शिक्षकों को लेकर सांप और छछूंदर की स्थिति में नीतीश हुकूमत
नियोजित शिक्षकों (ठेकेदारी प्रथा पर रखे गये) को लेकर बिहार में नीतीश सरकार की स्थिति सांप और छछूंदर वाली हो गई है, न उगलते बन रहा हैं और न निगलते। नीतीश कुमार की विकास यात्रा की हवा निकालने के बाद अब लाखों की संख्या में नियोजित शिक्षक पटना में उपद्रव मचा रहे हैं, वो भी तब जब बिहार विधान सभा का सत्र चल रहा है। जिस वक्त बिहार में बड़े पैमाने पर नियोजित शिक्षक रखे जा रहे थे उस वक्त सरकारी स्तर पर इस मुहिम की खूब प्रशंसा की गई थी। नीतीश कुमार को एक अति दूरदूर्शी महान नीतीज्ञ और विकास पुरुष घोषित किया गया था। उस वक्त नीतीश कुमार को नहीं पता था कि बिहार में शिक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाला उनका यह कदम अंतत: उनके सिर पर ही बेभाव पड़ने वाला है। यदि खुले शब्दों में कहा जाये तो शिक्षक के नाम पर तथाकथित ‘विकास पुरुष’ ने अयोग्य लोगों की फौज को एक जुट कर दिया, जो अब उनके ही नाक में दम किये हुये है। ‘नियोजित शिक्षकों’ की बहाली का धांसू आइडिया का इजाद करने वाले वे अधिकारी भी अब सकते हैं, जो अपना नंबर बढ़ाने के लिए इसे एक क्रांतिकारी कदम घोषित करने में सबसे आगे रहते थे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नियोजित शिक्षकों की वजह से बिहार में निचले स्तर की शिक्षा की कमर टूट गई है। पढ़ने-पढ़ाने का पूरा माहौल ही ध्वस्त हो गया है। बिहार सरकार प्राथमिक शिक्षा को लेकर भले ही बड़े-बड़े दावे करे लेकिन यह सच है कि बिहार के बच्चों में शिक्षा को लेकर वो धार नहीं जो पहले कभी हुआ करती थी। कई स्कूलों से बच्चों को गलत-सलत पढ़ाने की खबरें लगातार आती रहीं। हालांकि इसकी कई बार समीक्षा करने की कोशिश की गई, लेकिन घुन तो बुनियाद में लगा हुआ था, इसलिए परिणाम सिफर रहा। अब जिस तरह से नियोजित शिक्षक आक्रमणकारी रूख अख्तियार करते हुये पटना में पथराव और आगजनी कर रहे हैं उससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि एक ‘शिक्षक की नैतिकता’ से इनका दूर- दूर तक कोई वास्ता नहीं है। अब इनके नेतृत्व में बिहार के बच्चे मुस्तकबिल में कैसे नागरिक निकलेंगे सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है। शिक्षा के मामले में नीतीश कुमार की अदूरदर्शिता ने बिहार को पूरी तरह से एक खतरनाक मोड़ पर कर खड़ा दिया है। इसकी बानगी पटना में नियोजित शिक्षकों द्वारी की गई तोड़ फोड़ और आगजनी में देखी जा सकती है।
जानकारी के मुताबकि सरकारी शिक्षकों की तरह वेतनमान और स्थायीकरण की मांग को लेकर राजधानी में आंदोलनरत अनुबंधित शिक्षकों और पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प में एक पुलिस जीप सहित तीन वाहनों में आग लगा दी गई, जबकि कई गाड़ियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। पुलिस सूत्रों ने बताया कि बिहार विधानमंडल परिसर से 400 मीटर की दूरी पर स्थित राजधानी पटना के आर ब्लॉक चौराहे पर प्रदर्शनकारी शिक्षकों और पुलिसकर्मियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। अब सवाल उठता है पहले से इन शिक्षकों को नहीं पता था कि इन्हें ठेकेदारी प्रथा में रखा जा रहा है? और जब एक बार इन्होंने ठेकेदारी प्रथा को स्वीकार कर लिया तो अब इनका नियमित करने की मांग कहां तक जाएज है?
नीतीश हुकूमत बिहार में पुलिस को तो पहले से ही गुंडा बनाये हुये है। कभी पुलिस के बड़े अधिकारी रंगदारी मांगते हैं तो कभी किसी निर्दोष के साथ जैसा मन करता करता है वैसा व्यवहार करते हैं। इन नियोजित शिक्षकों की भिड़त जब पुलिस से हुई तो पुलिस वालों ने इन पर जमकर अपना हाथ साफ किया। पहले आक्रोशित शिक्षकों ने एक पुलिस जीप और दो बसों को आग लगा दी, पथराव कर वहां खड़े दर्जनों वाहनों के शीशे और बाइकों को क्षतिग्रस्त कर दिया। जवाब में पुलिस ने भी लाठीचार्ज कर और आंसू गैस के गोले छोड़कर शिक्षकों को खदेड़-खदेड़ कर पीटा। वैसे शिक्षक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पुतला फूंकने में सफल रहें। इस मसले को लेकर बिहार विधान परिषद में जमकर हंगामा भी हुआ है। विपक्षी दल आरजेडी, कांग्रेस और भाकपा सदस्यों ने प्रश्नकाल चलने नहीं दिया। हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही सभापति अवधेश नारायण सिंह ने एक बार स्थगित कर दी।
बहरहाल अपने ही भष्मासुर से बचने के लिए प्रयासरत नीतीश कुमार के सामने अब लाख टके का सवाल है कि बिहार की शिक्षा किस ओर जा रही है। बिहार के पूर्व सियासी दंपती लालू और राबड़ी ने तो सिर्फ बिहार के वर्तमान को ही चौपट किया था, पर आतंक के राज से कानून का राज लाने का दावा करने वाले नीतीश कुमार ने तो बिहार के भविष्य पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है।
It’s true, & sham for Bihar, God knows when Bihar regulation system will come on right platform