मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल ?
हमारे संविधान में प्रत्येक भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. यही कारण है कि भारतीय मीडिया अपने अधिकार क्षेत्र में सशक्त और उत्तरदायी मीडिया है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से अब तक भारतीय मीडिया ने भारत निर्माण में महत्वपूर्ण व निष्पक्ष भूमिका निभाई है. मगर जब से बाजारवाद का उदय हुआ तब से भारतीय पत्रकारिता में काफी उतर-चढ़ाव देखने को आये. यहाँ तक कि भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर भी सवाल उठे. ये सवाल उसकी नैतिकता,स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हावी होते रहे है.
भारतीय मीडिया ने जरुर सामाजिक व आर्थिक कुरीतियों के बारे में जन-जन तक जागरूकता पहुँचाई है और उसने देश में व्याप्त गरीबी, भुखमरी व भ्रष्टाचार के खिलाफ भी काफी हद तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जो उसकी सराहनीय उपलब्धि भी रही है. मगर आधुनिक पत्रकारिता पर यदि हम नजर डालें तो पायेंगे कि वर्तमान समय में इसका स्वरुप ही बदल गया है. इस पर उठते सवाल सही साबित हुए है. आज देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ अपराधी, पूंजीपति व शासक वर्ग किस तरह खेल रहे है, यह यहाँ का बच्चा-बच्चा जानता है. महात्मा गांधी का कहना था कि पत्रकारिता को हमेशा सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होना चाहिए, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े . एक पत्रकार समाज का सजग प्रहरी है, उसमें मानवीय मूल्यों की समझ होना बेहद जरुरी है . तभी वो समाज से जुड़े मुद्दों को सरकार के सामने उचित ढंग से रख पायेगा . आज भारत में करीब 60 हजार से ज्यादा अख़बार तथा 600 से ज्यादा टीवी चैनल्स मौजूद है,पर फिर भी किसी को मानवीय और सामाजिक मूल्यों से कोई सरोकार नहीं रहा. बल्कि आज देश की हर गली मुहल्ले में लाखों छुटभय्यै पत्रकार दिखाई देने लगे है .इनकी रगों में वैसे भी पत्रकारिता का कोई कण दिखाई नहीं देता मगर आज के यह पत्रकार स्वार्थ वश पत्रकार बन बैठे है. देश के कई अच्छे व नामी पत्रकारों को हाशिए पर डाल दिया गया है. इसी बाजारवाद के कारण पत्रकारिता अपने सरोकारों व कर्तव्यों को भूल कर महज एक व्यवसाय बन के रह गई है. और साथ ही साथ मीडिया राजनैतिक तंत्र का जीता जगता हथियार भी बन गया है, जिसमे राजनैतिक तंत्र ने भारतीय मीडिया का जब चाहे,जहां चाहे उपयोग किया है. और बदले में ये राजनैतिक तंत्र मीडिया घरानों, प्रबंधकों व संपादकों की आवश्कताओं की पूर्ति प्रमुखता से करता आया है. हमारा मीडिया चाहे प्रिंट हो या इलैक्ट्रानिक केवल सामाजिक सरोकारों का दंभ भरता हैं. कोई भी समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास नहीं करता, बस केवल सरकार की कमियों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेता है. और इसी बाजारीकरण को मीडिया टीआरपी का नाम देता है. जो कि अन्ना हजारे से लेकर रामदेव तक के मसले को फुल कवरेज देता है. जिससे रामदेव जैसे व्यक्तियों के साथ अख़बार व इलैक्ट्रानिक मीडिया खुद की टीआरपी बढ़ा पाते है. मगर इसका प्रभाव करीब एक अरब से ज्यादा भारतीयों पर किस ढंग से पड़ता है इसका अनुमान भारतीय मीडिया नहीं लगा पाता. और वह मानवीय मूल्यों को नकारता चला जाता है. यही कारण है कि पत्रकार बनना जितना आसन होता है,पत्रकारिता का निर्वाहन करना उतना ही कठिन होता है….
अक्षय नेमा मेख
पो- मेख,
जिला- नरसिगपुर (म.प्र.) 487114