अपने गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए झारखंड की एक लड़की ने अमेरिका की चाकरी छोड़ दी
शिरीष खरे, मुंबई
अपने ही देश में कुछ कर गुजरने के जज्बे ने लोहरदगा की मनोरमा एक्का को दोबारा उनकी जमीन से जोड़ दिया है। झारखण्ड की यह लड़की ने अपने गांवों की लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अमेरिका में अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और वापस स्वदेश लौट आई। मनोरमा एक्का फिलहाल बाल मजदूरों और ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए व्यवस्था से लड़ाई लड़ रही है।
यह उनके कामो का ही परिणाम है कि बदला नवाटोली गांव निवासी फूलमनी व शोभा ही नहीं दर्जनों ऐसी महिलाएं हैं जो आज आत्मनिर्भर हैं और दूसरे को आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं। ये वही महिलाएं हैं जो दो जून की रोटी के लिए दूसरे राज्यों में जाती थीं और कठिन यातना झेलती थीं। अब यही महिलाएं गांव में स्वयं सहायता समूह से जुड़ स्वावलंबी बनी हुई हैं। मनोरमा ने 12 गांवों में जागरूकता अभियान चलाकर लगभग डेढ़ सौ बच्चों को स्कूल से जोड़ने का काम किया है। यह बच्चे कभी बाल मजदूर थे।
मनोरमा रांची से पीजी डिप्लोमा इन रूरल डेवलपमेंट की शिक्षा ग्रहण कर अमेरिका चली गई। अमेरिका में उन्होंने जनवरी 2001 तक पढ़ाई के साथ-साथ प्री स्कूल में नौकरी भी की। 2001 के अंतिम महीने में वह अमेरिका से भारत लौट आई। इसके बाद यह फिर से 2005 में सोशल वर्क्स की शिक्षा के लिए अमेरिका चली गई। मगर अमेरिका की चमक दमक भी इसे ज्य़ादा देर नहीं रोक सकी और 2007 में यह वापस भारत आकर उरांव आदिवासी महिला के नेतृत्व पर रिसर्च करने लगी। इसी दौरान जब मनोरमा ने महिलाओं और बच्चों की दशा को देखा तो यही रहकर महिलाओं और बच्चों को अधिकार दिलाने का निर्णय लिया।
जब मनोरमा ने लोहरदगा में महिला और बाल अधिकार को लेकर व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई शुरू की तो पहली बार उनका हकीकत से वास्ता पड़ा। बहुत से राजनैतिक और सामाजिक पेचेदियां उनके सामने आईं मगर वह उन्हें अपने अभ्यास का एक हिस्सा मानती रहीं। यहां तक कि जब यह बाल अधिकार से जुड़े मामलों को लेकर गांव में जाती थी तो ग्रामीण इसे कोई साजिश समझते थे। इस तरह अपने पहले पड़ाव में मनोरमा को आदिवासी समुदाय का ही पूरा समर्थन नहीं मिल पाया था। मगर धीरे-धीरे अब स्थितियां काफ़ी हद तक बदल चुकी हैं।
बाल अधिकार पर कार्य करने वाली संस्था क्राई के सहयोग ने मनोरमा के हौसले को बुलंद किया है। मनोरमा ने होप संस्था की स्थापना कर महिला व अधिकार को अपना उद्देश्य बनाया है।
मनोरमा कहती है कि उसने अपनी जिंदगी को समाज में फैली गैर बराबरी मिटाने के नाम कर दी है। वह अपनी भूमिका को बच्चों और महिलाओं तक उनके अधिकार बताने और बेहतर समाज बनाने के रूप में देख रही है।