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बिहार के विकास को नई उड़ान दे रहा है पुल निगम

प्रमोद दत्त, पटना

दृढ़ इच्छा शक्ति और लगन से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। बिहार राज्य पुल निर्माण निगम इसका बेहतर उदाहरण है। कभी घाटे में चल रहे पुल निगम को बंद करने की तैयारी चल रही थी, लेकिन आज यही निगम बिहार में विकास की नई कहानी लिख रहा है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बिहार राज्य पुल निगम उतार चढ़ाव के दौर से आगे निकलकर सूबे के विकास में अहम भूमिका निभा रहा है ।

जिन उद्देश्यों को लेकर बिहार राज्य पुल निगम की स्थापना की गई थी, समय के साथ वे उद्देश्य पीछे छूटते चले गये। पुल निगम एक रोगग्रस्त निकाय बन कर रह गया था और किसी ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया। राज्य में पुलों की कमी लंबे समय से महसूस की जा रही थी। पर्याप्त संख्या में पुलों के अभाव में सूबे में कई हिस्से अलग-थलग पड़े हुये थे। एक स्थान से दूसरे स्थान पर लोगों को आवाजाही के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। बिहार नदियों के मामले शुरु से काफी धनी रहा है, लेकिन इन नदियों पर पर्याप्त संख्या में पुल न होने की वजह से लोग एक दूसरे से कटे हुये से महसूस कर रहे थे। आजादी के बाद एक के बाद एक बिहार में बनने वाली हर सरकार सूबे में पुलों की कमी को लेकर चिंतित थी। आखिरकार बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड की स्थापना कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत 11 जून 1975 को पथ निर्माण विभाग के एक संकल्प के तहत हुई। पुल निर्माण निगम की स्थापना के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे-

  • पुल एंव क्रास ड्रेनेज कार्य का अनुरक्षण, सर्वेक्षण व निर्माण
  • पुलों पर पथकर संग्रह करना
  • पुलों के निर्माण व सर्वेक्षण के लिए वित्तीय स्रोतों से राशि उपलब्ध कराना
  • वित्तीय स्रोंतो में व्यवसायिक बैंक भी शामिल थे-

जिन उद्देश्यों को लेकर पुल निर्माण निगम की स्थापना की गई थी वे उद्देश्य देखते-देखते काफी पीछे छूट गये और यह निगम लूट-खसोट के संयत्र में तब्दील हो गया था। अव्यवस्था और अराजकता ने इसे अपने गिरफ्त में लिया था। शुरुआती दौर में कुछ काम हो हुये लेकिन बाद में सब कुछ चरमराने लगा। निगम की अव्यवस्थित कार्य प्रणाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1989-90 के दौरान निगम के पास 49 परियोजनाएं निर्माधीन थी, जिसमें से वर्ष 89-90 में सिर्फ पुल को ही यातायात के लिए खोला गया। सूबे में पुलों के निर्माण में तेजी आने की संभावना पुल निर्माण निगम के स्थापना से दिखी थी वो धूमिल होने लगी। इसके लिए अकुशल प्रबंधन भी खासतौर पर जिम्मेदार था, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।

पुल निर्माण निगम के रोगग्रस्त होने के लक्षण बहुत पहले ही दिखने लगे थे, लेकिन इसको देखने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई। विभागीय समर्थन के बावजूद निगम घाटा में जा रहा था, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत थी।  वर्ष 1989-90 में ही 21 परियोजनाओं का काम पुल निर्माण निगम को पथ परिवहन विभाग से मिला। सरकार से प्राप्त आवंटन 178.56 लाख था, जबकि कुल व्यय 336.72 लाख रहा। इसके साथ ही वर्ष 89-90 के दौरान 29 पुलों पर 137.40 लाख रुपया पथकर के रूप में संग्रह किया गया। वर्ष 89-90 में निगम का टर्न ओवर 423.59 लाख रुपये तथा हानि 64.52 रुपये थे। बाद के दिनों में घाटे का फासला बढ़ता ही गया।

