लिटरेचर लव

टेक ओवर (कहानी)

1.

“एक पुरुष और एक महिला के बीच की केमिस्ट्री को कोई नहीं समझ सकता। दुनिया का सबसे रहस्मय संबंध यही है,” अपने चश्मे को रुमाल से पोछते हुये जयंत ने कहा और फिर उसे टेबल पर पड़े अखबार के बंडल पर रख दिया। चश्मे के बगैर उसकी आंखे न्यूज रूम से आने वाली लाइटों की वजह से चुंधिया रही थी। “महिलाओं के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?” अपनी आंखों को हथेलियो से मलते हुये उसने राज से पूछा, जो ठीक उसके सामने बैठा हुआ था।

“अच्छी लगती हैं,” राज ने सहजता से जवाब दिया।

“अच्छी लगती है ! यह तो चलताऊ जवाब हुआ। महिलाओं को लेकर अभी तक तुम कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हो?”

“महिलाओं के बारे में एडोल्फ हिटलर की एक उक्ति ने मुझे काफी प्रभावित किया है, और लगता है कि मैं अचेतन रूप से आज भी उस पर अमल करता हूं, वैसे किसी महिला के साथ गहरे संपर्क में आने का मुझे अभी तक कोई मौका नहीं मिला है और न ही मैंने जरूरत समझी,” अपने माथे पर बल देते हुये राज ने कहा। जब भी वह अपने माथे पर बल देता था उसके ललाट पर एक साथ पांच लकीरें उभर आती थी।

“हिटलर  क्या कहता था महिलाओं के बारे में?”

“महिलाएं कमजोर पुरुषों पर शासन करने के बजाय शक्तिशाली पुरुषों के सामने झुकना पसंद करती है।”

तभी टेबल पर रखा हुआ जयंत का फोन बज उठा। फोन को अपने हाथ में उठाते हुये उसने राज से कहा, “माई वाइफ”.

फिर टेबल पर चश्मे को उठाकर उसने अपने आंख पर सेट किया और अपने शरीर को कुर्सी पर पूरी तरह से ढीला छोड़ कर फोन को अपने कान से लगाते हुये बोला, “हां बोलो।” राज उठकर जाने लगा तो उसने उसे अपने हाथों से बैठने का इशारा किया।

“यार तुम औरतों के शब्दकोष बहुत ही सीमित होते हैं…अब पर्दा खरीदना है तो तुम खुद बाजार चली जाओ, मेरी क्या जरूरत है?….ओके ओके…मैं किसी को भेज देता हूं, मार्केटिंग करा देगा।… ठीक है अनिल को ही भेज देता हूं…वैसे भी तुम दोनों की पसंद काफी मिलती है। ओके टेक केयर बाय..”, फोन पर अनिल का नंबर मिलाते हुये उसने राज को देखा, जो एक मैगजिन के पन्ने पलट रहा था।

“यार मेरी वाइफ तुम्हें खोज रही है, उसे पर्दे खरीदने है। और तुम तो जानते ही हो इन मामलों में मैं कितना नकारा हूं।….अरे वह तैयार होकर बैठी है तुम चले ही जाओ….वैसे भी आज तुम्हारी छुट्टी है। और हां, कल सुबह दस बजे बोर्ड की मीटिंग है, तुम आ जाना….थैंक्यू”, फोन पर सुनील से बात करने के बाद जयंत एक बार फिर राज से मुखातिब हुआ।

“रूसो कहता है आदमी स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन सभी जगह जंजीरों में जकड़ा होता है। औरत आदमी की सबसे बड़ी जंजीर है। और मजे की बात है कि यह जंजीर औरतों पर हुकूमत करने के लिए खुद आदमी ने ही पहना है। दुनिया की सारी व्यवस्थाओं चाहे वो धार्मिक हो, राजनीतिक हो, आर्थिक हो, सामाजिक हो, या फिर सांस्कृतिक हो सबको आकार देने का काम आदमी ने ही किया है, और इन व्यवस्थाओं में औरतों को हासिये पर ढकेलने के लिए पूरी जुगत लगा दी। लेकिन वैवाहिक व्यवस्था को स्थापित करके वह खुद फंस गया। खैर छोड़ो इन बातों को, आजकल चैनल में खुसर-फुसर बहुत हो रहा है, क्यों ? टीवी 24 के बिकने की बात हो रही है। यहां काम करने वाले हर इंसान के चेहरे पर एक सवाल चस्पा है, कि भविष्य में क्या होगा। ”

