लिटरेचर लव

सूर्य की नव किरणों के साथ…(कविता)

अरुण कुमार मयंक की चार कवितायेँ :
सुप्रभात

सुप्रभात!
सूर्य की नव किरणों के साथ,
नई आशा,नई उमंगें,
नई स्फूर्ति,नई ताज़गी,
नव विहान,नव उड़ान,

लेकर आया है,
आज का नया दिन…!

नारी
नारी !
तू कितनी है न्यारी,
तू कितनी है प्यारी,
कभी बनती है बेचारी,
कभी बनती है चिंगारी…!
अर्थ
आज
अर्थ ही जीवन है,
जीवन ही अर्थ है,
अर्थ के बिना,
सब-कुछ व्यर्थ है,
अर्थ का यह,
कैसा अनर्थ है!
आंसू

नयनों के आंसू गिरने से
ना कुछ बनता है,
ना कुछ बिगड़ता है.
किन्तु सीता द्रौपदी के आंसू ,
यूं ही व्यर्थ नहीं जाते!

वाल्मिकी और व्यास,
मसि-पात्र  में भर लेते हैं.
फिर डुबो उसी में,
अपनी कलम से,
रामायण-महाभारत लिख देते हैं.

***

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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2 Comments

  1. i like your kavita very much arth and ashoo, my wish is that one day you will become superstar of indian kaveeta.. sanjeev….

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