बुलंदी

हरिवंश सिंह के अंदर का पत्रकार, लेखक ज्यों का त्यों बना हुआ है : नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली । हरिवंश नारायण सिंह के राज्यसभा के दूसरी बार उप-सभापति निर्वाचित होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुये कहा है कि मैं श्रीमान हरिवंश सिंह को दूसरी बार इस सदन का उपसभापति चुने जाने पर पूरे सदन और सभी देशवासियों की तरफ से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
सदन में दिये गये अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा कि सामाजिक कार्यों और पत्रकारिता की दुनिया में हरिवंश सिंह ने जिस तरह अपनी ईमानदार पहचान बनाई है, उस वजह से मेरे मन में हमेशा उनके लिए बहुत सम्माान रहा है। मैंने महसूस किया है हरिवंश जी के लिए जो सम्माशन और अपनापन मेरे मन में है, इन्हे करीब से जानने वाले लोगों के मन में है, वही अपनापन और सम्मा न आज सदन के हर सदस्यम के मन में भी है। ये भाव, ये आत्मीेयता हरिवंश सिंह की अपनी कमाई हुई पूंजी है। उनकी जो कार्यशैली है, जिस तरह सदन की कार्यवाही को वो चलाते हैं, उसे देखते हुए ये स्वाीभाविक भी है। सदन में निष्पहक्ष रूप से आपकी भूमिका लोकतंत्र को मजबूत करती है।
सभापति से खिताब करते हुये उन्होंने कहा कि इस बार ये सदन अपने इतिहास में सबसे अलग और विषम परिस्थितियों में संचालित हो रहा है। कोरोना के कारण जैसी परिस्थितियां हैं, उनमें ये सदन काम करे, देश के लिए जरूरी जिम्मेंदारियों को पूरा करे, ये हम सबका कर्तव्यर है। मुझे विश्वा स है कि हम सब सारी सतर्कता बरतते हुए, सारे दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए, अपने कर्तव्यों का निवर्हन करेंगे।
राज्य्सभा के सदस्यव, सभापति जी अब उपसभापति जी को सदन की कार्रवाई सुचारू रूप से चलाने में जितना सहयोग करेंगे, उतना ही समय का सदुपयोग होगा और सभी सुरक्षित रहेंगे।
उन्होने कहा सभा‍पति महोदय, संसद के उच्चभ सदन की जिस जिम्मेादारी के लिए हरिवंश सिंह पर हम सबने भरोसा जताया था। हरिवंश सिंह ने उसे हर स्तरर पर पूरा किया है। मैंने पिछली बार अपने संबोधन में कहा था, मुझे भरोसा है कि जैसे हरि सबके होते हैं, वैसे ही सदन के हरि भी पक्ष-विपक्ष सबके रहेंगे। सदन के हमारे हरि, हरिवंश सिंह, इस पार और उस पार सबके ही समान रूप से रहे, कोई भेदभाव नहीं कोई पक्ष-विपक्ष नहीं।
मैंने ये भी कहा था कि सदन के इस मैदान में खिलाड़ियों से ज्याेदा अंपायर परेशान रहते हैं। नियमों में खेलने के लिए सांसदों को मजबूर करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। मुझे तो भरोसा था कि अपंयारी अच्छीण करेंगे लेकिन जो लोग हरिवंश सिंह से अपरिचित थे, हरिवंश सिंह ने अपनी निर्णायक शक्ति, अपने फैसलों से उन सबका भी भरोसा जीत लिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हरिवंश सिंह ने अपने दायित्‍व को कितनी सफलता से पूरा किया है, ये दो साल इसके गवाह हैं। सदन में जिस गहराई से बड़े-बड़े विधयकों पर पूरी चर्चा कराई, उतनी ही तेजी से बिल पास कराने के लिए हरिवंश जी कई-कई घंटों तक लगातार बैठे रहे, सदन का कुशलता से संचालन करते रहे। इस दौरान देश के भविष्यह को, देश की दिशा को बदलने वाले अनेको ऐताहासिक बिल इस सदन में पास हुए। पिछले साल ही इस सदन ने दस साल में सर्वाधिक productivity का रिकॉर्ड कायम किया। वो भी तब जब पिछला साल लोकसभा के चुनावों का साल था।
