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जवानों के बलिदान से कुंदन पाहन तक अबूझ पहेली

मोहम्मद हसीन बाबू

जवानों के बलिदान की परिभाषा को समझना पड़ेगा। क्योंकि अक्सर कदावर नेता यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि जवानों का बलिदान बेकार नहीं जायेगा। जवानों के एक-एक बूंद की कीमत हत्यारों को चुकानी पड़ेगी, तो इन शब्दों को समझने के लिए कौन से मापक यंत्र एवं शब्दकोष को माध्यम बनाया जाए कि जिससे सम्पूर्ण रूप से उत्तर प्राप्त हो सके क्योंकि नक्सली क्षेत्र में शहीद हुए जवानों के खून की कीमत सरकार के द्वारा दो से पांच लाख रुपए जोकि शहीद के परिवार को सरकार के द्वारा सहायता राशि के रूप में प्रदान कि जाती है परंतु जवानों को शहीद करने वाले हत्यारे को पन्द्रह लाख रुपये का पुरस्कार सरकार के द्वारा प्रदान किया जाता है।

कार्य की ऐसी रूप रेखा एवं ऐसी शैली तो समझ में नहीं आती ऐसे दृश्यों को देखकर एक बार मस्तिष्क सम्पूर्ण रूप से चकरा जाता है कि नक्सली को पन्द्रह लाख रु. का पुरस्कार किस लिए प्रदान किया जाता है। जबकि शहीद हुए जवानों के परिवारों को मात्रा दो से पांच लाख रुपये ही सहायता के रूप में प्रदान करने की नीति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है| इससे क्या समझा जाए तथा इस कार्य को किस रूप रेखा के अनुसार समझने का प्रयास किया जाए, जबकि जवानों की शहादत देश की रक्षा एवं सुरक्षा तथा तिरंगे का सम्मान बचाने में होती है क्योंकि शहीद जवानों का अपना निजि कोई विवाद नक्सलियों से नहीं होता, जवानों की शहादत देश की कानून व्यवस्था बनाये रखने में अपने प्राणों की कुबार्नी के रूप में इस धरती के ऊपर कुर्बान कर दी जाती है।

देश की एकता और अखण्डता तथा कानून व्यवस्था को चुनौती देने वालों के विरूद्ध हमारे जवान डट कर मुकाबला करते हैं। जिसके परिणाम से इस देश का प्रत्येक नागरिक वाकिफ है क्योंकि कन्याकुमारी का जवान कश्मीर की धरती पर देश की रक्षा एवं सुरक्षा करता हुआ दिखाई देता है तथा तमाम प्रदेशों के जवान नक्सली क्षेत्र में नक्सलियों से लोहा लेते हुए दिखाई देते हैं जिनका उद्देश्य संविधान की रक्षा करना है। तो नक्सली कुंदन पाहन जोकि जवानों का हत्यारा है, उसे सरकार ने प्रोत्साहित किया तो यह गंभीर विषय है इससे देश में क्या संदेश जायेगा, आम जन-मानस के मन में क्या स्थति बनेगी, युवाओं के हृदय के अंदर कौन-कौन से विचारधारा जन्म लेना आरंभ कर देगी जिसकी कल्पना एवं अनुमान लगाना शायद संभव नहीं है। कुंदन पाहन को प्रोत्साहित क्यों किया गया कहीं समाज में इससे गलत प्रभाव तो नहीं पड़ेगा, यह सोचने, समझने, एवं चिंतन एवं मनन करने का विषय है क्योंकि देश की अधिकतर आबादी युवा जनसंख्या के रूप में है।