लालू-राबड़ी की कार्यकाल में तो पुल निगम की स्थिति अत्यंत ही दयनीय हो गई थी। जिस तरीके से निगम लगातार घाटे में जा रहा था उसे देखते हुये इसका उभर पाना संभव नहीं दिख रहा था। यहां तक कि लालू–राबड़ी सरकार भी पुल निर्माण निगम को लेकर दोनों हाथ खड़ा करने की मुद्रा में आ गई थी। लालू-राबड़ी सरकार की ओर से निगम को बंद करने का पहल हो चुका था। सही मायने में लालू –राबड़ी सरकार को इस बात का यकीन ही नहीं था कि पुल निर्माण निगम एक लाभकारी निकाय साबित हो सकता है। निगम को लेकर  स्पष्ट आर्थिक नीति के अभाव में निगम को बंद करना ही बेहतर समझा गया। सही मायने में लालू–राबड़ी शासन काल पुल निर्माण निगम के इतिहास में काला अध्याय साबित हुआ।

अपने पहले कार्यकाल में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भांप लिया कि पुल निगम के सक्रिय सहयोग के बिना बिहार के विकास की बात सोचना बेमानी है। इसके साथ ही बिहार राज्य पुल निगम को पुर्नजीवित करने की कवायद जोर-शोर से शुरु हुई और देखते- देखते यह निगम अपने पैरो पर खड़ा होकर दौड़ने लगा।

पहली बार सत्ता संभालने के बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह अहसास हो गया था कि सूबे के विकास में पुल निर्माण निगम की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यही वजह है कि पुल निगम को पुर्नजीवित करने की खास ध्यान दिया गया। गहन समीक्षा के बाद पुल निगम के रोगों की पड़ताल की गई और फिर एक सटीक योजना के तहत इसका कायाकल्प करने की कोशिश शुरु हुई। पुल निगम से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों ने बेहतर प्रदर्शन के इरादे से दोबारा काम शुरु किया। यह बदली हुई सरकार के बदले हुये मिजाज का असर था कि पुल निगम देखते देखते पटरी पर आने लगा। पुल निगम को दुरुस्त करने में नीतीश सरकारी की प्रतिबद्धता रंग लाने लगी।

यह नीतीश सरकार के ईमानदार प्रयास का ही प्रतिफल था कि कभी भयंकर घाटे में चल रहे पुल निर्माण निगम के टर्न ओवर में साल दर साल वृद्धि होती गई। बिहार में विकास की गति को दर्शाने के लिए पुल निगम का उदाहरण दिया जाने लगा। जिस निगम को कभी बंद करने की बात चल रही थी वही निगम कुशल प्रबंधन और सटीक योजना से बदलते बिहार की तस्वीर को मजबूती से प्रस्तुत करने लगा। वर्ष 2004-05 से लेकर वर्ष 2010-11 तक पुल निर्माण निगम का टर्न ओवर वाकई में चौंकाने वाला है, खासकर उस स्थिति में जब इस निगम को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा बंद करने की पहल की जा चुकी थी। एक नजर डालते हैं पुल निर्माण निगम के साल दल साल टर्न ओवर में होते इजाफा पर.

पुल निर्माण का टर्न ओवर

  • वर्ष-04-05- 42.62 करोड़ रुपये
  • वर्ष-05-06- 57.38 करोड़ रुपये
  • वर्ष-06-07- 95.88 करोड़ रुपये
  • वर्ष-07-08- 417.48 करोड़ रुपये
  • वर्ष-08-09- 756.00 करोड़ रुपये
  • वर्ष-09-10- 853.00 करोड़ रुपये
  • वर्ष-10-11- 1200.00 करोड़ रुपये (अनुमानित)

