विकास में बाधा की गवाही देते पत्थरों के मूक भगवान
अनिता गौतम, पटना
यूं तो प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास है परन्तु उनके रूप को देखा जा सकता है पत्थरों में। पक्षियों के अंडे की तरह ये पत्थर सड़क, गली, नुक्कड़, चौक-चौराहे कहीं पर भी रातो रात स्थापित हो जाते हैं। इन बेजान पत्थरों में जान आ जाती हैं जब इन पर जल, फूल-पत्तियां (बेल पत्र) और सिंदूर की बारिश शुरु होती है। अपनी विकास यात्रा में इनका रुप बदलता जाता है जब इनके उपर अर्थ चढ़ावा शुरु हो जाता है। किसी विकसित राष्ट्र की तरह इनकी ताकत भी बनती है इनका पैसा। जैसा स्थान अथवा जितने ताकतवर भगवान, उसी अनुपात में चढ़ावा। शक्ति परीक्षण में सबसे आगे खड़े होते हैं बजरंग बली। चूंकि उनके पुजारी सर्वाधिक होते हैं तथा बाल ब्रह्मचारी होने की वजह से उनका अपना खर्चा काफी कम है, मसलन उनके लिए कोई चुनरी नहीं चाहिये, सिर्फ एक लंगोट काफी है, भारी भरकम जेवरों की भी कोई आवश्यकता नहीं, हाथों में सिर्फ एक गदा काफी है, कोई सुदर्शन चक्र, शंख अथवा सहयोगी देवी-देवताओं की भी आवश्यकता नहीं, वे अकेले ही काफी हैं।
जब खर्च कम हो तो चढ़ावे के पैसों से चबूतरे एवं गर्भ गृह का निर्माण अत्यंत तेजी से होता है। काफी कम समय में अपना पैर जमा लेते हैं ये भगवान के घर अर्थात मंदिर। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अवैध कब्जे का एक सशक्त माध्यम है मंदिर निर्माण। किसी की जमीन हड़पनी हो, गैर-मजरुआ जमीन पर अपना उठना-बैठना करना हो अथवा सड़कों के कोने या चौराहों पर अपने लिए जगह तलाशनी हो, तो एक पत्थर रखिये सिंदूर, टीका, रोली, अक्षत और चढ़ावा तो आम जन चढ़ा जाएंगे। यकीन मानिये इस काम में प्रशासनिक दखल भी शायद एक-आध फीसदी ही भुगतनी पड़े, क्योंकि पुलिस प्रशासन आपकी सर्वाधिक प्रिय गाड़ी को तो नो पार्किंग जोन से उठाकर थाने ला सकती है, परन्तु किसी भी अधिकारी का पहला हाथ उस पत्थर तक नहीं पहुंचेगा। उसे वहां से हटाने, हिलाने, उखाड़ने एवं फेंकने की बात तो दूर वे भक्तों को वहां जाने से रोकने में भी असमर्थ दिखेंगे।
बात उनके स्थापना की नहीं, बल्कि उनसे जुड़ी समस्याओं की है। कभी-कभी ये मंदिर ऐसी जगहों पर स्थापित हो जाते हैं जहां नशेड़ियों और जुआरियों का अड्डा बन जाता है। सर्वाधिक परेशानी खड़ी करते हैं बीच सड़क पर स्थापित मंदिर। ये मंदिर सदैव दुर्घटनाओं को आमंत्रण देते रहते हैं। हैरानी तब होती है जब मंदिर स्थापना का स्थान चयन करने की आपाधापी में ये संस्थापक राजमार्गों को भी नहीं छोड़ते। कच्चे चिन्हित राजमार्ग जब अपनी दीर्घकालीन योजनाओं में निर्माण के दौर से गुजरते हैं तो ये मंदिर उनके विकास में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरते हैं। उन्हें वहां से हटाने में न्यायालय का सहारा लिया जाता है। परन्तु उस आदेश पर भी भारी पड़ता है ईश्वर के भक्तों का विरोध। बहुत आवश्यक सड़कों को आड़ा-तीरछा कर भी दिया जाता है, परन्तु अधिकतर सड़के निर्माण का बाट जोहती मानव मूल्यों से खिलवाड़ करती दिखती हैं।
रिहायशी इलाका हो अथवा सुदूर देहाती क्षेत्र, इन पत्थरों के भगवान को मूक गवाह बनाया जा सकता है विकास में बाधा का, सड़क निर्माण की गति को प्रभावित करने का एवं आम जन को उनकी मूलभूत जरूरतों से वंचित रखने का।
That is fact .
bahut hi gambhir vishaye par rochak lekh
मेरा इया विषय में स्पस्ट मानना है सार्वजानिक जगह से मंदिर ही नहीं कोई भी धर्म स्थल को हटाया जाये और विरोध करने वाले के घर में स्थापित किया जाये !फिर दखने के ये काबिल होगा की कौन -कौन लोग अपनी मर्जी से भगवान को घर में बिठाते हैं !
अनीता जी आपको बहुत -२ धन्यवाद जो आपने विकाश में आ रहे मूल बाधा का सही-२ चित्रण किया !!
aajkal tum jaise patrkaro ki bahut jarurat hai……jo bebaki aur bina kisi dar ke aise muddo par likh saken….mera bhi kuchh aisa hi prayas hai…Nishant Times…….kaya kuch send kar sakti ho…aabbhari hunga……tumaahre mudde..aur kalam dono hi kabile tarif hain….keep it up…….
Apne bilkul sahi farmaya Anita jee magar abhi haal hi mein Sai Mandir ko mananiya uchch nyayalaya, Patna ke aadesh par Boring Road Crossing se prashaasan dwara hataya gaya aur main isska samarthak hoon. Najayaj kabja ko to mukta avilamb karaya jana chaahiye.
Shukriya aapne ek bade mahatwapoorna mudde ko itne achchhe tareeke se uthaaya hai.
अनीता जी, इस सच को उजागर करने के लिए आभार1 दिक्कत यही है कि जिन तक ये आवाज पहुंचनी चाहिये वे हमारी पहुंच से परे हैं। जान कर अनजान हैं और सुनी अनसुनी करना उनके लिए आसान है। आपने बात सामने रखी, बधाई।