
उत्तराखंड सरकार के दिल्ली में आवासीय आयुक्त को घश्यारी नीति के विषय में सीएम धामी के नाम ज्ञापन पत्र दिया, दिल्ली विधानसभा उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट से भी आग्रह किया
राजू बोहरा / वरिष्ठ संवाददाता दिल्ली
सामाजिक संस्था सार्वभौमिक के बैनर तले, उत्तराखंड समाज के प्रबुद्ध महानुभावों ने सार्वभौमिक अध्यक्ष एवं गढ़वाल हितैषिणी सभा दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में आवासीय आयुक्त उत्तराखंड सरकार से घश्यारी नीति के विषय में भेंट की और इस नीति के विभिन्न पहलुओं पर लगभग डेढ़ घण्टे चर्चा होने के बाद मुख्यमंत्री धामी के नाम इसी संदर्भ में एक ज्ञापन पत्र भी सौंपा गया। गौरतलब है की पलायन की मार से बेहाल उत्तराखंड के आज लगभग 1700 गांव भूतहा हो गए हैं और बड़ी तेजी से गांव भूतहा होने की दिशा में बढ रहे हैं। वहीं उत्तराखंड में जीवन की धुरी आज भी काल का ग्रास बन रही है या फिर स्थाई रूप से अपाहिज हो रही है ।२६ अक्टूबर 2025 को डूण्डा तहसील अंतर्गत ग्राम रनाड़ी की एक महिला घास काटते समय लुढ़कती चट्टान के चपेट में आकर काल का ग्रास बन गई। घश्यारी का बाघ, तेंदुआ, भालू, सूअर आदि जंगली जानवर के आक्रमण व सांप के डसने से मृत्यू का ग्रास बनना या घायल हो कर स्थायी रूप से विकलांग हो जाना उत्तराखंड में आम बात है, घस्यारी किसी भी आयु वर्ग की होती हैं, दुर्घटना की स्थिति में अपने पीछे छोटे-छोटे बच्चे छोड़ जाती हैं या फिर जीवन भर कष्टमय जीवन जीने को विवश हो जाती हैं।
घश्यारी ही पहाड़ को जीवित,आबाद व सुरक्षित रख सकती है, लेकिन पहाड़ का यह कर्मठ नारी वर्ग सदैव से सरकारों की उदासीनता का शिकार रहा है। 10,नवंबर को विधानसभा दिल्ली विधानसभा के उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य स्थापना के रजत जयंती के अवसर पर आयोजित चिंतन गोष्ठी में उपस्थित प्रबुद्ध जनों का भी सार्वभौमिक के अध्यक्ष अजय सिंह बिष्ट ने आह्वान किया की यदि उत्तराखंड के गांव को भूतहा होने से बचाना है तो उत्तराखंड की रीढ़ की हड्डी कर्मठ नारी घस्यारी को सोच के केन्द्र में रख कर प्रतिलोम पलायन को प्रोत्साहित किया जाए।
उत्तराखंड सरकार घश्यारी की सुरक्षा,संरक्षण, संवर्धन व बेहतर जीवन हेतु एक ठोस नीति बनाये, ऐसी मांग करते हैं। उस नीति में घायल होने की स्थिति में 5 लाख व मृत्यु की स्थिति में 10 लाख का प्रावधान रखा जाय। इस बैठक में अजय सिंह बिष्ट,जयलाल नवानी, सुभाष चन्द्र नौटियाल,ब्रिजेन्द्र रावत,प्रताप थलवाल एवं रेजिडेंट कमिश्नर के अतिरिक्त दो अन्य अधिकारी शामिल थे। सभी ने इस नीति की प्रसंशा की,यह उत्तराखंड के गांव में जटिल प्रस्थितियों में रह कर गांव का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पहिया गतिमान रखें हुए हैं,उन कर्मठ नारियों के प्रति सरकार की संवेदनशीलता होगी,जो उत्तराखंड के वीरान होते गांवों को पुनः जीवित करने का मंत्र बन सकता है। गांव अपना खोया हुआ वैभव वापस प्राप्त कर सकते हैं।