पुल निर्माण निगम को पुर्नजीवित करने साथ ही बिहार में विकास के रफ्तार में वृद्धि स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी। वर्ष 2006 से वर्ष 2010 के बीच तक की अवधि में निगम ने 1,030 करोड़ रुपये के व्यय से 518 पुलों का निर्माण कर साफ कर दिया कि यदि मंशा ठीक है तो कुछ भी कर पाना संभव है। व्यापक पैमाने पर पुलों के निर्माण कार्य से निगम का खोया हुआ सम्मान भी वापस आ गया और निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के आत्मविश्वास में भी वृद्धि हुई। अब पुल निगम से जुड़ा होना अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए गर्व की बात हो गई है। विकसित बिहार की परिकल्पना को जमीन उतारने के अहसास से ये लबरेज हैं। बिहार के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को यह ये लोग समझ रहे हैं और नये पुलों के निर्माण के माध्यम से सूबे में नया लकीर खींचने की कोशिश कर रहे हैं।

विगत कुछ वर्षों में अपने बेहतरीन काम के बदौलत पुल निर्माण निगम ने जो परिणाम दिये हैं उससे अन्य विभागों का विश्वास भी इस पर बढ़ा है। यही वजह है कि अब पुल निमार्ण निगम को पुल निर्माण के अतिरिक्त भवन, सिंचाई, सड़क आदि के निर्माण के काम भी सौंपे जा रहे हैं। पुल निगम इन कार्यों को कुशलतापूर्वक अंजाम दे रहा है। इससे न सिर्फ निगम के आय में वृद्धि हो रही है बल्कि अन्य विभागों में निगम की पैठ भी बढ़ती जा रही है। इसी का नतीज है कि अब निगम से कार्यक्रम प्रबंधन से संबंधित कार्य भी कराये जा रहे हैं। बहुत कम अवधि में निगम की सफलता की आश्चर्यजनक गाथा अन्य निकायों के लिए अनुकरणीय है। सूबे में पुल निर्माण निगम प्रगति और विकास की नित्य नई कहानी लिख रहा है।

अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत पुल निगम राज्य सरकार का एक चहेता निकाय बनकर उभरा। घाटा से उबर कर लाभ की स्थिति में आने के बाद पुल निगम ने जन कल्याणकारी कार्यों में अपनी भागेदारी बढ़ा दी। यहां तक कि मुख्यमंत्री राहत कोष में भी इसने अपनी भागेदारी देनी शुरु कर दी। इसके साथ ही अन्य विभागों के निर्माण कार्य में भी यह निगम बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो पुल निगम के पूरी तरह से कायल हो गये।

पुल निर्माण निगम की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अन्य जनकल्याणकारी कार्यों में भी यह बढ़चढ़ कर भागीदारी कर रहा है। वर्ष 2008 और 09 में कोशी नदी की विपदा से निपटने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में पुल निगम ने क्रमश: 20-20 करोड़ रुपये दिये। इससे पहले भी लाभ में आते ही निगम द्वारा राहत कोष में दान राशि दी गई थी। मुख्यमंत्री राहत कोष में पुल निगम द्वारा अब तक दी गई राशि इस प्रकार है-

  • वर्ष 2007-08- 5 करोड़ रुपये
  • वर्ष 2008-09- 20 करोड़ रुपये
  • वर्ष 2009-10- 20 करोड़ रुपये
  • वर्ष 2010-11- 10 करोड़ रुपये

मुख्यमंत्री राहत कोष में अपने भागीदारी दर्शाने के साथ ही पुल निगम ने स्पष्ट कर दिया है कि सूबे की जनता के सुख-दुख में वह हर स्तर पर खड़ा है।

पुल निगम की सफलता से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी खासे उत्साहित हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उत्साह 11 जून 2011 को पुल निगम की स्थापना दिवस पर खुलकर दिखाई दिया। इस अवसर पर उन्होंने एक साथ 312 परियोजनाओं का उद्घघाटन करते हुये कहा कि 2005 में हमलोगों के सामने चुनौती थी। पहले की सरकार ने निगम को बंद करने का निर्णय लिया था, जबकि बिहार में पुलों की कमी थी। बिहार के विकास की यात्रा के पहले दौर में पुल निगम को मजबूत किया गया। इस पर पुल निर्माण निगम खरा भी उतरा। सूबे में अब तक 1000 पुलों का उद्घघाटन हो चुका है। आने वाले समय निसंदेह यह बिहार की प्रगति को यही बयां करेगा।

