कनहर नदी को बहने दो, हमको जिन्दा रहने दो
(कनहर बांध विरोधी आन्दोलन के धरना स्थल से भेजी गई किसान आदिवासी विस्थापित एकता मंच, सिंगरौली की सदस्य एकता की रिपोर्ट)
रिपोर्ट लिखे जाने के दौरान अभी अभी खबर मिली है कि धरना स्थल पर आज दिनांक 18 अप्रैल 2015 को सुबह पुलिस ने दुबारा फायरिंग की जिसमें दर्जनों लोगों के मारे जाने की खबर है। धरना स्थल पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया जिससे मरे हुए और घायल साथियों को धरना स्थल से हटा पाना भी सम्भव नहीं हुआ। खबर मिली है कि कनहर नदी में पुलिस द्वारा मृत और घायल साथियों को प्रोक्लेन मशीन द्वारा दफनाया जा रहा है ताकि सबूत मिटाया जला सके। यह एक अत्यंत ही आपातकालीन स्थिति है। यह रिपोर्ट पढने वाले साथियों से अनुरोध है कि अपने अपने स्तर से तत्काल उचित प्रयास शुरू करें। डी.एम. सोनभद्र को फोन करके अथवा एस.एम.एस. से इस असम्वैधानिक और अमानवीय कृत्य की भत्रसना करें। उनका फोन नम्बर 9454417569 है।
1976 में जब पहली बार कनहर और पागन नदी के संगम स्थल पर बांध बनाए जाने की घोषणा हुयी, तभी से आस पास के लगभग 100 से अधिक गांवों के लोग, जो कि ज्यादातर आदिवासी हैं, अपने अपने अस्तित्व का संघर्ष कर रहें हैं। कभी मुखर विरोध और कभी पैसे की कमीं के कारण बंद होते बांध के काम ने मानों पिछले चार दशक से इन ग्रामिणों के सामने धरना प्रदर्शन के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।यह बांध उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के दुद्धी तहसील स्थित अमवार गांव में बनाया जाना प्रस्तावित है। सरकार के अनुसार, सिंचाई परियोजना के नाम पर बनने वाले इस बांध के डूब क्षेत्र में केवल 15 गांव आने हैं। जबर्दस्त जालसाजी से भरे इस आंकड़ें में अमवार के ही प्राथ्मिक विद्यालय को डूब क्षेत्र से बाहर बताया गया है, जो बांध के प्रस्तावित नींव निर्माण स्थल से केवल 2 कि.मी. दूर एक छोटी पहाड़ी के दूसरी तरफ स्थित है।सिंगरौली और भोपाल से किसान आदिवासी विस्थापित एकता मंच, उर्जांचल विस्थापित एवं कामगार युनियन, अमृता सेवा संस्थान, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(मध्य प्रदेश राज्य ईकाई) और आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि जब दुद्धी रेलवे स्टेशन से धरना स्थल की ओर बढे तो जानकारी मिली कि स्थानीय प्रशासन ने धरना स्थल पर पहुँचने के सारे रास्ते बंद कर दिये थे। यह भी खबर मिली कि छत्तीसगढ के प्रभावित गांवों का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेसी विधायक ने जब धरना स्थल पर पहुँचने की कोशिश की तो उन्हें भी आधे रास्ते से ही बैरंग लौटा दिया गया। ऐसे में इस प्रतिनिधि मंडल को धरना स्थल पर पहुँचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। कुछ स्थानीय साथियों ने रास्ता दिखाया तो जंगल और नदियों के बीच से लगभग दस किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद यह प्रतिनिधि मंडल धरना स्थल तक पहुँच सका। कनहर नदी को बहने दो, हमको जिन्दा रहने दो, जंगल हमारे आप का नहीं किसी के बाप का, जैसे जिन गगन भेदी नारों के बीच धरना स्थल पर गामीणों और प्रतिनिधियों के इस दल का मिलन हुआ उसने पथरीले रास्ते पर पैदल चलने की थकान को पल भर में दूर कर दिया।ताजा घटनाक्रम-सिंचाई परियोजना के नाम पर प्रस्तावित इस कनहर बांध को बनाने की कवायद तो पिछले चार दशक से जारी है, लेकिन वर्तमान राज्य सरकार की ओर से जो बर्बर कार्यवायियों का दौर अब शुरू हुआ है, वह एक नयी परिघटना है। 23 दिसम्बर 2014, यानि आज से मात्र 4 माह पहले भी जिला प्रशासन ने निरंकुश और एकतरफा कार्यवाही करते हुए धरने पर बैठे ग्रामिणों को जमकर पीटा था। निहत्थे ग्रामिणों को पीटने के बाद स्थानीय एस.डी.एम. का सर फोड़ने के आरोप में सैकड़ों ग्रामीणों पर एफ.आई.आर. भी किये गये और गिरफ्तारियाँ भी हुयीं।इस बार, दिनांक 14 अप्रैल 2015 को, सुबह 6 बजे अम्बेडकर जयंती मनाने के लिए धरना स्थल पर जब भीड़ बढने लगी, तो फिर प्रशासन ने एकतरफा कार्यवाही की।