“कल इसी को लेकर कैंटिन में बहस हो गई थी। कुछ लोग कह रहे थे कि सौदा तय हो गया है, बस ग्लोबल नेटवर्क इसे टेक ओवर करने वाला है, जबकि कुछ लोग कह रहे थे कि अभी बात चल ही रही है। लेकिन दोनों पक्षों में इस बात को लेकर कोई कंफ्यूजन नहीं था कि अब टीवी 24 आगे चल पाएगा। सभी यह मान कर चल रहे हैं कि इसका बिकना तय है। बस समय को लेकर सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं,” राज ने जयंत की आंखों में झांकते हुये कहा।

“इसलिए लोग अब कंटेंट पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, वैसे चैनल हेड तो मैं ही हूं इसलिए यह मेरी जिम्मेदारी है कि कंटेट बेहतर जाये, लेकिन अफवाह के इस दौर में सबकुछ ठीकठाक से कर पाना मुश्किल होता है। सुना है तुम भी कहीं और नौकरी देख रहे हो? ”

“जबतक तुम यहां हो मैं तो रहूंगा ही. और इतनी आसानी से नौकरी मिलती कहां हैं…तुम तो जानते ही हो”

“यही तो मीडिया की त्रासदी है, कब किसका विकेट खिसक जाये कुछ पता नहीं होता….मालिकानों के दिमाग का पता ही नहीं चलता। एक साल पहले उन्होंने चैलन के शुरुआत में कहा था कि इसे नंबर वन पर लाना है। मैंने जी तोड़ मेहनत की। और आज चैनल नंबर चार पर पहुंच गया। अब इसके बिकने की बात होने लगी। पता नहीं क्या होगा, वैसे तुम्हें कहीं अच्छी जगह नौकरी मिल रही है तो तुम निकल लो। कैप्टन तो अंत अंत तक डूबती जहाज को नहीं छोड़ता है।”

“आफर तो है, लेकिन मेरे लायक काम नहीं है।”

“क्यूं”

“मीडिया में मुझे तुम लेकर आये थे, तो थोड़ा सा काम करने का अंदाज बदल गया है…अब डेस्क पर बैठक कर कुर्सी तोड़ना अच्छा नहीं लगता… और जब तक तुम यहां हो तब  तक तुम्हारे साथ ही रहूंगा।”

“यार इस मानसिकता को गोली मारो, मौका मिले तो मुझे भी हलाल करके आगे बढ़ जाओ। तरक्की का रास्ता यही है।”

“मुझे नहीं चाहिये ऐसी तरक्की,”

“अच्छी बात है, फिर झक मारो मेरे साथ, अब जाओ अपना काम देखो, मुझे कल की मीटिंग की तैयारी करनी है,” यह कहते हुये जयंत टेबल पर पड़े हुये एक फाइल को उठाकर उसमें पड़े हुये पन्नों को देखने लगा। अपनी कुर्सी से उठते हुये राज ने कहा, “एक बात कहना चाहता हूं, बुरा मत मानना। तुम्हारी वाइफ निशा और अनिल को लेकर भी लोग उल्टी सीधी बात करने लगे हैं। तुम्हारे बाद अनिल यहां सेकेंड मैन बन गया है। प्रबंधन के साथ उसने बेहतर संबंध बना रखे हैं, उसकी शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। ”

“मार्क्स एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है जिसमें कोई भी शक्ति भी किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी पुरुष के सामने समर्पण करने के लिए बाध्य न करे। यदि उन दोनों के संबंध बढ़ रहे हैं तो आपसी सहमित से ही बढ़ रहे होंगे। फिर मेरा विरोध कोई मायना नहीं रखता। और जहां तक बात करने वाले लोगों की बात है तो गॉसिप का न तो कोई सिर होता है और न पुंछ। फिर ऐसी बातों पर अपना समय जाया क्यों किया जाये। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। एक बात और दुनिया की कोई भी शक्ति न तो किसी स्त्री को किसी पुरुष से प्यार करने से रोक सकती है और न किसी पुरुष को किसी स्त्री से प्यार करने से। धर्म व नैतिकता कच्ची दीवार के सिवा कुछ नहीं है,” जयंत ने कहा और फिर फाइल में पड़े हुये पेपर देखने लगा। राज को पता था कि जयंत एक लॉजिकल इंसान है और लगभग हर चीज पर उसकी एक स्पष्ट सोच है। उसे कन्वींस करना मुश्किल है। वह चुपचाप जयंत के शीशे के चैंबर से बाहर निकल गया।

2.