फिलहाल पुल निर्माण निगम सूबे में पुलों के निर्माण के अतिरिक्त अन्य कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य में लगा हुआ है। राजगीर में 1300 व्यक्तियों की क्षमता वाला कन्वेन्शन सेंटर का निर्माण। यह निर्माण कला संस्कृति विभाग के लिए किया जा रहा है। इस तरह से सूबे में कला और संस्कृति के विकास में पुल निर्माण निगम प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान दे रहा है। इसके अलावा सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिले में निगम द्वारा 57 स्थलों पर बाढ़ आश्रम स्थल एवं पशुकरण स्थल का निर्माण किया जा रहा है। इनमें से 20 स्थलों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इसके साथ ही सभी जिला मुख्यालयों में 1.83 करोड़ रुपये की लागत से कर्पूरी छात्रावास की स्वीकृति कल्याण विभाग द्वारा दी गई है। 9 जिलों में कार्य प्रगति पर है। शेष जिलों में जमीन उपलब्धता के बाद कार्य प्रारंभ होगा।

सूबे में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पुल निर्माण निगम की सक्रियता देखते ही बन रही है। पावापुरी में लगभग 635 करोड़ रुपये की लागत से वर्द्धमान आर्युविज्ञान संस्थान में 500 शैया वाले अस्पताल का निर्माण पुल निर्माण निगम द्वारा किया जा रहा है। इसी तरह बेतिया आर्युविज्ञान संस्थान एंव अस्पताल और मधेपुरा आर्युविज्ञान संस्थान एंव अस्पताल का निर्माण प्रस्तावित है। पुल निमार्ण निगम दिन प्रति दिन जन कल्याण के निर्माणकारी कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा है और इससे इसकी लोकप्रियता भी दूर-दूर तक फैल रही है।  निगम के कार्यों को विस्तार देने के लिए अन्य क्षेत्रों में कन्सलटेंसी कार्य तथा अन्य राज्यों  में निर्माण कार्य में प्रवेश की तैयारी की जा रही है। इससे साफ पता चलता है कि पुल निर्माण निगम के हौसले बुलंद है।

अपने बेहतरीन कार्यों की बदौलत पुल निगम सूबे में अन्य निकायों के लिए एक उदाहरण बना हुआ है। अब तो शहर में पार्कों के निर्माण कार्य को भी अपने हाथ में लेना शुरु कर दिया है। लेकिन कुछ चूक पुल निगम से भी हुई है, जिसका उल्लेख सीएजी रिपोर्ट में किया गया है।

नीतीश सरकार पार्कों के निर्माण को लेकर भी काफी गंभीर हैं। बहुत बड़े पैमाने पर पार्कों का निर्माण पुल निर्माण निगम द्वारा कराया जा रहा है। सिर्फ राजधानी पटना में ही नगर विकास विभाग ने 17 स्थलों पर पार्क बनाने की जिम्मेदारी पुल निर्माण निगम को दी है। इनमें से छह पार्कों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। पटना के तमाम पुराने पार्क लंबे समय से उपेक्षित थे, नये पार्कों का निर्माण तो महज एक सपना बनकर रह गया था। लेकिन अब पुल निर्माण सौंपी गई इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभा रहा है। राजधानी पटना को हरा भरा करने में पुल निगम की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।

