पहला पन्ना
अखबारी दफ्तर में ‘तीहरे हत्याकांड’ के निहितार्थ
त्रिपूरा के एक स्थानीय अखबार ‘दैनिक गणदूत’ में जिस तरह से दिन दहाड़े तीन कर्मचारियों की चाकू मारकर हत्या कर दी गई उसे लेकर त्रिपूरा की मीडिया जगत में उबाल आया हुआ है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि हत्यारों के निशाने पर अखबार के संपादक व मालिक थे। लेकिन उनके न मिलने पर हत्यारों ने खीच में आकर अखबार के मैनेजर समेत अन्य दो लोगों को चाकुओं से गोद-गोद कर मार डाला। अपराधी जिस तरह से वारदात को अंजाम देकर सहजता से निकल भागे उससे त्रिपूरा में प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में पड़ती नजर आ रही है। इस वक्त त्रिपूरा से प्रकाशित होने वाले छोटे व मझोले दैनिक व साप्ताहिक अखबारों की कुल संख्या 56 है। अधिकत्तर अखबारें बंगाली भाषा में प्रकाशित हो रही हैं। इस वारदात के बाद से त्रिपूरा में मीडिया जगत में काम करने वाले लोग अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इसके साथ ही इस वारदात को लेकर कई रोचक जानकारियां भी सामने आ रही हैं, जो पूर्वोत्तर भारत में पत्रकारिता की बदलती तस्वीर की ओर इशारा कर रही है।
कहा जा रहा है कि ‘दैनिक गणदूत’ के मालिक से कुछ लोग रंगदारी के रूप में एक बड़ी रकम की मांग कर रहे थे। उनके इन्कार करने पर इस वारदात को अंजाम दिया गया। इसके अलावा एक कहानी और हवा में तैर रही है। त्रिपुरा के पत्रकारों के एक समूह का कहना है कि अखबार ‘दैनिक गणदूत’ के मालिक का संपर्क दुबई में बैठे अंडरवर्ल्ड के लोगों से हैं। यहां तक कि दिल्ली में बैठे बड़े नेताओं से भी इनके गहरे ताल्लुकात हैं। इस अखबार का इस्तेमाल वह अपने रसूख को और मजबूत करने के लिए कर रहे हैं। इस हमले के पीछे अंडरवर्ल्ड के लोगों का भी हाथ होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। हालांकि पुलिस अभी इस मसले पर कुछ भी कहने से बच रही है। काफी कुरदने पर एसएसपी विजय नाग ने सिर्फ इतना ही कहा कि अभी मामले की जांच की जा रही है। फिलहाल हमारे पास कोई क्लू नहीं है। इसलिए कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। जहां तक रंगदारी और अखबार के मालिक के अंडरवर्ल्ड के साथ कनेक्शन की बात है तो इसे अफवाह ही कहा जा सकता है और पुलिस अफवाहों पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों पर काम करती है। वैसे ‘दैनिक गणदूत’ के मालिक एवं संपादक बार-बार इस बात को दुहरा रहे हैं कि हमलावार उनकी हत्या करना चाहते थे, लेकिन गलत निशानदेही के कारण प्रबंधक के साथ-साथ अन्य दो लोगों मार डाला। लेकिन इस सवाल का जवाब उनके पास भी नहीं है कि आखिर हमलावर उनकी हत्या करना क्यों चाहते थे?