एक फ्रेश बाथ लेने के बाद रात के ग्यारह बजे जब जयंत अपने बेडरूम में दाखिल हुआ तो निशा गुलाबी रंग की साड़ी पहने अपने आप को ड्रेसिंग टेबुल में निहार रही थी। बेड पर कपड़ों के कई छोटे-बड़े पैकेट पड़े हुये थे। उसकी तरफ ध्यान न देकर जयंत कमरे के एक कोने में रखे एक छोटे से बुक सेफ की तरफ गया और उसमें से अज्ञेय की पुस्तक नदी के द्वीप निकाल कर बेड पर लेट गया। निशा बुरी तरह से कुढ़ गई। उसे लगा कि जयंत जानबूझकर उसकी अवहेलना कर रहा है।

“घर पर आये नहीं कि किताब से चिपक गये, मेरी तो लाइफ ही बर्बाद हो गई। पता नहीं क्या सोच कर मैंने तुमसे शादी की थी, ” निशा ने भड़कते हुये कहा।

“तुम्हें तो पता है मैं दिन भर खबरों और मीटिंग में उलझा रहता हूं, खबरों से फुर्सत मिलती है तो मीटिंग और मीटिंग से फुर्सत मिलती है तो खबरें, बस रात में सोने से पहले समय मिलता है लिटरेचर पढ़ने की। और मैं अपनी पूरी शक्ति से दिन भर इसलिए काम कर पाता हूं कि रात में मुझे कम से कम एक घंटा तो अपने मनपसंद साहित्यकार को पढ़ने का मौका मिल ही जाएगा। मेरे ऐसा करने से तुम्हारी लाइफ कैसे बर्बाद हो गई है?,” जयंत ने हंसते हुये कहा। कभी जयंत की इस हंसी पर निशा कुर्बान होती थी, लेकिन आज यह हंसी उसके दिल में नश्तर की तरह चुभ सी गई।

“तुम कैसे आदमी हो ? मैं दिन भर अनिल के साथ रही, तुमने एक बार भी पूछा कि मैंने क्या-क्या किया, एक बार भी तुमने जानने की कोशिश की कि पर्दों का रंग कैसा है, और मेरी यह नई साड़ी कैसी है? उफ! तुममे तो प्रेम नाम की चीज ही नहीं है, तुम लिटरेचर क्या खाक पढ़ोगे और खाक समझोगे? एक औरत के दिल को तो समझ ही नहीं सकते। ”

“तो तुम चाहती हो कि मैं तुमसे सवाल करूं, तुम्हारी साढ़ी की तारीफ करूं। लेकिन इस फार्मेलिटी का तुक क्या है? प्यार में तो लोग सहज होते हैं, फार्मल नहीं। और प्यार में विश्वास होता है। मैं तुमसे कुछ नहीं पूछता हूं क्योंकि मुझे तुमपर विश्वास है।”

“धोखा खाओगे, और मैं ऐसा नहीं चाहती।”

“मैं तुमसे इतना ही कहूंगा कि तुम खुद को धोखा मत देना।  जब हम सच से मुंह मोड़ते हैं तो खुद को धोखा देते हैं।”

“तुम्हें सच अच्छा लगता है? सच सुन सकते हो, हिम्मत है? ”

निशा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा।

“सच सुनने, जानने और दिखाने के लिए तो मैं हमेशा तैयार रहता हूं।”

“ये मेरा बेडरूम है, तुम्हारा न्यूज रूम नहीं, और सच सुनने का इतना ही शौक है तो सुनो….मैं अनिल से प्यार करती हूं और अनिल भी मुझसे प्यार करता है। और अब मैंने फैसला कर लिया है कि मैं उसके साथ रहूंगी। ये साड़ी आज उसी ने मुझे खरीद कर दी।”