बहुसंख्यक रूप से महिलाओं की भागीदारी के साथ चल रहे इस प्रदर्शन पर स्थानीय कोतवाल …. के नेतृत्व में क्रुरता के साथ लाठीचार्ज किया गया। प्रदर्शन में शामिल अकलू चेरो को बिलकूल करीब से गोली मारने के पहले, बिना महिला पुलिस के आये पुलिस दल ने न केवल महिलाओं के हाथ पैर तोड़े बल्कि धरने पर उपस्थित किशोरियों और महिलाओं के प्रति अपनी अश्लील कुन्ठा का भी खुले आम प्रदर्शन किया। विरोध में संख्या बढती देख कोतवाल ने आदीवासी अकलू चेरो को बिल्कूल नजदीक से गोली मारी और भाग खड़े हुए। बाद में ग्रामीणों पर सरकारी काम रोकने, पुलिस पर हमला करने और ठेकेदारों की मशीने लूटने के आरोप लगाये गे और इन्हीं आरोपों के तहत 30 नामजद और 400 से ज्यादा अज्ञात लोगों पर मुकदमें कायम किये गये हैं। अकलू फिलहाल वाराणसी के सर सुन्दारलाल अस्पताल में भर्ती हैं और जीवन के लिए संघर्ष कर रहें हैं। उन्हें यहा सोनभद्र के जिला चिकित्सालय से रिफर किया गया है। प्रदर्शनकारियों के अनुसार गोली आरपार हो गयी थी और प्रमाण के बतौर प्रदर्शनकारियों ने वह गोली उठाकर सुरक्षित रख ली है। 6 महिलाओं समेत 11 लोग गम्भीर रूप से घायल हैं और ज्यादातर साथियों की कई हड्डिया टूट चुकीं हैं।अमवार और आस-पास के दर्जनों गावों में रहने वाले लोगों के लिए जीवन और मौत के बीच का यह संधर्ष नया नहीं है। पीढियों से जो कनहर और पागन नदिया इलाके भर की जीवन रेखा बनी हुई थी वही नदियां पिछले चार दशकों से संकट बनी हुई हैं। प्रस्तावित बांध से प्रभावित होने वाले ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है जो पास के ही रेनूकुट में बने रिहंद बांध से उजड़े हैं।यहां यह बताना जरूरी है कि रिहंद बांध का निर्माण भी 148 गावों को उजाड़ कर हुआ और सिंचाई परियोजना के नाम पर ही बने इस बांध से आज 55 वर्षों बाद भी सिंचाई के लिए एक भी नहर नहीं निकाली जा सकी है। रिहंद पूरी तरह से सोनभद्र और सिंगरौली में चल रहे ताप बिजली गृहों के लिए पानी के श्रोत के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। सिंगरौली स्थित रिलायंस के शासन बिजली उत्पादन घर ने लगातार पानी कम पड़ने की शिकायत की है। इससे यह स्पष्ट है कि पहले से मौजूद बिजली उत्पादन युनिटों के लिए ही पानी कम पड़ रहा है, जबकि सरकार की मंशा क्षेत्र में और नये पावर प्लांट लगाने की है।ऐसे में, रिहंद से 50 कि. मी. से भी कम दूरी पर प्रस्तावित कनहर बांध सिंचाई के नाम पर बनाये जाने के लिए बहुप्रचारित हुआ है, पर रिहंद की तरह ही कनहर बांध के भी सिंचाई के लिए उपयोग में लाये जाने को लेकर शक है। ज्यादा आशंका इस बात की है कि भविष्य में, कनहर बांध का पानी भी प्रस्तावित बिजली घरों के लिए ही इस्तेमाल होना है।लेकिन सिंचाई के लिए बहुप्रचारित कर सरकार ने बांध के पक्ष में एक बड़ा तबका भी तैयार कर लिया है। पिछले एक दशक में वयस्क हुई शहरी आबादी विकास के जुमले पर कट्टर भरोसा करती है और लाखों आदिवासी, दलित और मुसलमानों के खून से सोनभद्र की जमीन सींचने और हरियाली लाने का ख्वाब बून रही है। इसी शहरी आबादी के समर्थन ने सरकार को इतना निरंकुश कर दिया है कि एन.जी.टी. द्वारा बांध पर स्टे दिये जाने के बाद भी शासन ने काम नही रोका है।बहरहाल, कनहर बांध विरोधी यह आन्दोलन पूर्ण रूप से महिलाओं के नेतृत्व में है, जो सफलता-असफलता के बरक्स विरोध के फिलहाल मजबूती से से कायम रहने का भरोसा जगाता है। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक धरना स्थल पर लगभग 1500 लोग उपस्थित हैं और इन्हें तीन तरफ से घेर कर लगभग 5000 पी.ए.सी. बल, पुलिस बल मौजूद हैं। धरना स्थल की बिजली प्रशासन द्वारा काट दी गई है और पहाडियों के बीच धरने पर बैठे ग्रामीण पूरी रात अंधेरे में बैठने का खतरा उठाने को विवश हैं। जबकि सरकार इस बार हर कीमत पर काम बढाना चाहती है, वहीं जनता ने हर स्तर पर लड़ने का निर्णय भी कर लिया है। बरसों से क्षेत्र में नक्सलवाद के नाम पर आदिवासियों का उत्पीड़न और अरबों रूपयों का गबन कर लेने वाला शाषन-प्रशासन भविष्य के खतरों के प्रति लापरवाह बना हुआ है और इस तथ्य के प्रति उदासीन है कि अगर यह बांध बन भी गया और क्षेत्र में हरियाली आ भी गई तो इस हरियाली का रंग लाल होगा।सम्पर्क:एकता
किसान आदिवासी विस्थापित एकता मंच, सिंगरौली, मध्य प्रदेश । +91 8225935599 ई-मेलःlokavidya.singrauli@gmail.com