लिये पार्टी प्रमुख के कार्यालय मे भीड़ बढ़ाते ये हातिमताई बडे़-बडे़ दावों की फाईलें लिये अपने आप को सबसे सुयोग्य उम्मीदवार बताने में कोई भी कसर नही छोडते है । पुष्प की अभिलाषा की तरह इनकी भी अपनी अभिलाषाएं है। ये बिहार के विकाश में अपनी तरफ से भी कुछ योगदान देने को व्याकुल भी हैं औए आतुर भी । ये अपने बायोडाटा मे पार्टी से जुड़े बड़े कद्दावर नामों की चित्र भी लगवाये रहते हैं, ताकि चमचागीरी में कहीं से कोई भी कमी शेष न रह जाये । इनमें नर भी है और नारियां भी..वो कहते है न कि नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है। तो आत्मा के ये दोनो स्वरूप अपने अपने तौर से अपने परमात्मा को प्रसन्न करने में लगे हुए है ।
अब ध्यान से टिकट बांटना और सही मायने मे सुयोग्य उम्मीदवार का चयन तो इन परमात्माओं के हाथ में ही है । बिहार को स्वर्ग बनाना है या फिर नरक इसका चयन तो सभी बड़ी पार्टियों के परमात्माओं को ही करना है । दृष्टिकोण सबसे बड़ी भूमिका निभाती है किसी भी कार्य री , क्यूंकि इसी दृष्टिकोण से स्वर्ग भी बनता है और नरक भी । आत्म-निरीक्षण करके अपनी जनता की भलाई को सर्वोपरि रखते हुए अगर सभी बड़ी पार्टी के नेता सुयोग्य उम्मीदवार का चयन करने की बुद्धिमता दिखाते है, तो शायद आने वाले दिनो में कुछ सार्थकता राजनीति में भी दिखे । स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है । अत: सभी पार्टियों के बड़े नेताओं से यह विनम्र निवेदन है कि अगर हो सके तो आत्म कल्याण का प्रयास चुनाव के शुरूआती दौर से ही कर दें । ताकि ये पूरा चुनावी समर एक सही राष्ट्र – निर्माण की दिशा मे आगे बढ़ सके ।
Gracias por compartir su maestría en esta área. Hay mucho Info inútil en esto que flota alrededor y aprecio su trabajo duro.