कुछ देर तक मौन रहने के बाद जयंत ने कहा, “ये तो अचछी बात है कि तुम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हो। अब ये बताओ कि मैं क्या कर सकता हूं।”

“मुझे तलाक दे दो।”

आधे घंटे बाद निशा दूसरे कमरे में जार-जार होकर रो रही थी, और जयंत की नजरें टेबल लैंप के मध्यम लाइट में अज्ञेय के शब्दों को टटोल रही थी, “ हैपिनेस तो एक कल्पना है- या उस अवस्था का नाम है जिस में हम अपनी जरूरत को अभी जानते नहीं हैं। इन्सान के लिए हैपिनेस नहीं है,……..लेकिन गृहस्थ-जीवन में दूसरे तरह की बात सोचनी चाहिए न….उसका आधार है स्थायित्व….. ”

3.

सुबह मीटिंग में जयंत कुछ देर से पहुंचा। बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के सभी लोग अपनी कुर्सी पर जमें हुये थे। अनिल को भी इस मीटिंग में बैठने का आमंत्रण मिला था और पुरी तैयारी के साथ हॉल में दाखिल होने वाला पहला व्यक्ति था। जयंत की आंखों में लाली छायी हुई थी। रातभर वह भले ही अज्ञेय को पढ़ता रहा था लेकिन उसके अचेनत में निशा के कहे हुये शब्द किसी बेलगाम घोड़े की दौड़ रहे थे और अपने जेहन में वह एक टीस सी महसूस कर रहा था। सभी लोगों का अभिवादन करने के बाद जयंत अनिल के बगल में पड़ी खाली कुर्सी पर बैठ गया।

“भाई आप तो अब बड़े पत्रकार हो गये हैं, बोर्ड आफ डायरक्टर्स को आपका इंतजार करना पड़ता है,” रमेश गुप्ता ने चुटकी ली।

“सॉरी सर, दरअसल रात में मैं देर तक पढ़ता रहा, जिसकी वजह से सुबह उठ नहीं सका, ” जयंत ने कहा।

“संस्थान में ओवर स्टाफ है, इसके बावजूद हम नंबर 4 पर ही अटके हैं। ऐसे कैसे चलेगा ? हमारा लक्ष्य था एक साल में नंबर वन पर आने का, ” सुरेंद्र चड्डा ने कहा।

“ कम रिसोर्स में हमलोगों ने बेहतर काम किया है, आज इस चैनल की एक मजबूत पहचान तो बन ही चुकी है। यहां आदमी कम पड़ रहे हैं आप कह रहे हैं संस्थान में ओवर स्टाफ है। तमाम ब्यूरो स्टिंगरों के सहारे चल रहे हैं। अब स्टिंगरों से हम कितनी उम्मीद कर सकते हैं। कई बार मैं कह चुका हूं कि ब्यूरों में रिपोर्टरों और कैमरा मैन की नियुक्ति किजीये, लेकिन इस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है ” जयंत ने कहा।

“तो आप यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि चैनल में ओवर स्टाफ है?,” चड्डा ने सवाल किया।

“जी नहीं, मैं तो यह कहूंगा कि कुछ नियुक्ति और की जाये. रिसोर्स में भी हम कमजोर साबित हो रहे हैं, नंबर वन पर आने के लिए जरूरी है कि पहले हम नंबर चार, नंबर तीन और नंबर दो को पछाड़े, हमलोग मात्र दो ओबी से काम चला रहे हैं जबकि उनके पास पांच-पांच ओबी है। अब इतने संसाधन में इससे अच्छा रिजल्ट और क्या हो सकता है। कुछ दिनों से एक नई प्रोब्लम खड़ी हो गई है।”

“आपके पास तो सिर्फ प्राब्लम ही प्राब्लम है….खैर,फरमाइये?” चड्डा ने पूछा।

“चैनल के बिकने की अफवाह फैल रही है, लोग काम कम और इस बारे में बातें ज्यादा कर रहे हैं,” जयंत ने कहा।

“आपको पता होना चाहिये कि ऐसे लोगों से कैसे निपटना है, ऐसे लोगों की सूची तैयार किजीये और हटाइये.”

