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“बाईसिकिल थीफ्स” देखने के बाद फिल्मकार बनने का निश्चय किया था सत्यजीत रे ने

इटैलियन नियोरियलिज्म फिल्म मूवमेंट का दुनियाभर के फिल्मों पर जोरदार प्रभाव पड़ा है। इस मूवमेंट को हांकने वाले इटली के फिल्मकारों पर फ्रेंच पोयटिक रियलिज्म का जोरदार प्रभाव था। इटैलियन नियोरिलिज्म को आकार देने वाले मिसेलेंजो एंटोनियोनी और ल्यूसिनो विस्कोंटी फ्रेंच फिल्मकार जीन रिनॉयर के साथ कर चुके थे। जीन रिनॉयर के साथ जुड़ने का मौका भारतीय फिल्मकार सत्यजीत राय को भी मिला था।

जीन रिनॉयर कोलकात्ता में अपनी फिल्म दि रिवर की शूटिंग करने आये थे। उस वक्त सत्यजीत राय ने लोकेशन तलाश करने में उनकी मदद की थी। जिस वक्त इटली में नियोरियलिज्म की नींव रखी जा रही थी, उस वक्त सत्यजीत राय भी इस पैटर्न पर गंभीरता से काम कर रहे थे। 1928 में विभूतिभूषण द्रारा लिखित बंगाली उपन्यास पाथेर पांचाली को फिल्म की भाषा में ट्रांसलेट करने की दिशा में वह गंभीर तरीके से सोच रहे थे। इस बात की चर्चा सत्यतीज रे ने कोलकात्ता प्रवास के दौरान जीन रिनॉयार से भी की थी और जीन रिनॉयर ने उन्हें इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया था।

उस वक्त सत्यजीत रे कोलकात्ता में लंदन की एड एजेंसी डीजे केमर में काम कर रहे थे। उस एजेंसी की ओर से उन्हें तीन महीने के लिए लंदन के हेडक्वाटर में भेजा गया। यहां पर उन्होंने तीन महीने में दुनियाभर की 99 फिल्में देखी और विश्व परिदृश्य पर फिल्म गतिविधियो के संपक में आये। इसी दौरान उन्हें इटैलियन फिल्मकार विटोरी डी सिका की फिल्म बाईसिकिल थीफ्स देखने का मौका मिला। और उसी दिन उन्होंने फिल्मकार बनने का निश्चय कर लिया।

इटैलियन नियोरियलिज्म मूवमेंट पर जीन रिनॉयर की फिल्म टोनी (1935)और ब्लासेटी की फिल्म 1860 (1934) का जबरदस्त प्रभाव था। इस मूवमेंट की शुरुआत रॉबट रोसेलिनी की फिल्म रोम,ओपेन सिटी से हुई थी। इस फिल्म की कहानी सेकेंड वल्ड वार के समय अमेरिकी सैनिकों द्वारा रोम को नाजी सेना से मुक्त कराने के पूव रोम में कैथोलिक और कम्युनिस्टों के बीच आपसी गठबंधन पर आधारित थी। इस फिल्म में रोसेलिनी ने नाजी सैनिकों की वापसी के कुछ वास्तविक दृश्य भी दिखाये थे।

नियोरियलिज्म मूवमेंट की अगली कड़ी विटोरियो डी सिका की फिल्म बाइसाइकिल थीफ्स थी। इस फिल्म में सेकेंड वल्ड वार के बाद इटली की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को बड़ी बेबाकी से उकेरा गया था। इस फिल्म में एक साधारण मजदूर दंपति की कहानी के माध्यम से कोई ठोस समाधान के बजाय वास्तविकता का चित्रण किया गया था। इटली की तमाम राजनीतिक और धार्मिक संस्थाओं के साथ-साथ उस समय के लोकप्रिय विश्वासों पर प्रश्न उठाया गया था। कोई ठोस समाधान न देने के कारण इस फिल्म को विभिन्न विचारधाराओं पर बंटे बौद्धिक हलकों में जमकर लताड़ा गया था। इन आलोचनाओ के जवाब में डी सिका ने कहा था, मेरी फिल्म मानवीय सुद्ढता की अनुपस्थिति और समाज में असमानता के खिलाफ एक संघर्ष है। यह गरीब और दुखी लोगो के पक्ष में कहे गये शब्द हैं।

उस दौर में सत्यजीत रे की फिल्में भी सामाजिक विषमता को मजबूती से व्यक्त कर करते हुये अंतरराष्ट्रीय फिल्म पटल पर अपनी पहचान बना रही थी। पाथेर पांचाली को देखने के बाद फ्रांकोइस ट्राफाउट ने कहा था, मैं उन किसानों की फिल्म नहीं देखना चाहता, जो हाथ से खाते हैं। सत्यजीत रे की फिल्म मेकिंग स्टाइल पूरी तरह से इटली के नियोरियलिज्म मूवमेंट से प्रभावित थी।

इटली के नियोरियलिज्म के विकास में सिनेमा पत्रिका में काम करने वाले फिल्म समीक्षकों के गुट का महत्वपूर्ण योगदान था। इस पत्रिका का संपादक फासिस्ट पाटी का नेता मुसोलिनी का बेटा विटोरियो मुसोलिनी था। इस पत्रिका के तामाम लोगों को सेकेंड वल्ड वार के बाद अपने राजनीतिक विचारों को अभिव्यक्त करने की आजादी नहीं थी। इसलिए ये लोग छद्मरूप से फिल्मों का सहारा ले रहे थे। मिशेलेंजेलो एंटोनिओनी, ल्यूसीनो विस्कॉन्टी, जियानी पुसीनी, सीजर जावेटीनी,ग्यूसेपे डी सैन्टिस और पियेट्रो इनग्राओ इस मंडली के मुख्य सदस्य थे। उस वक्त सत्यजीत रे भी अपने तरीके से फिल्मों पर आलेख लिख रहे थे। उनकी फिल्मी आलेखों का संकलन आवर्स फिल्म, देयरस फिल्म (1976) नामक पुस्तक में संकलित है। यह भारतीय और विदेशी फिल्मों के प्रति उनके स्पष्ट नजरिये का  बेहतर प्रमाण है।

डॉक्यूमेटरी और शॉट फिल्में सहित सत्यजीत रे कुल 37 फिल्में बनाई। अपनी फिल्मों में उन्होंने जीवन को बहुत मजबूती से पकड़ा और प्रदर्शित किया । उनकी फिल्म मेकिंग स्टाइल पर इटैलियन नियोरियलिज्म मूवमेंट का पूरा प्रभाव था। अमीर और गरीब लोगों पर आधारित कहानी, लोकेशन शूटिंग, गैर पेशेवर कलाकारों का इस्तेमाल, प्रतिदिन का जीवन, गरीबी और निराशा इटैलियन नियोरियलिज्म की खास विशेषताएं थी। इटैलियन नियोरियलिज्म स्टाइललेस स्टाइल की फिल्मों से प्रभावित होने के बावजूद वह एक अलग रास्ते पर चल रहे थे। इनकी सभी फिल्मों का टोन इटैलियन नियोरियलिज्म के काफी करीब था,लेकिन इटैलियन नियोरियलिज्म के फिल्मकारों से इतर वह स्क्रीप्ट को सही तरीके से लिखने पर बहुत ज्यादा जोर देते थे। स्क्रीप्ट राइटिंग को वह डायरेक्शन का एक अभिन्न अंग मानते थे। यही कारण है कि स्क्रीप्ट लेखन पर वह काफी समय देते थे, और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद ही उसे शूट करते थे।

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