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अपना काम बनता, भांड़ में जाये जनता

दौड़ा-दौड़ा भागा भागा सा….जी हां आज बिहार की राजनीति के हाल की चाल लगभग इसी तरह की हो चुकी है । चुनाव से पहले जितनी पैंतरेबाजी हो सकती है सब हो रही है । पुरातन मित्रों का मिलन हो रहा है, और नूतन समीकरण की खुशबू से फिजां का रूप बदला-बदला सा दिख रहा है। लोग जिन्हें कल तक कहीं भी गलियाने से परहेज नहीं करते थे आज उन्हीं की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। कुचक्र, छद्‌म, चापलूसी और चमचागीरी अपनी पराकाष्ठा पर है। आज मौका हाथ आया है तो राजनीति के खेल में भला पीछे क्यूं रहा जाये ? कल तक फूटी आंख न सुहाने वाले दुश्मन आज समर्पण की मिसाल बन चुके हैं । ये चुनाव जब भी आता है तो इसके बदलाव सहज महसूस किये जा सकते हैं । देखने पर पता चलता है कि कल तक जो एक दूसरे के लिये कुत्संगी थे, आज सत्संगी बन गले मे बाहें डाले बिहार को रामराज्य के घोड़े पर सवार करने को आतुर हैं । आज चुनावी माहौल में ये सभी हर तरह की सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना चाहते हैं और वह करने में जुट जाना चाहते हैं, जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है। वाह ! क्या बात है इस चुनाव नाम के महापर्व की , इंसान अपने बदले हुए अंतरात्मा का ढिंढोरा पिटता फिर रहा है। आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं। तभी तो इस चुनावी बयार मे कोई साला अपने जीजा को ये बताता है कि “जीजा त बुढा गईलें अब तो पूरे बिहार के कल्याण का दारोमदार इस साले के ही कंधे पर है । अत: हे जीजा अब आप सन्यास ले लें और शरीर और मन की प्रसन्नता पर ज्यादा ध्यान दें ।” पर जीजा ठहरे जाग़्रत आत्मा, तो वो भला मूक दर्शक बनकर कैसे रहे ? बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारणकरने में लगे हुए हैं । कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे …..। चुनाव होने वाला है और युग निर्माण योजना का लक्ष्य है । तभी तो कल तक जो नेता जी विधानसभा में गदर मचाने पर उतरे दिखाई पड़ रहे थे, आज वो शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करने की दिशा में प्रयासरत दिख रहे हैं । पर घबराने की जरूरत बिलकुल भी नहीं है क्योंकि ये सब तो चुनावी महापर्व का व्रत-अनुष्ठान है । चुनाव के बाद तो कोई व्रत-अनुष्ठान थोड़े ही न होने वाला है। आज जो उत्कृष्टता अपनाने, और आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग इन सबों में दिख रही है वो सब इसी चुनावी व्रत-अनुष्ठान का ही हिस्सा है। आखिर सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं जाता ये तो हम सभी जानते ही हैं। चुनावी माहौल के रंग भरे मौसम मे कई मनमोहक रंग से सराबोर हमारे राजनीतिज्ञ कर्त्ता-धर्त्ता अब एक ही मंत्र को अपना कर चलने का प्रयास कर रहे हैं, कि भईया भूत लौटने वाला नहीं, भविष्य का कोई निश्चय नहीं; संभालने और बनाने योग्य तो वर्तमान है। तो अभी आप जिसके साथ भी हों अगर काम न बने तो उसे लतियाओ और हमारी मगर मित्रता की शरण में आओ, और फिर मिलकर साथ साथ गलियाओ । वाह कितना मनोरम दृश्य होता है वो जब हम ये देखते हैं कि कल तक एक दूसरे पर लात-जूता बरसाने को आतुर ये मित्र अब मिले सुर मेरा तुम्हारा की तर्ज पर एक साथ कुकुर-वाणी सुनाते है। “अपना काम बनता और भांड़ मे जाये जनता” की कहावत बिहार मे बेहद जनप्रिय है और इसका एक से बढकर एक उदाहरण इस चुनावी माहौल में देखा जा सकता है । अगर टिक़ट मिल गया तो फलानी पार्टी और उसके नेता महान और अगर टिक़ट छिन गया तो बस महान की जगह शैतान को चिपका देने की जरूरत होती है । चुनाव में भाग लेने को आतुर ये राजनीतिज्ञ बंदे बड़ी-बड़ी बातों का भी खूब अभ्यास करते हैं। तभी तो आये दिन या कह ले प्रतिदिन न्यूज चैनलों पर अपनी पार्टी और नेता का जबरदस्त महिमा मंडन करते नजर आते हैं । राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र के उत्थान, राष्ट्रोत्कर्ष, राष्ट्र का विकास जैसे शब्दों का तो ये ऐसे प्रयोग करते हैं, मानो इन शब्दों की गोली बनाकर सुबह, दोपहर, शाम और रात को गुनगुने पानी के साथ प्रतिदिन लेते हों । एक और बड़ी महत्वपूर्ण बात इस चुनाव के समय देखने को आती है और वो है नेताओं के चरित्र में मिलनसारिता, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों का जन्म। पता नहीं रातों-रात ये कैसे इन गुणों का समावेश अपने अंदर कर लेते हैं । शायद इन्हीं गुणों के कारण तो इन्हें राजनीतिज्ञ कहा जाता हैं । अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है। आजकल इसी को फार्मूला बनाकर ये नेता हर जगह पहुंच जाते है और किसी से भी बडे़ ही प्यार और आत्मीयता से पेश आते हैं। क्या नजारा होता है वो जब हम इन्हें किसी गरीब के नंगे बच्चें को गोद मे बिठा कर बडे़ प्यार से पुचकारते देखते हैं । इन दिनों ये बिलकुल सच्चे नेता बन जाते हैं और अपनी कई तरह की सिद्धियों के द्वारा आत्मविश्वास फैलाते हैं। और देखिये न ….वही आत्मविश्वास फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है। सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला ‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ से प्रेरित होती है और अभी जो चुनावी माहौल है उसमें हर नेता इस शिवत्व भावना से ओत-प्रोत दिखेगा आपको । अगर आप इन दिनों इन सभी बातों से दो-चार हो रहें हों तो ज्यादा आश्चर्य न करें ये बस मौसम का असर है…मौसम बदलने दें, देखियेगा असर भी बदल जायेगा।

अनिकेत प्रियदर्शी

खगौल, पटना, के रहने वाले अनिकेत विभिन्न विषयों पर लगातार लिख रहे हैं।

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