पहला पन्ना
गांधीवादी दर्शन से कोसों दूर हैं केजरीवाल
जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल उपवास पर बैठकर दिल्ली वासियों से बिजली और पानी का बिल नहीं देने की बात कर रहे हैं, उससे तो यही पता चलता है कि उन्हें जन आंदोलन चलाने की व्यावहारिक इल्म नहीं है। काफी शोर-शराबे के बाद अन्ना हजारे के नेतृत्व में खड़ा किये गये जन लोकपाल आंदोलन पर वह पहले ही मात खा चुके हैं। बिना किसी ठोस नतीजे के जन लोकपाल आंदोलन पूरी तरह से बिखर चुका है। अरविंद केजरीवाल इस आंदोलन के प्रमुख कर्ताधतार्ओं में एक थे। इसके बावजूद इस आंदोलन से उन्होंने कुछ भी सीखने की जहमत नहीं उठाई। यही वजह है कि अब वह दिल्लीवासियों को बिजली और पानी का बिल जमा न करने की नसीहत दे रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं कि यदि बिजली और पानी का बिल जमा न करने की वजह से उन पर कोई मुकदमा होता है तो उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, जब दिल्ली में उनकी आम आदमी की पार्टी की सरकार बनेगी तो सारे मुकदमे वापस ले लिए जाएंगे। सियासत की दुनिया में अरविंद केजरीवाल के तौर-तरीकों को देखकर तो यही लगता है कि न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी।
भारतीय राजनीति में ह्यअसहयोगह्ण और ह्यबहिष्कारह्ण की नीति का पहली बार सफलता पूर्वक इस्तेमाल महात्मा गांधी ने किया था। असहयोग और बहिष्कार का सीधा-सादा दर्शन था ब्रितानी हुकूमत के साथ किसी भी तरह का राब्ता नहीं रखने का और ब्रितानी सामानों से किनारा करना यानि उनका इस्तेमाल न करना। लगता है अरविंद केजरीवाल इतिहास की इस धारा से भी वाकिफ नहीं हैं। तभी तो वह सीधे तौर पर दिल्ली वासियों से अपील कर रहे हैं कि बिजली और पानी के बिलों का भुगतान न करें। यानि बिजली का उपभोग करें और लेकिन बिल का भुगतान न करें। यह हो सकता है कि दिल्ली में बिजली की आपूर्ति करने वाली कंपनी उपभोक्ताओं को गलत बिल पकड़ा रही हो, लेकिन इसका प्रतिरोध बिल न देकर करना कहीं से भी असहयोग और बहिष्कार की श्रेणी में नहीं आता है। यदि दिल्ली के लोग यह कहें कि बिजली कंपनी की मनमानी के खिलाफ हम उसका बहिष्कार करते हैं और बहिष्कार के तहत हम उनकी बिजली का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तब शायद यह सैद्धांतिक रूप से गांधी जी की ह्यविरोध शैलीह्ण के करीब होगी। अरविंद केजरीवाल के ह्यबिजली-पानी का बिल न दो आंदोलनह्ण चाहे कुछ भी हो गांधीवादी शैली का आंदोलन नहीं है।
वैसे जानकारों का यही मानना है कि अरविंद केजरीवाल की नजर दिल्ली के आगामी विधान सभा चुनाव पर है। बिजली और पानी के मसले को उठाकर वह दिल्ली वासियों को अपनी ओर आकर्षित करने की जुगत में है। चूंकि दिल्ली विधान सभा चुनाव में रोजमर्रा की जिंदगी से संबंधित मसले ज्यादा असर डालते हैं, इसलिए अरविंद केजरीवाल जानबूझकर बिजली और पानी के मसले को छेड़ रहे हैं, जिससे दिल्ली का प्रत्येक व्यक्ति सीधे तौर से प्रभावित है। अब अरविंद केजरीवाल की यह रणनीति आगामी विधान सभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है, यह तो समय ही बताएगा, फिलहाल लोग उन्हें एक संघर्षशील नेता के तौर पर देख रहे हैं और यह उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है। जानकारों का कहना है कि किसी समय में दिल्ली विधान सभा चुनाव में शीला दीक्षित को सफलता प्याज की कीमतों में हुये इजाफे पर जबरदस्त तरीके से हो हल्ला मचाने पर मिली थी। अब यदि अरविंद केजरीवाल बिजली और पानी के गड़बड़ बिलों पर आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है। इस मसले पर देर-सवेर मजबूती ध्रुवीकरण होना तय है और यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल इस मसले को उठाकर अपनी जीत के प्रति अभी से आश्वस्त हैं। तभी तो वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि आगामी विधान सभा चुनाव के बाद उनकी सरकार बनने पर बिजली बिल से संबंधित तमाम मुकदमों को खारिज कर दिया जाएगा।
दिल्ली में खास कर बिजली से संबंधित समस्याओं का एक अन्य पहलू यह भी है कि यहां पर बहुत बड़ी संख्या में लोग अवैध तरीके से बिजली की चोरी भी कर रहे हैं। दिन में बिजली के मुख्य कनेक्शन वाली तार तो उनके मीटर से जुड़ा रहता है लेकिन रात होते ही वे उस तार को मीटर से हटाकर कहीं और जोड़ देते हैं। दिल्ली के कई रिहायशी इलाकों में लोगों ने इस तरह की व्यवस्था बना रखी है। इस मसले को लेकर अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से खामोशी अख्तियार किये हुये हैं। गांधी जी सत्याग्रहियों के लिए कुछ नैतिक मापदंड भी मुकर्रर किये हुये थे। अरविंद केजरीवाल अपने आंदोलन में शरीक होने वाले लोगों के लिए फिलहाल कोई नैतिक मापदंड मुकर्रर नहीं किये हुये हैं। सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल आम लोगों को इमानदार बनाने की बात कभी नहीं करते हैं।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के इस आंदोलन को अपना समर्थन देने के लिए अन्ना हजारे भी आ रहे हैं। अन्ना हजारे के समर्थन से इस आंदोलन को कितना बल मिलेगा, अभी यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन यह सच है कि समय के साथ अन्ना हजारे की चमक भी फीकी पड़ी है। जनलोकपाल आंदोलन के समय अन्ना हजारे काफी मुखर थे। अच्छा खासा हुजूम उनके पीछे चल निकला था। उस वक्त अरविंद केजरीवाल भी मजबूती के साथ उनसे जुड़े हुये थे। आंदोलन की असफलता के बाद राजनीति में प्रवेश को लेकर दोनों के बीच मतभेद उभर कर सामने आये और दोनों के रास्ते जुदा हो गये। अन्ना हजारे समाज सेवा में लग गये और अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन करके राजनीति की राह पकड़ ली। इस दौरान अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल पर अति महत्वाकांक्षी होने का आरोप लगाते हुये कुछ तल्ख टिप्पणियां भी कीं लेकिन अरविंद केजरीवाल अन्ना को अपना गुरु बताते हुये संयम बरतते रहे। अब देखना यह होगा कि अन्ना हजारे के समर्थन से अरविंद केजरीवाल को क्या लाभ मिलता है।