रूट लेवल

व्यवसायिक हितों के लिए आम आदमी को दाव पर लगा रहा है मीडिया

पिछले दिनों पाक जेल में हुई भारतीय कैदी सरबजीत की मौत से पूरा देश गुस्से से लाल दिखा। हर तरफ पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे। लोग भारत सरकार से ये मांग कर रहे थे कि वो पकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाये। लेकिन क्या वास्तव में सरबजीत की मौत के लिए पूरी तरीके से पाक सरकार जिम्मेदार है?


सरसरी निगाहं से अगर हम देखे तो ये कहा जा सकता है कि सरबजीत की मौत के लिए पाक सरकार जिम्मेदार है पर अगर जरा गंभीरता से हम इस विषय के बारे में सोचे तो पाएंगे कि सरबजीत की मौत के लिए जितना पाक सरकार जिम्मेदार है उतनी ही हमारी मीडिया जिसने सरबजीत मामले को आम से खास बना दिया। एक ऐसा मसला बना दिया जो दोनों देशो के हुक्मरानों के लिए सियासत का एक नया मुद्दा बन गया विशेषकर पकिस्तान के लिए हुक्मरानों के लिए। ये तो जगजाहिर है कि मीडिया जब भी किसी मसले को उठता है तो निजाम पर ये दबाव होता है कि वो मसले को जल्द से जल्द निपटाए क्योंकि तब वो मसला आम आदमी से जुड़ जाता है।

कुछ इसी तरह की तस्वीर सरबजीत मसले पर बनी। सरबजीत मसला पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए गलें की फांस बन गया था जिसे वो न तो जल्दी उगल सकते थे और न ही निगल सकते थे। पकिस्तान का निजाम ये बात अच्छी तरह से समझ चुका था कि एक न एक दिन सरबजीत को रिहा करना पड़ेगा क्योंकि उसकी सजा पूरी होने वाली है और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी सरबजीत एक गंभीर मसला बन गया है। ऐसी स्थिति में पाक की निजाम के लिए ये जरुरी हो गया था कि वो सरबजीत मसले को जल्द से जल्द निपटाए क्योंकि यदि सरबजीत रिहा हो जाता तो पकिस्तान के निजाम पर ही खतरा मडराने लगता क्योंकि पकिस्तान में सत्ता में वही रह सकता है जो भारत विरोधी विचारधारा से लैश हो। लेकिन ऐसी स्थिति के बावजूद कई भारतीय कैदी पकिस्तान की जेलों से रिहा होकर भारत आये। फिर सरबजीत के मसले में ऐसा क्यों नहीं हुआ? आखिर क्यों पकिस्तान सरकार ने सरबजीत चैप्टर को ही खत्म कर दिया ?

इसका सीधा जवाब है हद से ज्यादा इस मामले मीडिया का हस्तक्षेप जिसकी बाजारवादी नीति ने एक निर्दोष की जान ले ली। ये मीडिया की ही देन थी कि 27 जून 2012 को सरबजीत की रिहाई का आदेश सुरजीत की रिहाई में तब्दील हो गया और सरबजीत रिहा होते होते रह गया।

कहने का तात्पर्य है कि किसी भी मसले को आज के दौर में मीडिया सिर्फ व्यावसायिक दृष्टिकोर्ण से देख रहा उस मसले का मानवीय और सामजिक पहलु क्या है मीडिया को उससे सरोकार नहीं है, यही कारण है कि वो लगातार ऐसे मसलों को उठा रहा है जो आम जनमानस को उद्देलित करें और आम जनता को अन्ध्र राष्ट्रभक्ति की तरफ धकेले।

अब ताजा मामला भारत चीन सीमा विवाद का ही ले लें। इस पूरे मसले की जो तस्वीर मीडिया ने बनायीं वो कुछ इस प्रकार थी कि मानो चीन भारत से युद्ध करने जा रहा है और भारत चीन के सामने हाथ जोड़े खड़ा हो कि हमें माफ़ कर दो। जबकि परिस्थित इससे काफी दूर थी। न तो चीन युद्ध चाहता और न ही भारत। दोनों ही इस मसले का कूटनीतिक स्तर पर हल चाहते थे जो निकला भी। ये कूटनीतिक वार्ता की ही देन थी कि बिना युद्ध के ही चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली लेकिन ये बात मीडिया को कौन समझाए उसे तो सिर्फ और सिर्फ युद्ध ही नजर आ रहा था। क्योंकि युद्ध ही उसे टीआरपी देता, युद्ध ही उसे विज्ञापन देता। जैसे सरबजीत मसला दे रहा था।

ऐसे न जाने कितने उदहारण हैं जहाँ मीडिया ने व्यावासिक हितों के लिए राष्ट्र हित को ही दाव पर लगा दिया। आज मीडिया के लिए वही मुद्दा जनसरोकारी मुद्दा है जो देश के आम नागरिक में चेतना से ज्यादा गुस्से को पैदा करें। बेहतर होगा कि दूसरों पर उंगली उठाने से पहले मीडिया खुद के कार्यकलापों पर विचार करें और ये निर्धारित करें कि सशक्त भारत में निर्माण में उसकी भूमिका नकरात्मक है या सकरात्मक क्योकि यदि अब अगर मीडिया ने इस पर विचार नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब समाज को जाग्रत करने वाला मीडिया समाज के पतन का कारक बन जायेगा।

अनुराग मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार
लखनऊ
मो- 9389990111

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button