नारी नमस्ते

दामिनी का दर्द…(कविता)

विनायक विजेता वरिष्ठ पत्रकार।

जनम लिया तब सब खुश थे,
मरी तो खुश थे सिर्फ दरिन्दे .
मम्मी -पापा की थी दुलारी,
खुशिओं से भरी थी मेरी अलमारी .
करती रही मैं मुद्दत पर मुद्द,
याद आई तुझे मेरी इज्ज़त .
डरा देने वाली थी तेरी हैवानिय,
शायद तेरे दिल में बिलकुल नहीं थी इंसानियत .
तेरी भूख, तेरी मस्ती,
और समुन्दर बीच थी मेरी कश्ती,
मदद बावजूद भी डूब गई मैं .

तेरी नीयत को नही पाई मैं भांप,
क्या सिर्फ यही था मेरा पाप .
या फिर क्या पाप है मेरा लड़की होना,
हर बात पर सिर्फ रोना .
इस बार मैं लडूंगी तेरे जैसो से भिडूगी

याद दिलाऊंगी तझे
जनमा है माँ से तू भी ,
वो भी लड़की थी और मैं भी .

होगी तेरी भी एक बहन ,
मेरे जैसा ही होगा उसका भी रहन-सहन
मुझमे उनकी छवि नहीं दिखती ,
तो इंसानियत ही देख लेता .

दिल तो पहले ही हो गया था चूर चूर
इस पर क्या बचा पता मुझे भारत या सिंगापुर .

जिन्दा थी तब जूँ नहीं रेंगी ,
मरने पर रो रहे हैं नेता ,अभिनेता .
मैं मरी हूँ सवा लाख आएंगी ,
तेरे जैसे को सबक सिखाएंगी .

अल्लाहमैं आखिरी हूँ काश ,
जो गुज़रे इस दर्द से
लड़कियन बची ही रहे
इस राक्षस जैसे मर्द से

editor

सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है, तमाम तंत्रों का निर्माण इस बेहतरी के लिए किया गया है। लेकिन कभी-कभी इंसान के हाथों में केंद्रित तंत्र या तो साध्य बन जाता है या व्यक्तिगत मनोइच्छा की पूर्ति का साधन। आकाशीय लोक और इसके इर्द गिर्द बुनी गई अवधाराणाओं का क्रमश: विकास का उदेश्य इंसान के कारवां को आगे बढ़ाना है। हम ज्ञान और विज्ञान की सभी शाखाओं का इस्तेमाल करते हुये उन कांटों को देखने और चुनने का प्रयास करने जा रहे हैं, जो किसी न किसी रूप में इंसानियत के पग में चुभती रही है...यकीनन कुछ कांटे तो हम निकाल ही लेंगे।

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