बहरहाल इस घटना को लेकर पत्रकार संगठनों में खासी नाराजगी है। त्रिपूरा जर्नलिस्ट यूनियन ने इस वारदात की पूरी जानकारी इंटरनेशनल फेडरेशन आॅफ जर्ननिस्ट को दी थी, जिसने इस घटना पर हैरानी व्यक्त करते हुये इसकी तीखी निंदा की है। साथ ही सरकार से अपराधियों को तुरंत हिरासत में लेने की मांग की है। लेकिन जिस तरह से पुलिस अभी अंधेरे में ही हाथ-पांव मार रही है उसे देखते हुये कहा जा सकता है कि अभी अपराधी पुलिस की पकड़ से बहुत दूर हैं। अभी तक उनकी पहचान भी नहीं की जा सकी है। इस बीच अरुणाचल प्रेस कल्ब और अरुणाचल प्रदेश यूनियन आॅफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने भी इस घटना की निदा करते हुये अपराधियों को सलाखों के पीछे ढकेलने की मांग की है। जर्नलिस्ट्स फोरम असम भी इस वारदात को लेकर आक्रोशित है। अपना आक्रोश व्यक्त करते हुये उसने कहा कि इस तरह के हमले को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस वारदात को लेकर प्रदेश की राजनीति में भी उबाल आया हुआ है। कांग्रेस ने वामपंथी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिस तरह से कांग्रेस के आह्वान पर 12 घंटे तक त्रिपुरा को बंद रखा गया उसे स्पष्ट हो जाता है कि लोग अखबार के दफ्तर में हुये इस तीहरे हत्याकांड को लेकर आक्रोशित हैं। प्रेस को डेमोक्रेसी का चौथा खंभा कहा जाता है। लोग कतई नहीं चाहते कि प्रेस को किसी भी रूप में डराया-धमकाया जाये। कांग्रेस लोगों की इस मानसिकता को अपने तरीके से भुनाने में लगी हुई है। चुंकि इस मसले पर वहां की मीडिया को भी कांग्रेस का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है इसलिए कांग्रेस का उत्साह बढ़ा हुआ है। कांग्रेस प्रवक्ता आशीष साहा ने जोर देते हुये कहा है कि मुख्यमंत्री माणिक सरकार को इस नृशंस हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए। वैसे माकपा, जो खुद वहां सरकार में है, ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच करने की हिदायत माणिक सरकार को दे दी है। जानकारों का कहना है कि जिस तरह से इस वारदात को अंजाम दिया गया उसे देख कर यही लगता है कि यह पेशेवर अपराधियों का काम है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन पेशेवर अपराधियों का इस्तेमाल किसने किया और और क्यों किया? क्या यह हत्याकांड खबरों को लेकर की गई है या फिर इसके पीछे कोई और कारण है?
चूंकि त्रिपुरा की सीमा बंगाल से लगती है और लंबे समय से वहां बांग्लादेशी शरणार्थियों का घुसपैठ हो रहा है। इस राज्य का इस्तेमाल अंतराष्टÑीय अपराधी संगठन तस्करी के लिए भी धड़ल्ले से कर रहे हैं। स्थानीय अखबारों में वहां पनप रहे गिरोहों और अंडरवर्ल्ड के साथ उनके ताल्लुकात के बारे में भी धड़ल्ले से लिखा जा रहा है। यदि वहां के स्थानीय पत्रकारों की बातों पर यकीन करें तो जो तस्वीर सामने आ रही है उससे यही लगता है कि अखबारों का इस्तेमाल भी आपराधिक गिरोह अपने नफे और नुकसान के लिहाज से एक-दूसरे के खिलाफ कर रहे हैं और पुलिस की भी इनसे जबरदस्त मिलीभगत है। यदि ऐसा है तो यह निसंदेह वर्नाकूलर पत्रकारिता में पनप रही खतरनाक प्रवृति की ओर इशारा है। आजादी के पहले से ही देश में छोटे-छोटे अखबारों की अहम भूमिका रही है। इन छोटे-छोटे अखबारों के बेखौफ अंदाज से भयभीत होकर ब्रितानी हुकूमत को वर्नाकूलर प्रेस एक्ट तक लाना पड़ा था। आज भी ये छोटे और मंझोले अखबार पूरी मुश्तैदी से अपने काम में जुटे हुये हैं। ऐसे में कोई व्यक्ति इस तरह के अखाबर का इस्तेमाल अपनी नाजायज गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कर कर रहा है तो यह सामुहिक रूप से छोटे व मझोले अखबारों की विश्वसनीयता को ही चोट पहुंचाने वाला साबित होगा। अत: ‘दैनिक गणदूत’ के दफ्तर में हुये इस हत्याकांड की गंभीरता से जांच तो होनी ही चाहिए ताकि इस खूनी खेल के पीछे का सच सामने आ सके।