दो अखाड़े में राबड़ी, लालू की दोहरी रणनीति
पिता या पति किसी दल के सांसद तो पुत्र या पत्नी किसी दूसरे दल से बिहार विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार। पक्ष और विपक्ष की राजनीति में अपने परिवार का दखल बनाए रखने की रणनीति के कई उदाहरण हैं, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद एक साथ सत्ता और विपक्ष की भावी राजनीति की रणनीति बनाने में जुटे हैं। इसी के तहत अपनी पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को दो विधानसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाया गया है। ताकि सत्ता हासिल हो या विपक्ष में बैठना पड़े-नेतृत्व परिवार का ही हो। मुख्यमंत्री नहीं बन सके तो कम से कम प्रतिपक्ष के नेता के रूप में परिवार को मंत्री स्तर की सुख-सुविधा रहे।
मुख्यमंत्री बनने के लिए विधानसभा का सदस्य होना जरूरी नहीं है। विधायक दल के नेता पद का निर्वाचन ही काफी है। मुख्यमंत्री बनने के छह माह के अंदर सदन का सदस्य होना जरूरी है। जिस राज्य में (बिहार शामिल) विधान परिषद है तो रास्ता और आसान। नीतीश कुमार से लेकर राबड़ी देवी, लालू प्रसाद जैसे मुख्यमंत्री कई उदाहरण हैं। राजद-लोजपा गठबंधन ने घोषित कर रखा है कि सरकार बनी तो मुख्यमंत्री लालू प्रसाद होंगे।
राजद-लोजपा गठबंधन को बहुमत मिला या जोड़तोड़ का गणित काम आया तो विधानसभा का बिना सदस्य बने सांसद लालू प्रसाद को विधायक दल का नेता यानि मुख्यमंत्री बनाने में कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन बहुमत नहीं मिला और सरकार बनाने की स्थिति नहीं बनी तब गठबंधन (राजद-लोजपा) को विपक्ष में बैठना होगा। और ऐसी परिस्थिति बनी (जिसकी संभावना अधिक है) है तो राजद विधायक दल का या अगर गठबंधन को विरोधी दल नेता का पद मिला तो इस पद पर कौन होगा? यकीकन लालू प्रसाद को राबड़ी देवी के अलावा अपने दल के किसी अन्य नेता पर भरोसा नहीं है। विरोधी दल के नेता के पद पर राबड़ी देवी को पुन: काबिज कराने के लिए उनकी जीत जरूरी है। सरकार बनाने की स्थिति आई तो लालू प्रसाद के लिए कोई परेशानी नहीं है। लेकिन विपक्ष की राजनीति करनी पड़ी तो राबड़ी देवी की जीत को सुनिश्चित बनना जरूरी है। राघोपुर की बदलती हवा को देखते हुये ही लालू प्रसाद ने सोनपुर के सिटिंग विधायक रामानुज का टिकट काटा और राबड़ी देवी को इस मैदान में भी उतारने का फैसला किया। वैसे भी सोनपुर लाल प्रसाद की सीट रही है। वे वहां से विधायक रहे हैं और अपने पुत्र तेजस्वी को राजनीति का ककहरा सीखा रहे लालू प्रसाद को उसका भी भविष्य भी देखना है।
फिलहाल, राजद के भविष्य का आकलन करते हुये लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी को राघोपुर के साथ-साथ सोनपुर के मैदान में उतारा है। वैसे भी राघोपुर राबड़ी देवी की लोकप्रियता लगातार घट रही थी। वर्ष 2000 के आम चुनाव में जदयू की वीरा देवी को 61,217 के अंतर से पराजित करने वाली राबड़ी देवी को फरवरी 2005 के चुनाव में 25,261 मतों की बढ़त मिली जो छह माह बाद नवंबर 2005 में हुये चुनाव में यह घटकर मात्र 5,290 रह गयी। इस चुनाव में राबड़ी देवी को 35,891 और जदयू के सतीश कुमार को 30,601 वोट मिले।
बिहार की तीन टर्म मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी को पुन: किचेन में पहुंचाने का दावा करने वाले विरोधियों का मानना है कि पशुपालन घोटाले में फंसने के बाद लालू प्रसाद ने राबड़ी देवी को जुलाई 97 अचानक किचेन से निकाल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। विरोधियों का इसे अल्पज्ञान कहे या बड़बोलापन, क्योंकि राबड़ी देवी 1974 से राजनीति में सक्रिय हैं। यह जानकारी है विधानसभा द्वारा 2002 में प्रकाशित सदस्य परिचय में । हां, इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि 1974 में उनका विवाह जब लालू प्रसाद से हुआ तो विवाह के पूर्व या बाद में राजनीति में सक्रिय हुई।