राष्ट्र-धर्म (कहानी)
लगातार तीन दिनों से सिक्ख रेजिमेंट के जवान पहाड़ी नंबर 447 पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे थे परंतु जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करते, दुश्मनों की गोलियों की बौछारें उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर देती और वे अपनी छातियां वर्फीली चट्टानों से छिपकिली की तरह सटाकर चिपक जाते, ताकि गर्म लोहे की टुकड़ियां उनके शरीर को बेजान न कर दें तथा उनके नाम भी शहीदों की फेहरिस्त में शामिल न हो जाये।
अत्यधिक ठंढ के बावजूद उनकी रगों में दौड़ रहा लहु युद्ध की उत्तेजना से और अधिक गर्म हो चला था। उनके सामने एक ही लक्ष्य था पहाड़ी नं.447 पर पुन: कब्जा, जहां दुश्मनों की एक टुकड़ी घात लगाये बैठी हुयी थी। चुकि दुश्मन पहाड़ी के उपर थे अत: दिन में आक्रमण करने का अर्थ साक्षात अपनी मौत को दावत देना था, इसलिये रात के ग्यारह बजे पहाड़ी नं.447 पर जोरदार आक्रमण करने की योजना बनायी गयी। रात के ठीक ग्यारह बजे सिक्ख-रेजिमेंट के जवानों ने ताबड़-तोड़ गोलियां बरसाते हुये पहाड़ी नं.447 के लिये अपनी चढ़ाई प्रारंभ की। गोलियों का जबाब गोलियों से मिला। लगभग आधे घंटे के बाद कैप्टन सतीश को सूचित किया गया कि छ: सैनिकों का नुकसान हुआ है और तीन बुरी तरह घायल हैं। कैप्टन सतीश ने हमला रोक देने का आदेश दिया और बर्फीली चट्टानों से पीठ टिका कर चुपचाप बैठते हुये अपनी आंखे मूंद ली।
“ साब जी! एक बात कहुँ”, एक जोरदार सैल्युट ठोकने के पश्चात एक जवान सलीम ने कैप्टन सतीश से कहा।
“कहो।„
“ आपके आदेश से हम दोबारा आक्रमण करेंगे परन्तु इस बार हमारी रणनीति थोड़ी परिवर्तित होगी।„ जवान सलीम के स्वर की द्ढ़ता ठीक वैसी ही थी जैसी पानीपत के युद्ध के पूर्व बाबर के शब्दों में थी जब वह अपने सैनिकों को तुलगमा पद्धति समझा रहा था।
“ तुम कहना क्या चाहते हो ?” कैप्टन सतीश ने आश्चर्य से पूछा।
“सर! इस बार हमारा रेजिमेंट आक्रमण के समय वाह-ए-गुरु का नाम नहीं लेगा बल्कि हमारा नारा होगा, अल्लाह-हो-अकबर।” जवान सलीम के गर्वीले शब्द ऊँचे और स्पष्ट थे।
“तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं। जो भी कहना चाहते हो खुलकर कहो।” कैप्टन सतीश ने अंधेरे में जवान सलीम के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की। अक्समात जवान सलीम को लेकर उसके मन के किसी कोने में खटका लगा परन्तु तेजी के साथ उसने इस विचार को झटक दिया।
“साब जी ! हमले के समय दुश्मन अल्लाह-हो-अकबर का नारा लगा रहा हैं, यदि हमलोग भी इसी नारे के साथ आक्रमण करेंगे तो दुश्मन चक्कर में पड़ जायेंगे। दुश्मन की थोड़ी सी चूक और पहाड़ी अपने कब्जे में। वैसे भी दुश्मन कुमक का इंतजार कर रहा है।” अपनी रणनीति को लेकर जवान सलीम का मस्तिष्क पूरी तरह साफ था।
सारी बातें कैप्टन सतीश की समझ में अच्छी तरह से आ गयी थीं। उसने अपने सारे जवानों के साथ इस रणनीति के विभिन्न पहलुओं पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया।
“अपने धार्मिक नारे को छोड़कर किसी दूसरे नारे को अपनाना कहाँ तक उचित है ? यह तो धर्म के विरुद्ध है।” सरदार जगजीत सिंह जिसने थोड़ी देर पहले मौत से आँख-मिचौली खेली थी और जिसके बायें कंधे में दुश्मन की एक गोली अभी भी अटकी पड़ी थी, ने अपने धार्मिक-संस्कारों के प्रति सचेत होते हुये कहा।
“ राष्ट्र-धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, आगे आपलोगों की मर्जी। ”
जवान सलीम के शब्दों में तीखेपन के साथ थोड़ी निराशा थी।
उस विवाद को विराम देते हुये कैप्टन सतीश ने कहा- “आक्रमण ठीक सुबह के तीन बजे प्रारंभ होगा ”
अल्लाह-हो-अकबर के नारों को सुनते ही दुश्मनों के खेमे में उत्साह की लहर दौड़ गयी। उन्हें विश्वास हो चला था कि उनका बहुप्रतिक्षित कुमक आ गया । पहाड़ी पर से भी अल्लाह–हो-अकबर के नारे रात के सन्नाटों मे गूंजने लगे।
भारतीय फौज आराम से अल्लाह के सहारे जेहादियों के ठिकानों पर चढ़ती रही । जब तक जेहादी इस चाल को समझ पाते बहुत देर हो चुकी थी। अब आमने सामने की लड़ाई थी, संगीनों और खुखरी की लड़ाई, नंगा युद्ध। अंधेरे में ही हिंसक जंग होते रहे । सर्द चट्टानों में इंसानों के गर्म लाल लहु पानी की तरह बह रहे थे, समय अपनी निर्धारित गति से बढ़ रहा था।
सुबह होने के पूर्व भारतीय सेना दुश्मनों को पूरी तरह से रौंद चुकी थी। एक भी जेहादी अपना नाम बताने के लिये जिंदा नहीं बचा था।
सूर्य की पहली किरण के साथ पहाड़ी नं.447 पर तिरंगा लहराने लगा था, वीर जवान सलीम की लाश उन्हीं जेहादियों के बीच पड़ी हुयी थी। कैप्टन सतीश ने उस वीर जवान के म्रत शरीर की तरफ देखकर एक जोरदार सैल्युट मारा और मध्यम स्वर में बुदबुदाया….
“ राष्ट्र-धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। ”
आज सारी कुर्बानियों को भुला दिया है भ्रष्टाचारियों ने…
bahut zabardast. padkar aisa laga jaise mai prem chand ko padh raha hun. bahut shkriya.
‘मर्मस्पर्शी’विवरण। निश्चय ही ‘राष्ट्र धर्म सर्वोपरि ‘है।
rashtra dhrama se badhkar dushara aur koi dharma nahi hota hai……ye salim ki kurbani
se sabit hota hai…..very good encouragement story for armed forcess….anita ji keep it up
Anita ji yah story indian armye ki hosala badane vali ese armye ko jarur bheje
Bhart mata ki jai ….
Bahut hi achha laga. kuchder ke liye mera man sathir ho gaya.
nischit jahan rastra ki baat ho , vahan rastra dharm se bara koi dharm nahi ….