“यही तो मैं नहीं चाहता, बेहतर होगा कि आपलोग खुद उनको विश्वास दिलाये कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है।”

“हमें पता है हमें क्या करना है, इन चीजों से आप खुद निपटे…अब कैसे निपटेंगे आप बेहतर जानते हैं। एनीवे आपकी मेहनत और लगन की हमलोग कद्र करते हैं…कैरी आन। एंड थैंक्स ए लाट फोर योर प्रजेंस.”

मीटिंग के खत्म होते ही जयंत अपनी कुर्सी पर आकर जम गया। थोड़ी देर बाद अनिल उसके चैंबर में दाखिल हुआ।

“तुम्हें बेरुखा नहीं होना चाहिये था। वे लोग छटनी करना चाह रहे हैं, करने दो,” सामने की कुर्सी पर बैठते हुये अनिल ने कहा।

“वे लोग जो चाहेंगे करेंगे ही, लेकिन मैं अपने कांधे पर बंदूक रखकर गोली नहीं चलाने दूंगा। जिनलोगों को मैं यहां लेकर आया हूं उनके प्रति मेरी जिम्मेदारी थी। कई लोग तो बेहतर चैनलों में काम कर रहे थे, मेरे कहने पर यहां आये। अब मैं उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दूं, मैं यह नहीं कर सकता,” अंतिम वाक्य पर जोर देते हुये जयंत ने कहा।

“ऐसे में तो ये लोग तुम्हें निकाल फेंकेंगे, और उसके बाद उन लोगों को भी जिन्हें तुम यहां लेकर आये थे…इससे बचने का बस एक ही रास्ता है, जितने लोगों को तुम बचा सकते हो बचाओ, बाकी से हाथ जोड़ो.. ”

“तो क्यों न शुरुआत तुम्हीं से की जाये….क्या तुम इस्तीफा देने के लिए तैयार हो? इस चैनल में तुम्हें भी मैं ही लेकर आया था…”

“तुम जानते हो कि मैनेजमेंट की नजर में मेरी इमेज अच्छी है। मेरा इस्तीफा तुम पर भारी पड़ सकता है… ”

“तुम मुझे धमका रहे हो…?”

“नहीं, समझाने की कोशिश कर रहा हूं…लंबे समय तक तुम्हारे साथ रहा हूं…तुम्हारा बुरा नहीं चाहूंगा…”

“छोड़ो इन बातों को….न मैं तुम्हारा इस्तीफा ले सकता हूं और न किसी और का….निशा को लेकर तुम्हारे मन में क्या चल रहा है..?”

अचानक जयंत के मुंह से निशा का नाम सुनकर अनिल थोड़ा असहज हो गया और अपने आप संभालने की कोशिश करने लगा। उसकी इस स्थिति को देखकर जयंत ने कहा, “ तुमसे इतनी तो उम्मीद कर सकता हूं कि तुम मुझे सबकुछ सच सच बताओगे।”

“मैं उससे प्यार करने लगा हूं….”

“वह है ही इतनी अच्छी कि कोई भी उससे प्यार करने लगे…सिर्फ प्यार ही करते हो या आगे भी कुछ चाहते हो…कल निशा ने मुझे बहुत कुछ बताया है, लेकिन मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं… ”

“हमदोनों साथ-साथ रहना चाहते हैं, शादी करके…”

“तो मुझे उसे डाइवोर्स दे देना चाहिये, क्यों ?” जयंत से इस सवाल के लिए अनिल जेहनी तैर पर तैयार नहीं था। उसने अपनी नजरें नीचे झुका ली।

“मेरे सवाल का सीधा जवाब दो…”

“अब बिना डाइवोर्स के हम शादी तो नहीं कर सकते ना….”

“ठीक है, तुमलोग शादी की तैयारी करो, मैं डाइवोर्स दे दूंगा…और हां अपनी शादी में मुझे जरूर बुलाना…तुम लकी हो…मैं निशा को ठीक से संभाल नहीं सका….मेरी जिंदगी खबरों में ही उलझ कर रह गई….बेस्ट आफ लक,” जयंत ने अपना हाथ अनिल की तरफ बढ़ाया। “उम्मीद है तुम उसे खुश रखोगे…”

4.