एक बड़ा प्रश्न जो कि वर्तमान समय में सबसे गंभीर एवं चिंता जनक है जिसे रोजगार कहा जाता है, वर्तमान समय में युवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण विषय “रोजगार” है जोकि सबसे विकट समस्या है, देश का अधिकांश युवा बेरोजगारी के दल-दल में फंसा हुआ है। सम्पूर्ण धरती पर बढ़ते हुए अपराध जैसे लूट, छिनौती, चोरी, डकैती एवं अपहरण जैसे जघण्य अपराधों ने अपने पैर सम्पूर्ण धरती पर तेजी से पसारने आरम्भ कर दिए हैं, जिसका रूप सम्पूर्ण रूप से आज प्रत्येक देश के अंदर दिखाई देता है जोकि आकड़ों के माध्यम से बेरोजगारी के रूप में उभरकर सामने आता है। यदि शब्दों को बदल दिया जाय तो अधिकांश युवा बेरोजगारी के संकट से जूझते-जूझते थक जाता है और साहस जवाब दे देता है लगातार आर्थिक स्थिति में गिरावट एवं बढ़ती हुई महंगाई का चक्र इसी के मध्य युवा पिसता हुआ चला जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप साहस जवाब दे देता है, जिसके परिणाम से सम्पूर्ण विश्व अवगत है। तो ऐसी नीति एवं फैसलों को क्या समझा जाए इस फैसले को किस मानक के माध्यम से मापा जाए जिससे सम्पूर्ण स्थति स्पष्ट हो जाए एवं चिंता दूर हो जाए। क्योंकि इस फैसले को यदि जम्मू की धरती की ओर ले जाते हैं तो जम्मू की राजनीति पर भी धनवर्षा का रूप स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जैसे कि किसी दर्पण के माध्यम से देखा जाए, क्योंकि कश्मीर के पत्थरबाजी में जो खुलासे हुए हैं वो आश्चर्यचकित कर देने वाले एवं चैकाने वाले तथ्य हैं| क्योंकि उसमें भी धन की वर्षा का खेल खेला जा रहा है जिसका माध्यम हमारा पड़ोसी देश है, जो कि अमन चैन एवं शांति के विरूद्ध बेरोजगार युवाओं को पैसे देकर पत्थरबाजी करवाता रहता है।

तो क्या मान लिया जाए कि इस धन वर्षा के खेल से ही सारे समीकरण सिद्ध होंगे एवं देश के अंदर अमन चैन एवं शांति स्थापित हो पायेगी अथवा रोजगार की भी आवश्यकता है। इसे गंभीरता से सोचने-समझने एवं चिंतन तथा मनन करने की आवश्यकता है, क्योंकि धन वर्षा के खेल के परिणाम काफी घातक है देश की आबादी युवा जनसंख्या अधिक है जिसको रोजगार की आवश्यकता है एक अच्छे भविष्य के मार्ग की रूप रेखा तैयार करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।

इस धन वर्षा के खेल से यदि युवाओं का ध्यान रोजगार की तरफ से हटकर धनवर्षा के ऊपर केन्द्रित हो गया तो देश की स्थिति को संभालना अत्यंत दुर्लभ हो जायेगा विकराल समस्या सामने आकर एक पर्वत के रूप में खड़ी हो जायेगी क्योंकि धन की सभी को आवश्यकता होती है यदि युवाओं को रोजगार नहीं दिया गया और भविष्य की रूप रेखा की दिशा में विश्वश्नीय आवश्यक कदम नहीं उठाये गये तो परिणाम आश्चर्यचकित करने वाले हो सकते हैं। यदि युवाओं ने अपना मार्ग बदल लिया और धनवर्षा की तरफ गतिमान हो गये तो कल्पना किजिए की देश की स्थिति उस समय किस रूप में उभर कर सामने आयेगी।

आज कुंदन पाहन नामक नक्सली को पन्द्रह लाख रुपए से प्रोत्साहित किया जाता है जबकि वह एक कुख्यात है जिसके ऊपर भारत के रक्षक जवानों का हत्या का आरोप है और उसे हम गौरवपूर्ण सम्मान देते हुए प्रोत्साहित करते हैं। तो कहीं देश का एक बड़ा हिस्सा जो युवा होने के साथ-साथ बेरोजगारी नामक गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो यदि यह बेराजगार युवा इसी धन-वर्षा को अपना रोजगार समझ बैठा तो देश की तस्वीर एक दिन में ही अत्यधिक संवेदनशील हो जाएगी क्योंकि नेताओं की आंख जब खुलेगी तो नई सुबह का सूर्य नये अध्याय लिखता हुआ आकाश पर दिखाई देगा।

