अंदाजे बयां

वह आज भी जागता है. . . !

……………………………………..उस जुलाहे के शब्द अब भी समय को कात रहे हैं। उसकी आवाज़ में न जाने कितने  दिमागों को रोशन किया। वह ज्ञानी नहीं था,  शास्त्र नहीं पढ़े थे, लेकिन उससे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं हुआ। वह अलमस्त फकीर था – पर उससे बड़ा प्रेमी भी कोई  ना हुआ। भारत के मध्यकाल में सोये समाज को नींद से जगाती उसकी आवाज़ इस धरती  के दुःख से जन्मी थी …..
कबीर -एक छोटा – सा नाम कुछ सौ साल पहले जन्में  एक मामूली से आदमी का नाम। पर यह छोटा -सा शब्द भारत की आत्मा का दर्पण है। भारत की उस बैचेन छटपटाती आत्मा का दर्णण, जो रुढियों – कर्मकांडों से मुक्त  होकर नई मानवता की रचना करना चाहती , जो जाति-वर्ण की दिवारेगिराक्र एक  नये रूप में खुद को गढना चाहती है।
इसलिए कबीर न मात्र कवि है, न मात्र समाज- सुधारक ……वे एक देश और संस्कृति के भविष्य का सपना और बन्धनों से  मुक्ति की उसकी उड़ान और आकाक्षा है …..उनकी जीवन – गाथा दरअसल बन्धनमुक्त  मानवता की स्वप्न -गाथा है ….

…………………………..कबीर

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button