ये हरेक सदस्या के लिए गर्व की बात है कि सदन में productivity के साथ-साथ positivity भी बढ़ी है। यहां सभी खुलकर अपनी बात रख पाए। सदन का कामकाज नहीं रुके, स्थागन हो, इसका निरंतर प्रयास देखा गया है। इससे सदन की गरिमा भी बढ़ी है। संसद के उच्चह सदन से यही अपेक्षा संविधान निर्माताओं ने की थी। लोकतंत्र की धरती बिहार से जेपी और कर्पूरी ठाकुर की धरती से, बापू के चंपारण की धरती से जब कोई लोकतंत्र का साधक आगे आकर जिम्मेरदारियों को संभालता है तो ऐसा ही होता है जैसा हरिवंश सिंह ने करके दिखाया है।
जब आप हरिवंश सिंह के करीबियों से चर्चा करते हैं तो पता चलता है कि वो क्योंस इतना जमीन से जुड़े हुए हैं। उनके गांव में नीम के पेड़ के नीचे स्कूमल लगता था, जहां उनकी शुरूआती पढ़ाई हुई थी। जमीन पर बैठकर जमीन को समझना, जमीन से जुडने की शिक्षा उन्हेंत वहीं से मिली थी।
हम सभी ये भलीभांति जानते हैं कि हरिवंश सिंह जयप्रकाश के ही गांव सिताब दियारा से आते हैं। यही गांव जयप्रकाश की भी जन्मिभूमि है। दो राज्यों उत्तमर प्रदेश, बिहार के तीन जिलों आरा, बलिया व छपरा में बंटा हुआ क्षेत्र, दो नदियां गंगा और घाघरा के बीच स्थित दियारा, टापू जैसा, हर साल जमीन बाढ़ से घिर जाती थी, बमुश्किल एक फसल हो पाती थी। तब कहीं जाने-आने के लिए सामान्य रूप से नदी नाव से पार करके ही जाया जा सकता था।
संतोष ही सुख है, यह व्याववहारिक ज्ञान हरिवंश सिंह को अपने गांव के घर की परिस्थिति से मिला। वो किस पृष्ठगभूमि से निकले हैं, इसी से जुड़ा एक किस्सात मुझे किसी ने बताया था। हाई स्कू ल में आने के बाद हरिवंश सिंह की पहली बार जूता बनाने की बात हुई थी। उससे पहले न उनके पास जूते थे और न ही खरीदे थे। ऐसे में गांव के एक व्यसक्ति जो जूता बनाते थे, उनको हरिवंश सिंह के लिए जूता बनाने के लिए कहा गया। हरिवंश सिंह अक्स र उस बनते हुए जूते को देखने जाते थे कि कितना बना। जैसे बड़े रईस लोग अपना बंगला बनता है तो बार-बार देखने के लिए जाते हैं; हरिंवश सिंह अपना जूता कैसा बन रहा है, कहां तक पहुंचा है, वो देखने के लिए पहुंच जाते थे। जूता बनाने वाले से हर रोज सवाल करते थे कि कब तक बन जाएगा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह जमीन से इतना क्यों जुड़े हुए हैं।

जेपी का प्रभाव उनके ऊपर बहुत ही था। उसी दौर में उनका किताबों से भी लगाव बढ़ता गया। उससे भी जुड़ा एक किस्साब मुझे पता चला। हरिवंश सिंह को जब पहली सरकारी scholarship मिली तो घर के कुछ लोग उम्मीहद लगाए बैठे थे कि बेटा scholarship का पूरा पैसा लेकर घर आएगा। लेकिन हरिवंश सिंह ने scholarship के पैसे घर न ले जाने के बजाय किताबें खरीदीं। तमात तरह‍ की संक्षिप्ता जीवनियां, साहित्य, यही घर लेकर गए। उनके जीवन में उस समय किताबों को जो प्रवेश हुआ वो अब भी उसी तरह बरकरार है।