अत:किसी भी जवान की हत्यारे को प्रोत्साहित करना सम्भवत: उचित नहीं होगा वह भी पूरे पन्द्रह लाख रुपए के साथ सह-सम्मान सहित यह अत्यधिक गंभीर एवं जटिल प्रश्न है जिसको समझना कठिन ही नहीं असम्भव है अत: इस दिशा में पुन:विचार करने की अतिशीघ्र आवश्यकता है की देश के अंदर गलत संदेश न जाए एवं देश के जवानों के हृदय को चोट ना पहुंचे इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।

गौरतलब है की झारखण्ड सरकार ने कुंदन पाहन के लिए पहले भी पन्द्रह लाख रूपये की राशि निधार्रित की थी  जिसमें उच्च न्यायलय ने इस मामले में स्वय हस्तक्षेप करते हुए एवं नोटिस लेते हुए कहा था कि कुंदन पाहन को दी जाने वाली राशि तो स्वतंत्रता संग्रम सेनानी एवं देश के तिरंगे के ऊपर अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों को भी नहीं मिलती, जबकि कुंदन पाहन एक बड़ा एंव कुख्यात अपराधी है जिसके ऊपर अपराधों की एक लम्बी चौड़ी सूची पूरे 128 अपराधिक मुकदमों से पटी हुई है।

कुंदन पाहन के ऊपर पूर्व मंत्री की हत्या का आरोप है अनेकों पुलिस अफसरों की हत्या का आरोप भी कुंदन पाहन के ऊपर है, जिसमें डी एस पी रैंक से लेकर तमाम इंस्पेक्टर एवं अन्य व्यक्तियों की हत्याओं के मुकदमें उस पर दर्ज हैं, ज्ञात हो की यह कुंदन पाहन नामक अपराधी अत्यधिक कुरूर है, जिसने इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार का गला छूरी से बीच सड़क पर सबके सामने रेता एवं काटा था, जिसकी क्रूरता एक गंभीर अपराध की श्रेणी में नया अध्याय स्वयं लिखती है।

ज्ञात हो की कुंदन पाहन नामक अपराधी की अपराध की दुनिया का आंकलन  इस बात से लगाया जा सकता है कि रांची से टाटा नगर रोड पर यात्रा के दौरान यात्री दहशत में रहते थे रात के समय वाहनों के चक्के थम जाते थे, इस मार्ग पर रात के समय में कोई भी साधारण व्यक्ति अथवा विशेष व्यक्ति भी यात्रा नहीं करता था, क्योंकि कुंदन पाहन के आंतक का खौफ पूरे क्षेत्र में फैला हुआ था, शाम ढलते ही बुंडू एवं तमाड़ के बजार तुरंत बंद हो जाते थे, हालात इतने गंभीर थे की कोई भी पुलिस का वरिष्ठ अधिकारी भी रात के समय में इस मार्ग से यात्रा कदापि नहीं करता था। यदि यात्रा करनी अतिआवश्यक हो जाती थी तो नामकुम एवं तमाड़ थाना क्षेत्र की सीमा से लगी सड़कों पर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की बटालियन लाईन लगाकर तैनात की जाती थी, भय इस बात का रहता था की कुंदन पाहन का गैंग सड़क पर आकर फाईरिंग करना आरम्भ न कर दे|

सन् 2009 में  इंस्पेक्टर फांसिस इंदवार का अपहरण एवं हत्या से पुलिस प्रशासन के कान खडे हो गये थे। आईपीएस प्रवीण सिंह को रांची का एसएसपी बनाया गया तमाड़ घाटी एवं अड़की तथा बुंडू एवं सुदूर गांव में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैम्प खोले गये, जिसके बाद पुलिस ने बुंडू, तमाड़ एवं अड़की इलाके में कुंदन पाहन के गैंग के विरूद्ध लगातार कई बड़े अभियान चलाये, कई बार पुलिस एवं कुंदन पाहन के बीच मुठभेंड हुई जिसमें जिन ग्रामीणों पुलिस की तनिक भी सहायता की थी उनको कुंदन पाहन के द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। कुंदन पाहन अपराध जगत का एक क्रुरूर नाम है।

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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