सम्पादकीय पड़ताल

राजदीप पर हमले से स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी भी शर्मसार हुई होगी

आलोक नंदन

न्यूयार्क के मेडिसन स्कवायर गार्डन में एक तरफ ‘भारत भाग्य विधाता’ की भूमिका अख्तियार कर चुके पीएम नरेंद्र मोदी की भव्य स्वागत में प्रवासी भारतीय का हंसता-झूमता हुजूम ‘मोदी-मोदी’  के जोशपूर्ण नारे लगा रहा था, तो दूसरी ओर भगवा ब्रिगेड का एक कट्टर रंगरूट पत्रकार राजदीप सरदेसाई से गाली गलौज करने के बाद धक्का मुक्की कर रहा था। कुछ देर में पीएम नरेंद्र मोदी मेडिसन स्वाक्यर गार्डेन में हजारों प्रवासी भारतीयों को संबोधित करने वाले थे। अमेरिकी सीनेटरों की भी वहां अच्छी खासी संख्या थी, इस्लामिक लिबासों में लिपटे हुये चंद चेहरे भी वहां पर दिखाई दे रहे थे, चारो तरफ मोदी-मोदी का स्वर था, स्क्रीन पर भी मोदी ही चमकने वाले थे। न्यूयार्क के सिर पर मोदी मैनिया पूरी तरह से काबिज हो चुका था और संचार माध्यमों का इस्तेमाल करते हुये इसे अपने देश के बस्तियों और चौपालों तक पहुंचाने की पूरी तैयारी थी। ठीक उसी वक्त राजदीप सरदेसाई पर हमले की खबर बिजली की तरह कौंधी और मोदी-मोदी की शोर में गुम हो गई। जब दुनिया के दो बेहतरीन दो डेमोक्रेसी इतिहास गढ़ रहे थे ठीक उसी वक्त राजदीप सरदेसाई पर हमले की खबर दर्ज हो गई। न्यूयार्क में राजदीप सरदेसाई पर हमले ने एक सहज सवाल खड़ा कर दिया है, क्या यह हमला राजदीप सरदेसाई पर था या फिर डेमोक्रेसी पर ? उसी डेमोक्रेसी पर जिसकी दुहाई कुछ देर बाद पीएम नरेंद्र मोदी सारी दुनिया के सामने देने वाले थे। मोदी के भव्य स्वागत और ओजपूर्ण भावनात्मक भाषण साथ-साथ मैडिसन स्क्वायर गार्डेन भारतीय प्रेस पर हमले का गवाह भी बना। गाली देने वालों और हाथ चलाने वालों की भीड़ में फंसे राजदीप सरदेसाई अपनी पूरी शक्ति के साथ जूझते हुये दिखे, हालांकि बाद में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जो फूटेज इंटरनेट पर जारी किया था वो एडिटेड था। राजदीप सरदेसाई को जिस तरह से प्रताड़ित किया गया था उसके सारे अंश निकाल दिये गये थे। उनकी बातों से साफ लगता है कि जो कुछ भी उनके साथ स्क्वायर गार्डेन में हुआ वो पूर्व नियोजित था।

जहां तक राजदीप सरदेसाई को मैं जानता और समझता हूं वो काफी सौम्य हैं, सहज तरीके से अपनी बात को रखना वो बखुबी जानते हैं, और उनकी पत्रकारिता में एक धार भी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पत्रकारों की एक पीढ़ी के वो रोल मॉडल हैं और अबतक जिस धारा की पत्रकारिता उन्होंने की है उसका सीधा जुड़ाव गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रीत्व काल में एक धर्म विशेष के लोगों के सामूहिक कत्लेआम रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द सिमटे दिमाग को उनकी पत्रकारिता कभी नहीं सुहाई है।

हो सकता है पीएम नरेंद्र मोदी को इस हमले की भनक तक भी नहीं होगी, लेकिन इतना तो स्पष्ट पता चलता है कि यह हमला पूर्वनियोजित था। इस हमले को  एक सांकेतिक हमला कहा जा सकता है, जो किसी भी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नीडर पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं है। वह देश दिवास्वप्न देखते हुये बर्बादी की तरफ बेधड़क कदम बढ़ाता है जहां किसी भी स्तर पर पत्रकारिता का गला घोंटने की कोशिशें होती हैं। इतिहास गवाह है बहुमत की जबरदस्त गूंज सत्ताधीशों को पागल कर देती है और यह ज्यादा खौफनाक रूप तब अख्तियार कर लेता है जब दिवास्वप्न देखने वाले समर्थकों का अपने पर वश नहीं होता। बेशक मोदी मैनिया से दुनिया को भी आगाह हो जाना चाहिए। न्यूयार्क में राजदीप सरदेसाई पर हमला उस चिंता को और गहरी कर देती है जो पीएम नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर देश में पसरी है। निसंदेह इस हमले से न्यूयार्क स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी भी शर्मसार हुई होगी।

अपनी खबरों और तेवर को लेकर राजदीप सरदेसाई लंबे समय से मोदी समर्थकों की आंखों की किरकिरी बने हुये थे। उनको सबक सीखाने की जगह के रूप में न्यूयार्क को चुना गया, शायद यह बताने के लिए अब अमेरिका जैसे मुल्कों में भी मोदी की मुखालफत करने वालों को सहजता से ठोका-पीटा जा सकता है और मोदी मैनिया गुजरात से निकल कर पूरे देश में हावी होने के बाद अब सुदूर देशों में अपनी मजबूत पैठ रखता है, इसके खिलाफ सोचने, बोलने और लिखने वालों को दुनिया के किसी भी हिस्से में कभी भी बजाया जा सकता है, भारत में उसकी विसात ही क्या है। न्यूयार्क में राजदीप सरदेसाई पर हमला भारतीय मीडिया के खिलाफ संगठित हमले की ओर ही इशारा करता है, इस पर चुपी प्रेस की स्वतंत्रता का ही गला घोंटेगी। आने वाले दिनों में कुछ और मीडियाकर्मी इस तरह के हमलों का शिकार हो तो किसी को आर्श्चय नहीं होना चाहिए। यह समय भारतीय प्रेस के लिए स्वतंत्र होने का है,आलोचना के अपने हक पर डाकाजनी के खिलाफ मोर्चा खोलने का है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यदि हिन्दुस्तान मंगल डग भर रहा है, तो दूसरी तरफ रेलवे जैसे सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआई की भी तैयारी हो रही है। नरेंद्र मोदी के हर कदम को निरपेक्ष तरीके से तौलने का हक तो मीडिया को है ही। मोदी और मोदी समर्थकों के धुन से तालमेल नहीं करने का मतलब यह तो नहीं है कि किसी को देशद्रोही घोषित करके उसे संगठित पागल भीड़ के हवाले कर दिया जाये। छोटी-छोटी बातों का संज्ञान लेने वाले पीएम नरेंद्र मोदी अभी अमेरिका के रंगमंच पर अठखेलियां करते हुये पूरी दुनिया को डेमोक्रेसी की आत्मा के बारे में समझा रहे हैं, भारत को 3-डी के नजरियें से दुनिया के महानतम मुल्क साबित करने पर तुले हुये हैं, उनके नाक के नीचे न्यूयार्क में राजदीप सरदेसाई पर हमले की खबर न तो उनके पास संज्ञान लेने की फुर्सत है और न ही इच्छा। लेकिन इतना तो तय है कि राजदीप सरदेसाई पर हमला पीएम नरेंद्र मोदी के लिए बेहतर भोजन में कंकड़ साबित हो रहा है।

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