करीब चार दशक तक सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता करने के बाद हरिवंश सिंह ने 2014 में संसदीय जीवन में प्रवेश किया था। सदन के उपसभा‍पति के तौर पर उन्होंने जिस तरह मर्यादाओं का ध्यासन रखा, संसद सदस्यस के तौर पर भी उनका कार्यकाल उतना ही गरिमापूर्ण रहा है। बतौर सदस्यउ तमाम विषयों, चाहे वो आर्थिक हो या सामरिक सुरक्षा से जुड़े उन्होंने अपनी बात प्रभावी ढंग से रखी थी।
हम सब जानते हैं शालीन लेकिन सारगर्भित ढंग से बात रखना उनकी पहचान है। सदन के सदस्यग के तौर पर उन्होंनने अपने उस ज्ञान, अपने उस अनुभव से देश की सेवा का पूरा प्रयास किया है। हरिवंश सिंह ने सभी अंतरराष्ट्री य पटलों पर भारत की गरिमा, भारत के कद को बढ़ाने का काम भी किया है। चाहे वो Inter-parliamentary union की तमाम बैठकें हों या फिर दूसरे देशों में भारतीय संस्कृीति प्रतिनिधिमंडल के सदस्यe के तौर पर भूमिका का निर्वाह हो। हरिवंश सिंह ने ऐसी हर जगह भारत और भारत के संसद का मान बढ़ाया है।
उन्होंने कहा कि सदन में उपसभापति की भूमिका के अलावा हरिवंश सिंह राज्यपसभा की कई समितियों के अध्याक्ष भी रहे। ऐसी तमाम समितियों के अध्य क्ष के तौर पर हरिवंश जी ने समितियों के कामकाज को बेहतर बनाया है, उनकी भूमिका को प्रभावी ढंग से रेखांकित किया है। मैंने पिछली बार भी ये बताया था कि हरिवंश सिंह कभी बतौर पत्रकार हमारा सांसद कैसा हो, ये मुहिम चलाते रहे हैं। सांसद बनने के बाद उन्होंदने इस बात के लिए भरपूर प्रयत्नं किया कि सभी सांसद अपने आचार-व्य वहार से और कर्तव्यकनिष्ठ बनें।
हरिवंश सिंह संसदीय कामकाज और जिम्मेअदारियों के बीच भी एक बुद्धिजीवी और विचारक के तौर पर भी उतना ही सक्रिय रहते हैं । आप अभी भी देशभर में जाते हैं। भारत के आर्थिक, सामाजिक, सामरिक और राजनीतिक चुनौतियों के बारे में जनमानस को जागरूक करते हैं। इनके अंदर का पत्रकार, लेखक ज्यों का त्यों बना हुआ है। इनकी किताब हमारे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह के जीवन को बारीकी से उभारती है, साथ ही, हरिवंश सिंह की लेखन क्षमता को भी प्रस्तुनत करती है। मेरा और इस सदन के सभी सदस्योंभ का सौभाग्यत है कि उपसभापति के रूप में हरिवंश सिंह का मार्गदर्शन आगे भी मिलेगा।
संसद का ये उच्चय सदन 250 सत्रों से आगे की यात्रा कर चुका है। ये यात्रा लोकतंत्र के तौर पर हमारी परिपक्वरता का प्रमाण है। एक बार फिर से हरिवंश जी आपको इस महत्वूमर्ण और बड़ी जिम्मेरदारी के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। आप स्वऔस्थम रहें और सदन में भी स्वरस्थक माहौल बनाए रखते हुए एक उच्चथ सदन से जो उम्मी दें हैं उन्हेंब पूरा करते रहें। हरिवंश सिंह को मुकाबला देने वाले मनोज झा को भी मेरी तरफ से शुभकामनाएं। लोकतंत्र की गरिमा के लिए चुनाव की ये प्रक्रिया भी उतनी ही महत्विपूर्ण है। हमारा बिहार भारत की लोकतांत्रिक परम्पुरा की धरती रहा है। वैशाली की उस परंपरा को, बिहार के उस गौरव को, उस आदर्श को हरिवंश सिंह इस सदन के माध्यरम से आप परिष्कृत करेंगे ऐसे मुझे विश्वाकस है।
मैं सदन के सभी सम्मा नित सदस्योंम को चुनाव की इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए धन्यसवाद अर्पित करता हूं। एक बार फिर से हरिवंश सिंह को, सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button