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विजया मुले पर वृतचित्र बना रहे हैं रविराज

विजया मुले के साथ रविराज

एक खोजी इंसान के लिए सबसे बड़ा धन उसकी खोज ही होती है . रविराज पटेल उसी में से एक हैं . वे पिछले चार वर्षों से उस महिला के तलाश में थे , जिन्होंने सत्यजीत राय से प्रभावित हो कर सन 1952  ई. में स्वतंत्र भारत के दूसरे फिल्म सोसाइटी की  स्थापना पटना में कीं थीं. वह महिला कोई और नहीं बल्कि राष्ट्र्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त मशहूर अभिनेत्री सुहासिनी मुले कि माँ ‘अक्का’ यानि विजया मुले हैं.

1 सितम्बर 2012 को जब शोधार्थी युवा लेखक, कला आलोचक एवं वृतचित्रकार रविराज पटेल 91 वर्षीय श्रीमती मुले से मिलने उनके दिल्ली स्थित आवास पर पहुंचे, तो ऐसा लगा मानो  वह कभी पटना से गईं ही नहीं.

दरअसल, रविराज श्रीमती मुले के जीवनवृत्त एवं पटना फिल्म सोसाइटी (अब सिने सोसाइटी,पटना) पर एक वृतचित्र का निर्माण, लेखन व निर्देशन कर रहे हैं.

इस अवसर पर उनकी छोटी बहन सुशीला राणाडे (अवकाश प्राप्त अध्यक्ष,संस्कृत विभाग,दिल्ली विश्वविद्यालय), बड़ी बेटी श्री मुले (कनाडा के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में असोसिएट डीन) एवं मंझली बेटी भारती मुले ( शिक्षाविद) भी खास  तौर पर मौजूद रहीं.

ज्ञातव्य हो कि स्वयं श्रीमती मुले पटना विश्वविद्यालय से अंतर-स्नातक,स्नातक एवं स्नाकोत्तर तक की पढाई कीं हैं , वहीँ  बहन सुशीला पटना वूमेंस कॉलेज एवं पटना कॉलेज से पढ़ीं हैं. इनकी तीनों बेटियों श्री, भारती एवं सुहासिनी का जन्म भी पटना में ही हुई है तथा इन सभी बेटियों की प्रारंभिक पढाई भी पटना एवं डाल्टेनगंज के विभिन्न स्कूलों में हुई है.

श्रीमती मुले मूलरूप से   बदलापुर (महाराष्ट्र) की रहने वाली  हैं. सन 1940 ई. में अपने पति काशीनाथ मुले के साथ नौकरी में स्थान्तरित हो कर पटना आयीं थीं. 1955 ई. में पटना से दिल्ली चली गईं.

श्रीमती मुले वर्ष 2011 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लेखन प्रभाग के जूरी अध्यक्ष थीं. इससे पहले उनके द्वारा लिखित सिनेमा पर सर्वश्रेठ पुस्तक “From Rajahs and Yogis to Gandhi and Beyond” के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वे सत्यजीत राय के बाद फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटी ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष, कलकत्ता (अब कोलकाता) फिल्म सेंसर बोर्ड के पीठासीन पदाधिकारी एवं बम्बई (अब मुंबई) फिल्म सेंसर बोर्ड में भी जिम्मेदार पदों पर रहीं हैं.

श्रीमती मुले पटना महिला शिक्षिका प्रशिक्षण महाविद्यालय में भी अध्यापिका के तौर पर भी सेवा दीं हैं. वे पटना फिल्म सोसाइटी के संस्थापिका सचिव रहीं हैं.

बकौल रविराज, मैं कई वर्षों से विजया जी के ऊपर शोध करता आ रहा हूं. लेकिन उनसे हमारी पहली बातचीत 17 अगस्त 2012 को सुहासिनी जी के मदद से टेलीफोन पर हो हुई, वे उसी दिन कनाडा से वापस दिल्ली आयीं थीं. बात करते हुये मैं इतना उत्साहित हो रहा था , मानो मैं अपने सवालों के संदूक फोन पर ही खोल दूँ. वे मेरी भावनाओं को समझ रहीं थीं. उन्होंने मुझसे  मेरे सवालों का ई-मेल माँगा. हमें आश्चर्य हुआ, कि अगली बार जब मैं कंप्यूटर ऑन किया तो उनका 4 पेज का जबाब हाजिर था. 1 सितम्बर 2012 को जब मैं उनके घर दिल्ली गया ,तो मैं बता नहीं सकता कि हम एक दूसरे को देख कितना खुश थे. हमने  कहीं से भी अजनबी  महसूस नहीं किया. उन्होंने दिल खोल कर पटना की उन  यादों के मेले में सैर कराया , जो वाकई हमने अदभुत अनुभूति किया . मैं उनके साथ बिताये हुये पल, कभी नहीं भूल सकता. ‘अक्का’ एक महान महिला हैं. अक्का का मराठी मतलब बड़ी बहन होता है ,अधिकांश लोग उन्हें ‘अक्का’ ही कहते हैं ।

यहाँ तक कि उनकी बेटियां भी उन्हें ‘अक्का’ ही कहती हैं. मेरी पहली वृतचित्र उन्हीं के जीवन मूल, मुश्किल और मुकाम पर केन्द्रित है.

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