दूसरे दिन एचआर प्रमुख नताशा ने पंद्रह लोगों को अपने केबिन में बुलाया और उनका हिसाब पूरा कर दिया, तीसरे और चौथे दिन भी दस लोगों की छुट्टी की गई। यह सिलसिला अगले सात दिनों तक जारी रहा और सात दिनों में अलग अलग डिपार्टमेंट से कुल साठ लोग हटाये। जैसे-जैसे लोग हटाये जा रहे थे वैसे-वैसे अनिल की धमक संस्थान में बढ़ती जा रही थी।

जयंत लंबी छुट्टी पर चला गया और निशा को उसने तलाक दे दिया। अचानक एक दिन अखबारों में खबरें छपी की कि टीवी 25 का अधिग्रहण ग्लोबल नेटवर्क ने कर लिया है। संस्थान में अनिल की स्थिति जस की तस बनी रही, चैनल हेड के तौर पर दिव्याल को लाया गया, जो खुद भी ग्लोबल नेटवर्क में शेयर होल्डर था। वह अपने साथ पांच लोगों की एक नई टीम लेकर आया और देखते ही देखते चैनल का नाम और लोगो सबकुछ बदल गया।

जयंत की छुट्टी समाप्त होने पर एचआर प्रमुख नताशा ने उसे फोन करके दफ्तर में बुलाया और कहा, “आप कंटिन्यू कर सकते हैं, आपको लेकर कोई प्राब्लम नहीं है। बस आप चैनल हेड नहीं रहेंगे, बाकी आप जो डिपार्टमेंट चाहे ले सकते हैं, मेरी बात हो गई है दिव्याल साहब से….वह चाहते हैं कि आप यहां बने रहे… ”

“नौकरी बहुत कर ली…अब थोड़े दिन आराम कर लूं…”

अपना इस्तीफा देकर जैसे ही जयंत चैनल के बाहर निकला, सामने से आता हुआ राज उससे मिल गया। कुछ देर पहले भारी बारिश की वजह से चारों तरफ पानी ही पानी था। अभी भी हल्की-हल्की बारिश हो रह थी। राज लपककर उसके पास आया, “तुम भी हद हो यार…”

“अभी तक तुम यहां बने हुये हो, तुम्हारी छटनी नहीं हुई…बच गये ?”, जयंत ने मुस्कराते हुये पूछा।

“अनिल ने मेरा फेवर किया…वो चाहता है तुम भी यहीं बने रहो… ”

“बहुत देर हो गई….आजादी की कुछ सांसे ले हूं…मुद्दत के बाद बड़ी मुश्किल से मिली है यह आजादी….वी आल आर स्लेव टू आवर डिजायर…नाऊ आई हैव नो डिजायर, सो आई एम फ्री…”

तभी उसके बगल से एक कार गुजरी, ड्राइविंग सीट पर निशा बैठी हुई थी। थोड़ी देर के लिए जयंत की नजरें निशा से मिली लेकिन निशा ने ब्रेक दबाना मुनासिब नहीं समझा। कार सरसराती हुई कैंपस के अंदर दाखिल हो गई।

“रोज दफ्तर आती है और शाम को अनिल को पीकअप करती है….” जयंत के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुये राज ने कहा।

“आई डोन्ट नो हाऊ टू होल्ड ए वुमैन,” जयंत ने कहा।

“इवेन यू डोन्ट नो हाऊ टू होल्ड ए मीडिया कंपनी….तुम्हारी आंखों के सामने टीवी 24 का टेक ओवर हो गया, और तुम देखते रहे….फोर व्हाट?”

“फोर ट्रूथ, मैंने खुद को टेक ओवर नहीं होने दिया,” इतना कह कर जयंत आगे बढ़ गया। सड़क बारिश के पानी से लबालब भरी हुई थी। उसके जूते पानी में डूबते थे और फिर निकलते थे। दूर तक निकल जाने के बावजूद लबालब पानी की वजह से सड़क पर उसके जूतों के कहीं कोई निशान नहीं थे।

समाप्त

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