बेहतर प्रबंधन, आधारभूत संरचना का विकास, परियोजना प्रबंधन पद्धति में बदलाव, पेशेवर परामर्शियों से तकनीकी सहयोग, प्रोत्साहन की व्यवस्था, पदाधिकारियों और कर्मचारियों की चुस्ती के लिए जिम्नेजियम, कंप्यूटरीकरण व संविदाकारों के निबंधन में सरलीकरण, अनेक कारण हैं पुल निर्माण निगम के कायापलट के। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पुल निर्माण निगम में कारपोरेट कल्चर पनपा है, इसमें काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी पेशेवर तरीके से सोचने लगे हैं। पुल निर्माण निगम लुंज-पुंज बने अन्य बोर्ड निगमों को एक नई राह दिखाने वाला संस्थान बन चुका है। इस हकीकत को अब स्वीकार भी किया जा रहा है, कि तेजी से बदलते आर्थिक परिदृश्य में अन्य निगमों और निकायों को पुल निर्माण निगम की तरह पेशेवर होने की जरूरत है।

उम्मीद से बेहतर कार्य करने के बावजूद ऐसा नहीं है कि पुल निर्माण निगम में सब कुछ ठीक- ठाक ही चल रहा है। कुछ गड़बड़ियां अभी हैं जिन्हें दुरुस्त किये जाने की जरुरत है। ऐसी ही कुछ गड़बड़ियों की ओर सीएजी रिपोर्ट में चिन्हित किया गया है। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक आयकर के भुगतान में कुछ चूक हुई है। प्रबंधन आयकर अधिनियमों को ध्यान में रखकर रिटर्न देता निगम का 1.28 रुपया बच सकता था। सीएजी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि निगम ने वर्ष 1997-98 तथा 1998-99 में 3.54 करोड़ रुपये की हानि उठाई और 2005-06 में 5.96 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया। परन्तु निगम ने 1997-98 के लिए आवश्यक आयकर विवरणी जमा नहीं किया, जिससे हानि को 2005-06 तक अग्रेषित नहीं किया जा सका। परिणाम स्वरूप  इन वर्षों की हानि को लाभ से घटाया नहीं जा सका। ऐसे करके निगम को 1.06 करोड़ रुपये के आयकर भुगतान से बचाया जा सकता था।

इसी प्रकार निगम द्वारा 2.61 करोड़ के अग्रिम कर का भुगतान दो किस्तों में जनवरी एवं मार्च 2007 में किया गया जबकि प्रावधान के अनुसार वर्ष 2006 -07 की प्रत्येक तिमाही में भुगतान किया जाना चाहिये था। अग्रिम कर भुगतान के विलंब होने से निगम द्वारा नियम के मुताबिक 22.08 लाख रुपये ब्याज की राशि का भुगतान किया गया जो बेवजह था। इस प्रकार 1997-99 के आयकर विवरणी जमा करने में हुई चूक के कारण निगम को 1.20 करोड़ रुपये का बेवजह भुगतान करना पड़ा। थोड़ी सी सावधानी बरत कर निगम इन पैसों को बचाया जा सकता था।

बिहार राज्य पुल निगम वाकई में सूबे के लोगों को जोड़ने के लिए सेतू का काम कर रहा है। चूंकि अब यह निकाय पूरी तरह से लाभ में है, इसलिये इसका महत्व और भी बढ़ गया है। सूबे में पूलों का जाल तेजी से बिछ रहा है और इसका श्रेय एक हद तक पुल निर्माण निगम को ही जाता है।

प्रमोद दत्त

बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले को सबसे पहले समग्र रूप से दुनिया के सामने लाकर खोजी पत्रकारिता को नया आयाम दिया। घोटाला उजागर होने से लगभग छह वर्ष पहले ही इन्होंने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में जिन तथ्यों को उजागर किया था, सीबीआई जांच में वे सारे तथ्य भी जांच के आधार बनाये गये। लगभग तीन दशक से निर्भीक और बेबाक पत्रकार के रूप में शुमार और अपने चहेतों के बीच चलता-फिरता इनसाइक्लोपिडिया कहे जाते हैं। इनकी राजनीतिक समझ तमाम राजनीतिक विश्लेषकों से इन्हें चार कदम आगे रखता है। तथ्यों को पिरोते हुये दूरगामी राजनीतिक घटनाओं को सटीक तरीके से उकेरते हैं।

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