पोलियो को भगाने की दिशा में बढ़ रहा भारत
नीतू नवगीत, पटना
लगातार कोशिश करनेवालों की हार नहीं होती । भारत ने पिछले कई सालों से पोलियों पर लगाम कसने के लिए लगातार कोशिशें की हैं । इन कोशिशों का सकरात्मक परिणाम निकला है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में पोलियो का पिछला मामला 13 जनवरी 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के पंचला प्रखण्ड में दर्ज किया गया था जब 2 साल की एक बच्ची को विषाणुजनित भीषण संक्रामक रोग पोलियो ने अपना शिकार बनाया था । उसके बाद के एक साल की अवधि में पोलियो का कोई और मामला सामने नहीं आया है । भारत उन गिने-चुने देशों में है जहां 2011 में पोलियो के मामले प्रकाश में आये । भारत के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाईजीरिया में पोलियो के विषाणु बच्चों पर आक्रमण करके उनके स्नायु तंत्र को कमजोर कर रहे हैं । प्रसन्नता की बात है कि भारत में जहां वर्ष 2009 में 741 बच्चे और 2010 में 39 बच्चे पोलियो के कारण विकलांग हुये थे वहीं 2011 में पोलियो का सिर्फ 1 मामला दर्ज किया गया । वह भी पहले महीने में ही ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय के दावों की जांच की जा रही है । जांच के बाद भारत को उन देशों की सूची से हटा लिया जाएगा जिसमें विश्व के सबसे ज्यादा पोलियोग्रसित देशों को रखा गया है । लेकिन पोलियो से पूर्णतः मुक्त देशों की श्रेणी में आने के लिए भारत में लगातार तीन सालों तक पोलियो का कोई मामला प्रकाश में नहीं आना चाहिए । इस मामले में अभी तक जो सफलता मिली है उससे यह भरोसा जगा है कि आनेवाले समय में भी पोलियो भारत में किसी और को अपना शिकार नहीं बना पायेगा। लेकिन चैन की बंसी भी नहीं बजायी जा सकती । पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान पोलियो के लिए विश्व के सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं । पाकिस्तान में पिछले साल पोलियो के 170 नये मामले सामने आये हैं।
भारत में पोलियो के खिलाफ मिली सफलता सरकारी तंत्र, गैर-सरकारी एजेंसियों और विश्व स्वास्थ्य संगठन की संयुक्त मुहिम का सुखद परिणाम है। राटरी संगठन युनिसेफ बिल एवं मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यू.एस. सेंटर फार डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए लगातार वित्तीय सहायता पहुंचाई । लेकिन असली सफलता राष्ट्रीय पोलिया टीकाकरण अभियान में लगे करीब 24 लाख कार्यकर्ताओं और 1.5 लाख पर्यवेक्षकों के समर्पण भाव से मिला, जिन्होंने करीब 20 करोड़ घरों में जाकर 5 साल से कम उम्र वाले करीब 17 करोड़ से अधिक बच्चों को जिंदगी के दो बूंद पिलाये । इस अभियान में रेलवे स्टेशनों, बस-स्टैड, ग्रामीण बाजारों और मजदूरों के कार्यस्थलों पर जाकर भी बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई गई । पूरे अभियान में 12 हजार करोड़ से अधिक का खर्च आया है लेकिन कार्यक्रम की सफलता को देखते हुये यह खर्च मामूली है । पोलिया उन्मूलन अभियान के दौरान भारत में टाईप 1 और टाईप 3 के पोलियो वायरस के खात्मे के लिए एक ही दवा का इजाद भी किया गया ।
वस्तुतः भारत में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम की सफलता से साबित हुआ है कि यदि सरकारी और गैर-सरकारी संस्थायें समान लक्ष्य तय कर उचित मार्ग-निर्देशन में प्रतिबद्धता के साथ कार्य करें तो मुश्किल से मुश्किल राह को आसान बनाया जा सकता है । भारत से पोलियो के वायरस की बिदाई के बाद खसरा, तपेदिक, डायरिया, इन्सेफ्लाईटिस और हेपेटाईटिस जैसी बीमारियों से बचाव के लिए भी समेकित अभियान चलाये जाने की आवश्यकता है । पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के दौरान कार्यकर्ताओं का जो विशाल नेटवर्क बन गया है । इस नेटवर्क को दूसरे अभियानों में लगाने पर अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। पोलियो उन्मूलन अभियान में लगी कई संस्थायें एच.आई.वी. जागरूकता अभियान में भी लगी हुई हैं । इस समूह को शिक्षा और स्वास्थ्य के दूसरे अभियानों में भी लगाया जाना चाहिए ।