यंग तेवर

वैचारिक अंधकार के दौर से गुजर रहा देश

बहुत ताम – झाम है कांग्रेस और भाजपा में। इनके संगठनों में राजनीतिक चाटूकारिता कूट – कूट कर भरी हुई हैं। कांग्रेसी सोनिया जी शब्द को तोते की तरह दोहराते हैं और उनकी उपस्थिति में रोबोट की तरह खङे हो जाते हैं। उस पल उनके चेहरे पर गम्भीरता और कृत्रिम मुस्कुराहट साथ – साथ दिखेगा। दूसरी ओर भाजपा नमस्कार और प्रणाम में उलझी है। वंशवाद से मुक्त होने का दावा करने वाली इस पार्टी में आडवाणी भक्ति कम होने का नाम ही नहीं ले रही। ये बुढ़े आडवाणी से जवान भारत का निर्माण करने में लगे हैं।

        बिहार चुनाव के दौरान सोनिया गांधी के साथ मंच पर बैठ कर अखिलेश सिंह जय भारत , जय सोनिया का नारा लगा रहे होते हैं। आडवाणी का आशिर्वाद लेकर बिहार में सुशील मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री बने हुए हैं। अपने उपर होने वाले प्रहारों से बचने के लिए उन्होंने मोटी खाल ओढ़ रखी है। एक टीवी पत्रकार उनसे इंटरव्यू के दौरान आंदोलन के मोदी की तलाश कर रहे थें , लेकिन उन्हें उनके शब्दों में राजनीतिक लीपापोती के अलावा कुछ भी न मिला। भारतीय संस्कृति की अगुआई में लगी भाजपा और धर्मनिरपेक्षता का बिगुल बजा रही कांग्रेस में ऐसे नेताओं की लम्बी कतार है जिनके पास कोई जनाधार नहीं है लेकिन वे पार्टी के अंदर उच्च पदों पर काबिज हैं और देश के मंत्री और विपक्ष के पद सम्हाल रहे हैं। इन दलों का छीपा हुआ विश्वास है कि राजनीतिक संदेश के लिए सोनिया गांधी और लालकृष्ण आडवाणी काफी हैं बाकि तकनीकी नेता बने हुए हैं। तकनीकी नेताओं के लिए इनके पद मुफ्त में मलाई खाने की तरह है क्योंकि वकालत , डॅाक्टरी , शिक्षा संस्थानों जैसे व्यवसाय से अफराद पैसा आ रहा है,साथ में राजनीतिक वर्चश्व। ये तकनीकी राजनीतिक नेतृत्व समाज में एक आदमी का नाम नहीं ले सकते जिनका उन्होने मुफ्त में भलाई कर दिया हो।

        आज तकनीकी चमक – धमक के बीच देश वैचारिक अंधकार के दौर से गुजर रहा है। जन – भावना से संचालित नेतृत्व का अभाव है। राजनीतिक दलों ने अपने इर्द – गिर्द एक संकीर्ण घेरा बना रखा है, जिसे भेद कर दल में अपनी जगह बनाने की काबलियत चाटुकारों में हैं। वर्त्तमान परिस्थिति में विचार और समर्पन की हत्या की जा रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राजनीतिक दल अकङे हए हैं। एक की अकङ इस बात में है कि वह सरकार है , दूसरे कि अकङ इस बात में है कि एक मात्र विपक्ष तो वही है। इन दोनों दलों को पूरा विश्वास हो चला है कि निजीकरन और भूमंडलीकरण की इस आंधी में अपने निजी स्वार्थ और पेट की क्षुधा बूझाने से किसे फूर्रसत मिलेगी जो हमारी राजनीतिक सत्ता को चुनौती देगा। ये देश की विचारशून्यता के अहसास से पूरी तरह से भर गए हैं। इनको पूरा विश्वास है कि समाजवाद के दरवाजे को लालू और मुलायम घुन और दीमक की तरह खा गए तो लोहिया और जेपी अब कहां से आएंगे ? भाजपा और कांग्रेस विजयी मुद्रा में खङी है। दिल्ली और मुंबई की तर्ज पर सारे शहरों का व्यापारीकरण तेजी से हो रहा है जहां इंसानी जीवन बहुत छोटा मालूम पङता है और पैसे के बल पर राजनीति की दुकान आसानी से चलाई जा सकती है।

        आखिर भाजपा में कांग्रेस से अलग आडवाणी के विरूद्ध विद्रोही तेवर क्यों नहीं दिखता ? भाजपाई यह क्यों नहीं समझ पा रहें हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक खेले हुए पत्ते की तरह हैं जिनसे परिवर्त्तन और बदलाव की कोई आवाज नहीं उठेगी। यही बनाती है पार्टी के अंदर चाटुकारता की तस्वीर। कांग्रेस तो शुरू से ही जी हुजूरों की पार्टी रही है। कांग्रेसी इंदरा गांधी के सामने दूम हिलाते थे। वही कहानी सोनिया गांधी दुहरा रही हैं। अपना जान – प्राण अपने बेटे को राजनीतिक उंचाई पर पहुंचाने में उन्होनें लगा रखा है। कांग्रेस के अंदर भी एक खामोश चाटुकारिता अपना पंख फैला कर बैठी है।

देश एक नई राजनीतिक कहानी रच रहा है। कहा जाता है कि देश में कानून का शासन है तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत से व्यवस्था संचालित हो रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि व्यवस्था चाटुकारिता के सिद्धांत से संचालित हो रही है और देश में चाटुकारों का शासन है। ये हर तरीके से परिस्थिति को अपने अनुकूल बना रहे हैं। ये जनता के पैसे को तितर-बितर कर रहे हैं और भ्रष्टाचार के पेड़ को हरा-भरा रख कर उसकी भव्यता से आम जनता को डरा रहे हैं।

Related Articles

One Comment

  1. अविनाश जी,
    भाजपा का नाम भारतीय जलावन पार्टी होना चाहिए था। उम्र का ज्यादा होना देश के लिए ज्यादा जरुरी नहीं। क्योंकि वीर कुंवर सिंह अस्सी साल के थे। “सब कहते हैं वीर कुंवर सिंह बड़ा वीर मरदाना था” लेकिन ये खीर खाकर तीर चलाने वाले वीर हैं क्या? युवाओं को जब गहरी नींद आ गयी हो तब देश तो डूबेगा ही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button